Class 10 Subjective Political Chapter 1 लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा 2025 (bihar board 10th exam 2025) की तैयारी कर रहा है छात्र-छात्राओं को पॉलिटिकल साइंस (Political Science) जिसे लोकतांत्रिक भी कहा जाता है इससे परीक्षा में कुछ प्रश्न पूछे जाते हैं न केवल ऑब्जेक्टिव बल्कि सब्जेक्टिव प्रश्न (Political Subjective Questions) भी पूछे जाते हैं खासकर लघु उत्तरीय प्रश्न कई बार परीक्षा में पूछे गए हैं इसलिए आपको पॉलिटिकल साइंस के सभी चैप्टर के महत्वपूर्ण प्रश्नों (Political Important Subjective Questions)का सेट मंटू सर Mantu Sir(Dls Education) के द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा है
इस सेट में आपको 30 से भी ज्यादा महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव प्रश्न मिल जाएंगे जो की परीक्षा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है और आपको बता दे कि यह सभी प्रश्न चैप्टर वाइज (chapter wise subjective questions) तैयार किए गए हैं आपको हर चैप्टर के मॉडल सेट (Subjective Model Set) इस वेबसाइट पर मिल जाएंगे और आपको बता दे की आपकी परीक्षा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है
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Class 10 Subjective Political Chapter 1 लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी
पॉलिटिकल साइंस के पहले चैप्टर में आपको पढ़ने को मिलता है लोकतंत्र में सट्टा की साझेदारी इस पाठ से परीक्षा में एक जरूर सब्जेक्टिव प्रश्न पूछा जाता है इस पाठ में आपको पढ़ने को मिलता है हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूपनहीं लेती है कैसे सामाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजन का रूप ले लेती हैसामाजिक विभाजन की राजनीति का परिणाम किन-किन चीजों पर निर्भर करता है
भारत में किस तरह जातिगत असमानताएं जा रही है यह सब आपको इस पाठ में पढ़ने को मिलता है जो कि हमारे देश के हिसाब से और देश कोसही तरीके से बताती है इस पाठ के महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव प्रश्नों (Important Subjective Questions) को याद करना आप लोग के लिए बेहद आवश्यक है
लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 .हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती है कैसे
उतर – यह सब प्रतिशत सही है कि हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप ग्रहण नहीं कर सकती हम देखते हैं कि कभी-कभी भी समुदाय के विचार होते हैं लेकिन उनके हित समान होता है या समान ही थी है कि सामुदायिक विभिन्नता प्रभावित में एकता के भाव बने रहते हैं यह रोजमरी की बात हो गई की विभिन्न संपन्न राज्य में बिहारियों को अनेक तरह से सताया जाता है
यहां बिहार के रूप में सताए जाने वाले लोगों की समुदाय को सुझाव दिए जाते हैं लेकिन वास्तव में भी एक समुदाय के नहीं होकर अनेक समुदाय के होते हैं यहां समुदाय के तट पर जातियों से है लेकिन बिहार में उत्तर किसी अन्य राज्य में सताए जाने के कारण बिहारी होने के नाते एकता बन जाती है जो समुदाय का रूप ले लेती है अतः स्पष्ट है कि हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती l
प्रश्न 2. सामाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजन का रूप ले लेता है?
उतर – सामाजिक अंतर भारत में केवल जाति ही नहीं नहीं शिक्षा और आर्थिक व्यवस्था भी समझ में अंतर पैदा करती है। एक जाति के होने के बावजूद यह शिक्षा और अर्ध शक्ति में भेद है तो यह भी सामाजिक अंतर उत्पन्न होता है । लेकिन यह सामाजिक अंतर तब तक सामाजिक विभाजन का रूप ले लेता है जब एक दूसरे से अपने को उच्च और दूसरे को नहीं समझने लगते हैं।जब सामाजिक विभाजन स्पष्ट होने लगता है तब तक जाती गौर पड़ जाती है ।उदाहरण के लिए हम कह सकते हैं जैसे प्राचीन परंपरा रही है
शादी विवाह अपनी जाति में ही होती है लेकिन क्या शिक्षित और धनी व्यक्ति अपने पुत्र का विवाह अपने ही जाति के अशिक्षित और गरीब की लड़की से करने के लिए राजी होगा ? नही बिल्कुल नहीं। वह अपने बराबरी के परिवार की लड़की ही चाहेगा । यहीं पर सामाजिक अंतर सामाजिक विभाजन का रूप स्पष्ट होने लगता है।
प्रश्न 3 . सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिवारस्वरूप ही लोकतंत्र की व्यवहार में परिवर्तन होता है।भारतीय लोकतंत्र के संदर्भ में इसे पुष्टि करें।
उतर – सामाजिक विभाजन की राजनीति के परिमाण के फलस्वरूप की लोकतंत्र के व्यवहार में केवल परिवर्तन होता है बल्कि हो चुका है भारत के संदर्भ में तो यह और भी अधिक दृष्टिगत होता है स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद यदि दलित और पिछड़ों की उत्थान की बात नहीं सोची गई होती तो आज भारत भी खंडित हो गया होता। दबे कुछ ले और आर्थिक तथा सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों को झगड़े के समक्ष लाने के लिए संविधान में ही उलझ कर दिया गया है संविधान तो उन्हें संरक्षण देता ही है
शांति राजनीतिक दल भी दलितों को आरक्षण देने की बात कह कर उन्हें अपना वोट बैंक बनाने का प्रयास करता है | अल्पसंख्यक की भी कुछ ऐसी स्थिति है। इनको लुभाने के लिए विभिन्न प्रलोभन दिए जाते हैं
लेकिन कुछ हो जाता नहीं है जिसे विधायक या सांसद बनने का मौका मिल जाता है उसकी पारिवारिक स्थिति तो आर्थिक रूप से मजबूत हो जाती है समझ में आधार भी प्राप्त हो जाता है लेकिन उसी के समाज के अन्य लोगों जहां के तहा तक ही रह जाते हैं । तत्पर के लक्षण का लाभ व्यक्तिगत होकर रह जाता है पूरे समाज को उसका कोई लाभ नहीं मिलता है भारत में तो यह खुलेआम देखा जा सकता है। सामाजिक विभाजन के कारण उनके सदस्यों को संतुष्टि रखने का प्रयास में राजनीति के परिवार स्वरूप लोकतंत्र के व्यवहार में भी परिवर्तन करना पड़ता है इस स्थल पर राजनीतिक दलों की विवशता भी होती है।
प्रश्न 4. 70 के दशक से आधुनिक दशक के बीच भारतीय लोकतंत्र का सफर (सामाजिक न्याय के संदर्भ में) का संक्षिप्त वर्णन करे ।
उतर – सतर के दशक से आधुनिक दशा के बीच का अर्थ आने से 70 तक की आज तक का समय 1970 के पहले तक 1967 की राजनीतिक पर स्वर्ण जातियों का दबदबा था। विधान मंडल और संसद के लिए आरक्षित स्थानों पर टिकट जाति विशेष के अपने साहित्य को ही देते हैं आरक्षण के तहत प्राप्त सुविधा प्राप्त नेताओं का रहन-सहन उनकी शिक्षा दीक्षा आर्थिक स्थिति
अपनी जाति क्या ने लोगों से काफी विकसित हो गई और वे सर्वर्णो की श्रेणी में आगे इनका एक अलग समाज बन गया 70 से 90 तक के दशकों के बीच इस स्थिति के बदलाव के लिए संघर्ष चलता रहा 90 की दशक के बाद पिछड़ी जातियों का वर्चस्व काम हो गया दलितों में जागृति की अवधारणा राजनीतिज्ञ को प्रभावित करती रही।
यही कारण था कि बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने महा दलित की अवधारणा को मजबूती दी और उनमें जागृति उत्पन्न की दलितों के नाम पर सुविधा होगी लोगों पर उनकी कोई प्रतिक्रिया भी नहीं देखी गई आज की स्थिति यह है कि पिछड़ी जातियों के साथ-साथ आज की राजनीति का पलड़ा दलितो और महादलित के पक्ष में झूलती दिखाई पड़ रहा है ।आज उत्तर प्रदेश की स्थिति यह है कि दलित मुख्यमंत्री को अग्रणी जाति का सहयोग लेना पड़ रहा है जबकि कभी उन्हें मनुवादी कह कर अपमानित भी किया जाता था।
प्रश्न 5. सामाजिक विभाजनो की राजनीति का परिणाम किन-किन चीजों पर निर्भर करता है ?
उतर – सामाजिक विभाजन की राजनीति का परिणाम तो सर्वप्रथम सरकार के गठन पर पड़ता है।विधायक या संसद में विभिन्न समाजों का प्रतिनिधित्व रहता है किसी सामाजिक दर में किसी विभिन्न समाज के प्रतिनिधि रहते हैं। सरकार का गठन करते समय मुख्यमंत्री अपरदन मंत्री को या ध्यान देना पड़ता है कि सरकार में सभी समाजों का प्रतिनिधित्व रहे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि सामाजिक विभाजन का राजनीति का पहला परिणाम सरकार के रूप पर पड़ता है दूसरा परिणाम या पड़ता है कि विभिन्न सामाजिक एकता बनी रहे उदाहरण के लिए भारत के सामाजिक को ले सकते हैं भारत के विभिन्न राज्यों की वेशभूषा खान-पान भाषा आदि में भिन्नता के बावजूद सभी अपने को भारतीय समझते हैं यदि ऐसा नहीं रहता तो भारत खंड-खंड हो जाता।
प्रश्न 6. भावी समाज में लोकतंत्र की जिम्मेवारी और उद्देश्यों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उतर – भावी समाज में लोकतंत्र की असीम जिम्मेवारी है। समाज के बीच विभिन्न समुदाय के लोग रहते हैं उन समुदाय के बीच बेइमान्य सीता उत्पन्न नहीं हो इसकी जिम्मेदारी लोकतंत्र में बढ़ जाती है बहुमत के आधार पर निर्वाचित सरकार को इस बात पर ध्यान देना है कि अल्पमत वालों के अधिकार का हनन नहीं होने पावे बहुमत का तात्पर्य केवल या नहीं है
कि समुदाय के किस वर्ग में वोट दिया और किसने नहीं दिया बहुत निर्वाचित सरकार का मतलब है कि यह समझ जाएगी देश के सभी लोग ने मिलकर विधायको या सांसदों का निर्वाचन किया है अतः लोकतांत्रिक सरकार की ही यह जिम्मेदारी बनती है कि सब विभिन्न समुदाय के साथ ऐसा व्यवहार हो की परस्पर सभी में एकता बनी रहे। लोकतांत्रिक सरकारों का यह उद्देश्य भी है कि समाज में ऐसी आर्थिक व्यवस्था हो कि सभी अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को आसानी से पूरा कर सके।
प्रश्न 7. भारत में किस तरह जातिगत असमानताएं जा रही है ? स्पष्ट करें।
उतर – भारत में श्रम विभाजन के आधार पर जातिगत असमानताएं जारी है जैसा की कुछ अन्य देश में भी है भारत की तरह दूसरे देशों में भी पैसा का आधार लगभग वंशानुगत ही है पैसा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में सोता चला जाता है पैसे पर आधारित सामुदायिक व्यवस्था ही जाति का रूप ले लेती है यह व्यवस्था जब अस्थाई हो जाती है तब वह श्रम विभाजन का आदिवासी रूप कहलाने लगती है। वास्तव में इसे ही हम जाति के नाम से जानने लगते हैं खासकर शादी विवाह और अनेक अनिवार्य व्यवस्थाओं में स्पष्ट रूप से दिख जाता है। इस प्रकार भारत में सदियों से जातिगत असमानताएं जारी है।
प्रश्न 8. जीवन के विभिन्न पहलुओं का जिक्र करें जिन्हें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव है या वे कमजोर स्थिति में हैं।
उतर – जन्म के साथ ही लड़कियों के साथ भेदभाव आरंभ हो जाता है लड़की के जन्म लेते ही परिवार में उधर से सजाती है उनके पालन पोषण में भी लड़कों के मुताबिक कम ध्यान दिया जाता है अब तो शिक्षित परिवार में भी उनकी पढ़ाई पर ध्यान दिया जाने लगा है पहले तो उन्हें पढ़ना आवश्यक समझा ही नहीं जाता था
सच यही रहती थी कि किसी प्रकार उसे विवाह कर विदा कर दिया जाए लड़कियां पराया धनमानी जाते थे। विवाह के बाद आज भी ससुराल में उन्हें दो एवं दर्जे का पारिवारिक सदस्य माना जाता है बच्चे कुछ भोजन पर ही उन्हें गुजार करना पड़ता है किसी भी दृष्टि से देखा जाता है तो पाया जाता है कि उनकी स्थिति हर जगह कमजोर ही है लेकिन इतना ध्यान रखना है कि पढ़े -लिखे लोग तथा शहरों में स्थिति इसके विपरीत है।वही लड़की और लड़कों में कोई भेदभाव नहीं समझा जाता ।
प्रश्न 9. भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है?
उतर – भारत की विधायिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व नगर में है स्वतंत्रता आंदोलन में जिस प्रकार की भागीदारी महिलाओं की थी आज विधायिकाओं में उनकी पुछ उतनी नहीं है कोई राजनीतिक दल उनकी संख्या के हिसाब से उन्हें टिकट नहीं देते विधायिकाओ में अपनी भागीदारी के लिए महिलाए एवं वर्षों से संघर्ष कर रही है। लेकिन उन्हें दिलासा के अलावा कुछ नहीं मिलता। पुरुष प्रधान समाज में उन्हें आरक्षण देना चाहता भी नहीं जब महिला आरक्षण के लिए बल मिल आता है तो कभी यह दल और कभी वह दल उसका विरोध करने लगते हैं विरोध के नए मुद्दे तलाश जाते हैं।
प्रश्न 10. किन्हीं दो प्रवधानों का जिक्र करें ,जो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनता है।
उतर – वे दो प्रावधान निम्नांकित हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है:
(।) भारत में राज्यों का कोई धर्म नहीं है। ना तो वह किसी धर्म का समर्थन कर सकता है अगर ना विरोध।
(।।) धर्म के आधार पर किसी शिक्षण संस्थान में प्रवेश लेने से किसी को रोक नहीं जा सकता।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न तथा उनके उत्तर
प्रश्न 1. किन आधारों पर सामाजिक बंटवारा होता है?
उतर – निम्नलिखित आधारों पर सामाजिक बंटवारा होता है:
(i) क्षेत्रीय भावना, (ii) धर्म (iii) जाति (iv)उच्च नीच की भावना।
प्रश्न 2. सामाजिक विभाजन एवं विभिन्नता में क्या अंतर है?
उतर – सामाजिक विभाजन एवं विभिन्नता में यह अंतर है कि सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं दलित और स्वर्ण का अंतर अमीर और गरीबों का अंतर वंचित आवर्त सुविधा प्राप्त लोगों का अंतर सामाजिक विभाजन का रूप ले लेता है जब यह विभाजन स्पष्ट रूप से प्रस्तुत होने लगते हैं तो इन्हीं सामाजिक विभिन्नता कहते हैं।
प्रश्न 5. सामाजिक विभाजन के कितने निर्धारक तत्व है? वर्णन कीजिए।
उतर – सामाजिक विभाजन के तीन निर्धारक तत्व हैं, जो निन्नलिखित है:
(i) राष्ट्रीय चेतना (i) क्षेत्रीय भावना तथा (i)सरकार का रूप।
(i) छेत्रीय भावना-व्यक्ति को अपनी पहचान बनाए रखने के लिए राष्ट्रीयता आवश्यकता होती है। कभी-कभी राष्ट्रीयता परिवर्तित होकर उपराष्ट्रीयता भी पनपने लगती हैं। और यही समाजिक विभाजन का कारण बनती है ।
(ii) क्षेत्रीय भावना- सभी लोगों में कुछ ना कुछ क्षेत्रीय भावना तो होती ही है लेकिन जब यह चरमाअवस्था पर पहुंच जाती है तो नुकसानदेह भी हो जाती है। उधारण के लिए मुंबई और ऐसे ही शहरो में हो रहे बिहारियों के साथ कुव्यवहार।
(iii) सरकार का रूप- सामाजिक विभाजन सरकार के रूप और उसके व्यवहार के कारणों पर भी निर्भर करता है। समाज के लोगों की मांगों पर सरकार की क्या प्रतिक्रिया हो रही है या सरकार के कार्यकलापों का समाज के लोगों पर क्या प्रतिक्रिया होती है_इन बातों पर भी समाज का विभाजन निर्भर करता है।
प्रश्न 6. सांप्रदायिकता की परिभाषा दीजिए।
उतर – जब लोग यह माहसूस करने लगते हैं कि जाती ही समुदाय का निर्माण करती है और समुदाय राजनीति को प्रभावित करने लगता है तो इसी इस स्थिति को सांप्रदायिकता कहते है।
प्रश्न 7. भारत में जाति या जातीयता का उद्भव कैसे हुआ?
उतर – वैदिक काल में भारतीय समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया था। यह केवल काम-धाम को व्यवस्थित ढंग से संपादन के लिए किया गया था। एक ही घरों में चार वर्णों के व्यक्ति रहते थे।साथ साथ खाना पीना होता था। परस्पर कोई वैमनस्यता नहीं रहती थी। इसे जन्मना वर्ण व्यवस्था कहते थे। कालक्रम से यह जन्मना वर्ण व्यवस्था कर्मना वर्ण व्यवस्था में बदल गई।
अब तो व्यक्ति जो काम करता था उसकेवंशज भी वही काम करने के लिए विवश हो गए। अब वर्ग को जाती कहां जाने लगा।। अब तो जिस जाति का रहता था उसका शादी विवाह उसी जाति में होने लगा। आगे चलकर जाती में भी जाति या उप जातियां होने लगी। भारत में जाति या जातीय का उद्भव इसी प्रकार हुआ।
Political Chapter 1 लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी Class 10
लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी के कोई भी प्रश्न अब आप बड़े आसानी से बना सकते है बस आप को इन प्रश्न को कई बार पढ़ लेना है और हमने QUIZ Format मे आप के परीक्षा के मध्यनाज़र इस पोस्ट को तैयार किया है class 10h Political लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी इस पोस्ट मे दिए गए है तो अब आप को परीक्षा मे कोई भी लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी के प्रश्न से डरने की जरूरत नहीं फट से उतर दे
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लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी Class 10 Subjective
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