Class 10 Subjective History Chapter 8 प्रेस – संस्कृति एवं राष्ट्रवाद  | Bihar Board Social Science History Subjective Question 2025

Class 10 Subjective History Chapter 8 प्रेस – संस्कृति एवं राष्ट्रवाद इतिहास विषय की तैयारी कर रहे हैं छात्र-छात्राओं के लिए मंटू सर Mantu Sir(Dls Education) लेकर आ चुके हैं महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव प्रश्नों (Important Subjective Questions) का सेट इस सेट की मदद से आप परीक्षा में ज्यादा से ज्यादा प्राप्त कर पाएंगे इस सेट में आपको चैप्टर वाइज इतिहास के सब्जेक्ट के प्रश्न (chapter wise subjective questions)मिल जाएंगे और पिछले कुछ वर्षों के दौरान परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्न भी उपलब्ध है इन मॉडल सेट (Subjective Model Set)  की मदद से आप परीक्षा में ज्यादा प्राप्त कर सकते हैं

आपको बता दें कि 50% सब्जेक्टिव प्रश्न (Subjective Questions) परीक्षा में पूछे जाना है और सामाजिक विज्ञान (Social Science) में आपको प्रैक्टिकल भी देना होता है और इसके अलावा आपकोपरीक्षा भी देनी होती हैआप लोगों को ज्यादा से ज्यादा प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव प्रश्नों (History Important Subjective Questions) को याद करना बेहद जरूरी हैतभी आप परीक्षा में ज्यादा ज्यादा प्राप्त कर पाएंगे

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Class 10 Subjective History Chapter 8 प्रेस – संस्कृति एवं राष्ट्रवाद

प्रेस संस्कृति एवं राष्ट्रवाद आपको बता दे की प्रेस को देश का एक मुख्य स्तंभ माना जाता है औरहमारे देश मेंप्रेस की बड़ी अहमियत हैग्लूटेनबर्ग ने मुद्रण यंत्र का विकास कैसे कियाछापाखाना यूरोप में कैसे पहुंचापांडुलिपि क्या है लॉर्ड लिटन ने राष्ट्रीय आंदोलन को गतिमान बनाया किस प्रकार मुद्रण क्रांति ने आधुनिक विश्व को कैसे प्रभावित किया ऐसे ही कुछ मुख्यइतिहास केबातें आपको पता होना बेहद जरूरी है और यह परीक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है सब्जेक्टिव प्रश्न (Important Subjective Questions) पूछे जाते हैं परीक्षा के दौरान  

प्रश्न 1. निम्नांकित के बारे में 20 शब्दों में लिखें :


(क) छापाखाना, (ख) गुटेनवर्ग, (ग) बाइबिल, (घ) रेशम मार्ग, (ङ) मराठा, (च) यंग इण्डिया, (छ) वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, (ज) सर सैयद अहमद, (झ) प्रोटेस्टेन्टवाद, (ञ) मार्टिन लूथर ।


उत्तर – (क) छापाखाना- छापाखाना के आविष्कार का उतना ही महत्त्व है जितना आदि मानव द्वारा ‘आग’, ‘पहिया’ और ‘लिपि’ का। आरंभ में छापाखाना को अजूबा ही समझा गया। बौद्धिक जगत के लिए गुटेनवर्ग की यह अनुपम देन थी।


(ख) गुटेनवर्ग-गुटेनवर्ग जर्मनी का रहनेवाला था। आधुनिक छापाखानों (Printing Press) का आविष्कारक गुटेनवर्ग को ही माना जाता है। उसी ने टाईप बनाया और छपाई की मशीन भी। आगे चलकर प्रेसों का क्रमशः विकास होता गया।


(ग) बाइबिल– बाइबिल एक ईसाई धर्म ग्रंथ है। ईसाई इसे सर्वाधिक पवित्र मानते हैं। गुटनवर्ग ने जब प्रेस बनाकर छपाई का प्रयोग करना चाहा तो उसने सबसे पहले बाइबिल को ही छापा। बाइबिल छापना उसने शुभ कर्म माना ।


(घ) रेशम मार्ग- चीन से रेशम का निर्यात यूरोप तक के देशों में होता था। रेशम व्यापार का इतना महत्त्व था कि जिस मार्ग से होकर यह भेजा जाता था, उस मार्ग का नाम ही ‘रेशम मार्ग’ पड़ गया। रेशम मार्ग पश्चिम एशिया से होकर गुजरता था।


(ङ) मराठा- ‘मराठा’ एक उग्र विचारों को व्यक्त करने वाला राष्ट्रवादी समाचार पत्र था। इसके सम्पादक बाल गंगाधर तिलक थे। इसका नाम तो ‘मराठा’ था, छपता अंग्रेजी में था । 


(च) यंग इण्डिया- अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित ‘यंग इण्डिया’ एक देश भक्ति पूर्ण राष्ट्रवादी पत्र था। इसके संस्थापक तथा सम्पादक महात्मा गाँधी थे। यह अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित होने वाला समाचार पत्र था । इसके लेखों से भारतीय युवक देश भक्ति की शिक्षा लेते थे ।


(छ) वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट— वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट 1878 में लागू हुआ था। यह एक्ट केवल भारतीय भाषाओं में प्रकाशित समाचार पत्रों पर लागू होता था। इसी एक्ट से बचने के लिए बंगला में प्रकाशित होने वाला समाचारपत्र अमृत बाजार पत्रिका को अंग्रेजी भाषा में छापा जाने लगा।


(ज) सर सैयद अहमद – सर सैयद अहमद इस्ट इण्डिया कम्पनी में एक किरानी थे। अंग्रेजों ने हिन्दू-मुस्लिम एकता को तोड़ने के लिए एक कट्टर मुसलमान की आवश्यकता थी, क्योंकि 57 के गदर में हिन्दू-मुस्लिम एकता परवान पर थी। सैयद साहब अंग्रेजों के इशारे पर चलते रहे, जिससे उन्हें ‘सर’ की उपाधि से नवाजा गया।


(झ) प्रोटेस्टेन्टवाद- प्रोटेस्टेन्टवाद का संचालक मार्टिन लूथर था। वह पोप और पादरियों के चरित्र में आई गिरावट से क्षुब्ध था। इसी का फल हुआ कि ईसाई धर्म दो खेमों में बँट गया। मूल खेमा कैथोलिक कहलाया और इसका प्रोटेस्ट करने वाला खेमा प्रोटेस्टेन्ट कहलाया।


(ञ) मार्टिन लूथर – मार्टिन लुथर जर्मनी का एक धर्म सुधारक था। यह पोप और पादरियों के चरित्र में आए गिरावट से क्षुब्ध था, जिस कारण उसे धर्म सुधार आन्दोलन चलाना पड़ा। इसमें उसे सफलता भी मिली। एक ओर पोप को तो अपने में और दूसरी ओर ईसाई धर्म के दो फांक हो गए।


प्रश्न 2. निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर 60 शब्दों में लिखें :


प्रश्न (क) गुटेनबर्ग ने मुद्रण यंत्र का विकास कैसे किया?सुधार लाना


उत्तर – -गुटेनवर्ग के परिवार के पास जैतून से तेल निकालने की मशीन थी। उसने उसी मशीन में कुछ हेर-फेर करके मुद्रण यंत्र का विकास कर लिया। टाईप के लिए तीन- चार धातुओं का मिश्रण बना टाईप बनाए। पहले अक्षरों के मोल्ड बनाया और उन मोल्डॉ के सहारे टाईप की ढलाई की गई। अंग्रेजी में चूँकि अक्षरों की संख्या बहुत कम है, अतः टाईप बनाना आसान हो गया। फिर उसने छपाई योग्य स्याही भी बना ली। इस प्रकार कुछ दिनों के परिश्रम के बाद वह मुद्रण यंत्र बनाने को विकसित करने में सफल हो गया।


प्रश्न (ख) छापाखाना यूरोप में कैसे पहुँचा ?


उत्तर – कहा जाता है कि छापाखाना को यूरोप पहुँचाने वाला मार्कोपोलो था, अपनी यात्रा के क्रम में चीन पहुँचा था। लेकिन उसके पहले ही व्यापारियों द्वारा रेशम मार्ग से छापाखाना यूरोप पहुँच चुका था । वहाँ छापाखाना का उपयोग ताश और धार्मिक चित्र बनाने में करते थे। लेकिन मार्कोपोलो ने छापाखाने के साथ ही लकड़ी के टाईप भी भेजे। जर्मनी में कागज का आविष्कार 1336 में हो गया। इसके बाद तो छपाई का काम तेजी से बढ़ने लगा, क्योंकि छापाखाने की मशीन गुटेनवर्ग ने पहले ही बना ली थी।


प्रश्न (ग) इन्क्वीजीशन से आप क्या समझते हैं? इसकी जरूरत क्यों पड़ी?


उत्तर – ‘इन्क्वीजीशन’ वह कार्यकलाप था, जिसके माध्यम से कैथोलिक चर्च के पादरियों ने धर्म-सुधार की कार्रवाइयों पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया। बाइबिल की मुद्रित प्रतियों के मिलने से कम पढ़े-लिखे लोग भी बाइबिल में उल्लिखित बातों का अपने मतानुसार अलग-अलग अर्थ निकालने लगे। उनकी व्याख्या भी वे अपने ढंग से करते थे, जो चर्च की मान्याताओं के विरुद्ध जाते थे। अपनी जमी-जमाई दुकानदारी को नष्ट होने से बचाने के लिए कैथेलिक चर्च वालों ने ‘इन्क्वीजीशन’ को चालू किया। लेकिन इससे धर्म सुधार आन्दोलन रुका नहीं, वरन जोर पकड़ने लगा ।


प्रश्न (घ) पाण्डुलिपि क्या है? इसकी क्या उपयोगिता है?


उत्तर – -पाण्डुलिपि हस्तलिखित उस पुस्तक या समग्री को कहते हैं, जिसे देखकर आधुनिक काल में कम्पोज होता है और छपाई होती है। जब मुद्रण यंत्र की सुविधा नहीं थी तब विश्व में अकेला देश भारत ही था, जहाँ अत्यन्त स्थाई और महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी गईं। रामायण, महाभारत, पुराण, उपनिषद आदि पाण्डुलिपियाँ ही थीं, जो बाद मे पुस्तक के रूप में मुद्रित की गईं। पहले वह ताम्र पत्रों तथा विभिन्न प्राकृतिक उपकरणों पर लिखी जाती थीं। पाण्डुलिपि की उपयोगिता है कि ये हजारों-लाखों वर्ष तक सुरक्षित रखी जा सकती हैं या इनसे लाखों-लाख पुस्तकें छापी जा सकती हैं।


प्रश्न (ङ) “लार्ड लिटन ने राष्ट्रीय आन्दोलन को गतिमान बनाया ।” कैसे ?


उत्तर – 1910 में लार्ड लिटन ने 1878 के एक्ट के सभी घिनौने प्रावधानों को पुनः लागू कर दिया। देश में इसकी घोर प्रतिक्रिया हुई। यह वह काल था, जब कॉमय में नरम-दल और गरमदल अलग राग अपनाने में व्यस्त थे। लॉर्ड लिटन के कानून से सभी राष्ट्रवादी एक स्वर में बोलने लगे। राष्ट्रीय आन्दोलन को एक नई संजीवनी मिल गई। 1921 में तेज बहादुर सप्रुता की अध्यक्षिता में एक प्रेस कमिटि बनी। इसकी सिफारिश पर 1910 के अधिनियम को रद्द कर देना पड़ा। इसी कारण कहा जाता है कि लॉर्ड लिटन ने राष्ट्रीय आन्दोलन को गतिमान बनाया ।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ( लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें) :


प्रश्न (क) मुद्रण क्रांति ने आधुनिक विश्व को कैसे प्रभावित किया ?


उत्तर –  मुद्रण क्रांति ने आधुनिक विश्व को अनेक प्रकार से प्रभावित किया। सबसे पहले तो अनपढ़ जनता पढ़ने की ओर उन्मुख हुई। कारण कि पढ़े-लिखे लोग ही मुद्रित पुस्तकों को पढ़ सकते थे और उनसे लाभ उठा सकते थे मुद्रण संस्कृति ने तो सर्वप्रथम धर्म को प्रभावित किया। उसी समय यूरोप में धर्म सुधार आन्दोलन चल रहा था। मुद्रण की सुविधा प्राप्त होते ही उसमें और भी तेजी आ गई। बाइबिल के संस्करण पर संस्करण प्रकाशित होने लगे। इसको खरीदने और पढ़ने वालों की संख्या बढ़ने लगी।


सबसे बड़े धर्म सुधारक जर्मनी का मार्टिन लूथर ने तो यहाँ तक कहा कि- “मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है, सबसे बड़ा तोहफा है।” छपाई के काम से नये बौद्धिक माहौल का निर्माण हुआ एवं धर्म सुधार आन्दोलन के नए विचारों का फैलाव तेजी से हुआ और वह आम जन तक आसानी से पहुँचने लगा। मुद्रण कला की तकनीकी विकास भी तेजी से हुआ। अब बिजली से चलने वाले बेलनाकार मशीनें भी बाजार में आ गईं। यहाँ तक कि ऑफसेट में बहुरंगी छपाई भी होने लगी। अब प्रेस केवल धर्म प्रचार का ही साधन नहीं रहा, बल्कि ज्ञान-विज्ञान तथा विचारों का फैलाव भी तेजी से हुआ। 


भारत में तो मुद्रण क्रांति ने राजनीति को पूरी तरह अपने लपेटे में ले ली। राष्ट्रीय आन्दोलन को फैलाने में बहुत मदद मिली। देश में अनेक राष्ट्रवादी अखबार छपने लगे पाठकों की संख्या भी बढ़ने लगी। राष्ट्रवादी नेता अपने विचार अखबारों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाने लगे। यद्यपि कि सरकारी नजर सदैव टेढ़ी ही रहती थी। अनेक तरह के कानून लादे गए। अड़चनें लगाई गईं। वास्वत में सही रूप से राष्ट्रवादी और त्यागी ही अखबार निकाल सकते थे और सम्पादन कर सकते थे।


प्रश्न (ख) 19वीं सदी में भारत में प्रेस के विकास को रेखांकित करें।


उत्तर – भारत में समाचारपत्रों का उदय 19वीं सदी की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। बल्कि यह न सिर्फ विचारों को तेजी से फैलाने वाला अनिवार्य शैक्षणिक स्रोत बन गया, ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध भारतीयों की भावना को एक रूप देने, उनकी नीतियों, उनके शोषण के विरुद्ध जागृति लाने एवं देश प्रेम की भावना भरकर राष्ट्र निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला बन गया।

व्यापारियों ने कलकत्ता जर्नल निकाला। इन समाचार पत्रों ने लार्ड हेस्टिंग और जॉन एडमून 1816 में गंगाधर भट्टाचार्य ने साप्ताहिक बंगाल गजट निकाला तो 1818 में ब्रिटिश प्रेस को जनता तक पहुँचा दिया। इसने प्रेस को आचोलनात्मक दृष्टिकोण अपनाने, जाँच- को उलझन में डाल दिया।


इस पत्र के सम्पादक बकिंघम ने पत्रकारिता के माध्यम से पड़ताल करके समाचार देने तथा नेतृत्व प्रदान करने की ओर प्रवृत्त किया। परिणाम हुआ कि इस्ट इण्डिया कम्पनी ने इन्हें इंग्लैंड भेज दिया। 1821 में बंगला भाषा में साम्वाद कौमुदी’ तथा 1822 में फारसी भाषा में ‘मिरातुला अखबार निकला। इसके साथ ही प्रगतिशील राष्ट्रवादी प्रकृति के समाचार पत्रों का तांता लग गया।

उपर्युक्त दो पत्रों के सम्पादक बंगाल के प्रकाण्ड विद्वान राजा राममोहन राय थे। इन्होंने अखबारों को सामाजिक तथा धार्मिक सुधार आन्दोलनों का हथियार बना दिया। 1822 में बम्बई से गुजराती भाषा में ‘दैनिक बम्बई’ समाचारपत्र निकलता तो 1831 में ‘जामे जमशेद’, 1851 में ‘गोफ्तार’ तथा ‘अखवारे सौदागर’ का प्रकाशन हुआ।


1857 के विद्रोह के पश्चात समाचार पत्रों की प्रकृति का विभाजन प्रांतीय आधार पर किया जा सकता है। भारत में दो प्रकार के प्रेस : एक एंग्लो इण्डियन तथा दूसरा भारतीय प्रेस। एंग्लो इण्डियन प्रेस में पत्र छपते थे, वे ‘फूट डालो और शासन करो’ के तर्ज पर थे, जबकि भारतीय प्रेस मेल-मिलाप और राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत होते थे । 1858 में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने ‘सोम प्रकाश’ नामक साप्ताहिक पत्र निकाला, जो बंगला में थे। हिन्दू पेट्रिएट को भी विद्यासागर ने ‘लिया। ऐसे ही अनेक समाचारपत्रों का प्रकाशन होता रहा।


प्रश्न (ग) भारतीय प्रेस की विशेषताओं को लिखें ।


उत्तर – भारतीय समाचार पत्रों को राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रचार के हथियार के रूप में एनीबेसेंट ने इस्तेमाल करना शुरू किया। इन्होने मद्रास स्टैंडर्ड को अपना संचालन में लेकर ‘न्यू इण्डिया’ नाम देकर होमरूल का नारा जन-जन तक पहुँचाया। महात्मा गाँधी  इन्होंने यंग इण्डिया तथा केवल राजनीतिज्ञ ही नहीं थे, बल्कि एक कुशल पत्रकार भी हरिजन पत्रों के माध्यम से अपने विचारों एवं राष्ट्रवादी आन्दोलन का प्रचार-प्रसार किया । भारतीय प्रेस गाँधीजी के वक्तव्यों और व्यक्तित्व से निभीक बनने लगे ।


मोतीलाल नेहरू ने 1919 में ‘इंडिपेंडेस’, शिव प्रसाद गुप्त ने ‘आज’, के. एम. पन्निकर ने 1922 में हिन्दुस्तान टाइम्स का सम्पादन किया। बाद में हिन्दुस्तान टाइम्स का सम्पादन कार्य मदन मोहन मालवीय के हाथ में आ गया। बाद में घनश्याम दास बिड़ला ने इस पत्र को खरीद लिया। समाजवादी-साम्यवादी विचारों के फैलाव के परिणामस्वरूप मराठी साप्ताहिक क्रांति, वर्क्स एण्ड पीजेंट्स पार्टी ऑफ इण्डिया का प्रतिनिधित्व कर रहा था। अंग्रेजी साप्ताहिक न्यू स्पार्क, कांग्रेस सोशलिस्ट क्रमशः मार्क्सवादी एवं समाजवादी विचारों के पोषक थे।

एम. एन. राय ने अंग्रेजी साप्ताहिक ‘इंडिपेंडेन्ट’, 1930 में एस. सदानन्नद के सम्पादन में ‘दि फ्री प्रेस जनरल’ का प्रकाशन आरम्भ हुआ। मंद्रास में स्वराज तथा गुजरात में नवजीवन का प्रकाशन शुरू हुआ।


इन्होंने अखबारों को सामाजिक तथा धार्मिक सुधार आन्दोलनों का हथियार बना दिया। 1822 में बम्बई से गुजराती भाषा में ‘दैनिक बम्बई’ समाचारपत्र निकलता तो 1831 में ‘जामे जमशेद’, 1851 में ‘गोफ्तार’ तथा ‘अखवारे सौदागर’ का प्रकाशन हुआ। 1857 के विद्रोह के पश्चात समाचार पत्रों की प्रकृति का विभाजन प्रांतीय आधार पर किया जा सकता है।

भारत में दो प्रकार के प्रेस : एक एंग्लो इण्डियन तथा दूसरा भारतीय प्रेस। एंग्लो इण्डियन प्रेस में पत्र छपते थे, वे ‘फूट डालो और शासन करो’ के तर्ज पर थे, जबकि भारतीय प्रेस मेल-मिलाप और राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत होते थे । 1858 में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने ‘सोम प्रकाश’ नामक साप्ताहिक पत्र निकाला, जो बंगला में थे। हिन्दू पेट्रिएट को भी विद्यासागर ने ‘लिया। ऐसे ही अनेक समाचारपत्रों का प्रकाशन होता रहा।


प्रश्न (ग) भारतीय प्रेस की विशेषताओं को लिखें ।


उत्तर – भारतीय समाचार पत्रों को राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रचार के हथियार के रूप में एनीबेसेंट ने इस्तेमाल करना शुरू किया। इन्होने मद्रास स्टैंडर्ड को अपना संचालन में लेकर ‘न्यू इण्डिया’ नाम देकर होमरूल का नारा जन-जन तक पहुँचाया। महात्मा गाँधी इन्होंने यंग इण्डिया तथा केवल राजनीतिज्ञ ही नहीं थे, बल्कि एक कुशल पत्रकार भी हरिजन पत्रों के माध्यम से अपने विचारों एवं राष्ट्रवादी आन्दोलन का प्रचार-प्रसार किया । भारतीय प्रेस गाँधीजी के वक्तव्यों और व्यक्तित्व से निभीक बनने लगे । मोतीलाल नेहरू ने 1919 में ‘इंडिपेंडेस’, शिव प्रसाद गुप्त ने ‘आज’, के. एम. पन्निकर ने 1922 में हिन्दुस्तान टाइम्स का सम्पादन किया


बाद में हिन्दुस्तान टाइम्स का सम्पादन कार्य मदन मोहन मालवीय के हाथ में आ गया। बाद में घनश्याम दास बिड़ला ने इस पत्र को खरीद लिया। समाजवादी-साम्यवादी विचारों के फैलाव के परिणामस्वरूप मराठी साप्ताहिक क्रांति, वर्क्स एण्ड पीजेंट्स पार्टी ऑफ इण्डिया का प्रतिनिधित्व कर रहा था। अंग्रेजी साप्ताहिक न्यू स्पार्क, कांग्रेस Nसोशलिस्ट क्रमशः मार्क्सवादी एवं समाजवादी विचारों के पोषक थे। एम. एन. राय ने अंग्रेजी साप्ताहिक ‘इंडिपेंडेन्ट’, 1930 में एस. सदानन्नद के सम्पादन में ‘दि फ्री प्रेस जनरल’ का प्रकाशन आरम्भ हुआ।


मंद्रास में स्वराज तथा गुजरात में नवजीवन का प्रकाशन शुरू हुआ। 1910-20 के मध्य उर्दू पत्रकारिता का भी खूब विकास हुआ। मौलाना आजाद के सम्पादन में 1912 में ‘अलहिलाल’ तथा 1913 में ‘अल बिलाग’ का प्रकाशन हुआ । मोहम्मद अली ने अंग्रेजी में ‘कामरेड’ तथा उर्दू में ‘हमदर्द’ का प्रकाशन किया। 1910 में गणेशंकर विद्यार्थी ने कानपुर से ‘प्रताप’ का प्रकाशन शुरू किया। यह पत्र राष्ट्रवाद तथा किसान-मजदूरी का जबरदस्त समर्थक था। हरदयाल ने 1913 में गदर का प्रकाशन सैन फ्रांसिस्को से करना आरम्भ किया। 1914 से पंजाबी में भी इसका प्रकाशन हुआ। विदेशों में रहने वाले भारतीयों के बीच यह पत्र काफी लोकप्रिय हुआ।


प्रश्न (घ) राष्ट्रीय आन्दोलन को भारतीय प्रेसों ने कैसे प्रभावित किया ?


उत्तर – भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के सभी पक्षों, चाहे वह राजनीति हो, चाहे सामाजिक हो, चाहे आर्थिक हो, प्रेस ने प्रत्यक्ष रूप से सबको प्रभावित किया। राष्ट्रीय नेताओं ने प्रेस के माध्यम से ही अंग्रेजी राज की शोषणकारी नीतियों का प्रदर्शन किया। इस क्रम में उन्होंने देश में जागृति फैलाने का भी काम किया। विदेशी सत्ता से त्रस्त जनता को सन्मार्ग दिखाने एवं साम्राज्यवाद के विरोध में निडर होकर स्वर उठाने का साहस प्रेसों के माध्य से ही प्राप्त हुआ।

भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रारंभ से पहले समाचार पत्र ही देश में लोकमत का निर्माण भी करते थे और प्रतिनिधित्व भी करते थे। देश भक्तों ने लाभ या व्यापारिक उद्देश्य से पत्रकारिता को नहीं अपनाया, बल्कि इसे मिशन के रूप में अपनाया। चन्दा और दान इनकी पूँजी थी। उन्होंने समाचारपत्रों ने राजनीतिक शिक्षा देने का भी काम किया।


अधिकतर समाचारपत्रों का रूख कांग्रेस की याचनावादी नीतियों से भिन्न थी। ये गरमदल का प्रतिनिधित्व करते थे और उन्हीं के स्वर को उजागर करते थे। सालों भर कांग्रेस अधिवेशनों में पारित प्रस्तावों की चर्चा होती रहती थी। नई शिक्षा नीति के प्रति व्यापक असंतोष को सरकार के कानों तक पहुँचाने का काम समाचार पत्रों ने ही किया। फिरंगियों द्वारा हो रहे भारत के आर्थिक शोषण को इन्होंने ही उजागार किया और करते रहे। देश की आर्थिक दुर्दशा का चित्रण भी प्रेस या समाचार पत्र ही करते थे। भारत मित्र’ नामक समाचार पत्र ने भारत से चावल के निर्यात का विरोध किया।

अधिकांश समाचार पत्रों का कहना था कि भारत की वास्तविक समस्या राजनीति से बढ़कर आर्थिक थी। गाँवों में कृषकों तथा दस्तकारों की हालत अत्यंत शोचनीय थी। वे सदा कर्ज के बोझ तले दबे रहते थे। सामाजिक सुधार के क्षेत्र में प्रेसों ने सामाजिक रुढ़ियों, रीति-रिवाजों अंधविश्वासों तथा अंग्रेजी सभ्यता के कुप्रभाव को लेकर आलोचनात्मक लेख प्रकाशित करते रहे। राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, केशव चन्द्र सेन आदि जैसे समाज सुधारक सदा प्रेस के लिए लिखते रहे।

HISTORY Chapter 8 प्रेस – संस्कृति एवं राष्ट्रवाद  Class 10

प्रेस – संस्कृति एवं राष्ट्रवाद के कोई भी प्रश्न अब आप बड़े आसानी से बना सकते है बस आप को इन प्रश्न को कई बार पढ़ लेना है और हमने QUIZ Format मे आप के परीक्षा के मध्यनाज़र इस पोस्ट को तैयार किया है class 10h HISTORY प्रेस – संस्कृति एवं राष्ट्रवाद  इस पोस्ट मे दिए गए है तो अब आप को परीक्षा मे कोई भी प्रेस – संस्कृति एवं राष्ट्रवाद के प्रश्न से डरने की जरूरत नहीं फट से उतर दे

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