Class 10 Subjective History Chapter 7 व्यापार और भूमंडलीकरण सामाजिक विज्ञान (Social Science) एकमात्र ऐसा विषय है जिसके माध्यम से आप परीक्षा में ज्यादा अंक प्राप्त कर सकते हैं लेकिन इसके अंतर्गत आने वाले इतिहास (History) भूगोल अर्थशास्त्र पॉलिटिकल साइंस काफी महत्वपूर्ण विषय है और आपको इन सभी विषयों की तैयारी करना बेहद जरूरी है आपको बता दे कि इसी क्रम में आपका मदद करेंगे मंटू सर Mantu Sir(Dls Education) के द्वारा बनाए गए
सब्जेक्टिव मॉडल सेट (Subjective Model Set) इस मॉडल सेट में आपको कई सारे महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव के प्रश्न (History Important Subjective Questions) उपलब्ध है और आपको बता दे कीइस मॉडल सेट में पिछले कुछ वर्षों के दौरान पूछे जाने वाले सब्जेक्टिव प्रश्नों को जोड़ा गया है जिससे कि आप परीक्षा में ज्यादा प्राप्त कर सके आपको बता दें कि चैप्टर वाइज सब्जेक्ट प्रश्न (Chapter Wise Subjective Questions) आप लोग के लिए उपलब्ध कराया गया है
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Class 10 Subjective History Chapter 7 व्यापार और भूमंडलीकरण
व्यापार और भूमंडलीकरण इस पाठका परीक्षा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है विश्व बाजार किसे कहते हैं औद्योगिक क्रांति क्या है आर्थिक संकट से आप क्या समझते हैं भूमंडलीकरण ब्रिटेन ऑर्डर्स सम्मेलन बहुराष्ट्रीय कंपनी1929 की आर्थिक संकट के बारे में आपको जानकारी मिलती है या पाठ काफी महत्वपूर्णहै इस पाठ से परीक्षा में कुछ प्रश्न (Important Questions) पूछे जाते हैं
7. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (लगभग 20 शब्दों में उत्तर दें):
प्रश्न 1. विश्व बाजार किसे कहते हैं?
उत्तर- जिस स्थान पर था जिस बाजार में विश्व भर की सभी वस्तुएँ आम लो को खरीदने के लिए उपलब्ध रहती है, उसे विश्व बाजार कहते है।
प्रश्न 2. औद्योगिक क्रांति क्या है
उत्तर- आधुनिक तरीकों से अकस्मात हुए उद्योगों के विकास को औद्योगिक क्रांति चलाई जाती हैं। जैसे- वाष्प शक्ति से।
प्रश्न 3. आर्थिक संकट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- आर्थिक संकट तब उत्पन्न होता है, जब अर्थ तंत्र में आनेवाली वैसी स्थिति लाख लोग बेरोजगार हो जाते हैं, बैंकों का दिवाला निकल जाता है और वस्तु तथा मुद्रा जब उसके तीनों आधार कृषि, उद्योग और व्यापार का विकास ठप पड़ जाय। इसमें लाखो दोनों की दर कम हो जाती है।
प्रश्न 4. भूमंडलीकरण किसे कहते हैं?
उत्तर- भूमंडलीकरण उसे कहते हैं, जब पूरा विश्व एक बाजार के रूप में काम करने लगता है। दुनिया के सभी देश व्यापार और उद्योग की दृष्टि से आपस में पूर्णतः मिल जाते है
प्रश्न 5. बेरेटेन उड्स सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर- बेरेटेंन उड्स’ सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य था कि औद्योगिक विश्व में आर्थिक स्थिरता एवं पूर्ण रोजगार की स्थिति को बनाए रखा जाय। इसी सम्मेलन के फलस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की स्थापना हुई।
प्रश्न 6. बहुराष्ट्रीय कम्पनी क्या है ?
उत्तर- अपने देश के अलावा दूसरे देशों में उद्योग लगाने वाली कम्पनी को बहुराष्ट्रीय कम्पनी कहते हैं। वह कम्पनी पूँजी तो अपनी लगाती है, लेकिन कच्चा माल और श्रम उस देश विशेष से ही लेती है
लघु उत्तरीय प्रश्न (लगभग 60 शब्दों में उत्तर )
1.1929 के आर्थिक संकट के कारणों को संक्षेप में राष्ट करें।
उत्तर- 1929 के आर्थिक संकट के कारण स्वयं वे ही देश थे, जिन्हें इस संकट को झेलना पड़ा। प्रथम विश्वयुद्ध के चार वर्षों बाद तक यूरोप के अलावे पूरे विश्व में बाजार पर आधारित अर्थव्यवस्था का काफी विस्तार हुआ। उनके मुनाफे बढ़ते गए। दूसरे अधिकांश लोग गरीबी और अभाव की चक्की में पिसने लगे। नई तकनीक तथा बढ़ते मुनाफा के कारण उत्पादन तो बढ़ता गया, लेकिन एक समय ऐसा आया कि उत्पादित वस्तुओ के खरीदार गायब हो गए। लोगों के खरीदने की क्षमता समाप्त हो गई। कृषि उत्पाद की भी रुक गई। आर्थिक संकट की यह स्थिति 1929 से 1933 तक रही।
प्रश्न 2. औद्योगिक क्रांति ने किस प्रकार विश्व बाजार के स्वरूप को विस्तृत किया ?
उत्तर- औद्योगिक क्रांति ने बाजार को सम्पूर्ण आर्थिक गतिविधियों का केन्द्र बना दिया। जैसे जैसे औद्योगिक क्रांति का विकास हुआ, बाजार का रूप विश्वव्यापी होता गया। यूरोपीय औद्योगिक देशों ने 20वीं सदी के पहले तक सभी महादेशों में अपनी पहुँच बना ली। भले ही यह सब शक्ति के बल पर हुआ, लेकिन हुआ। सभी देश उपनिवेशों की होड़ में आगे निकलना चाहते थे। कारण कि उन्हें कच्चे माल का दोहन तो करना ही था, तैयार माल के लिए बाजार भी आवश्यक था। इस प्रकार हम देखते हैं कि यूरोपीय देशों की प्रतिद्वन्द्विता ने संसार को विश्व बाजार के रूप में विस्तृत कर दिया।
प्रश्न 3. विश्व बाजार के स्वरूप को समझाइए ।
उत्तर- औद्योगिक क्रांति के प्रकार के साथ बाजार का रूप भी विश्वव्यापी होता गया। इसमें व्यापार के साथ ही श्रमिकों का पलायन और पूँजी का प्रवाह—इन तीनों आर्थिक प्रवृत्तियों का जन्म हुआ। व्यापार मुख्यतः कच्चे मालों को इंग्लैंड के अलावा अन्य यूरोपीय देशों को भी भेजना और फिर वहाँ से तैयार माल मांगकर विश्व के कोने-कोने में पहुँचाने तक सीमित था। श्रमिकों का प्रवाह भी हुआ। भारत और वह भी बिहार और उत्तर प्रदेश के श्रमिकों को अनुबंध के आधार पर अपने उपनिवेशों में भेजा जाने लगा। वहाँ ये कृषिगत कामों में लगकर गन्ना, चाय, तम्बाकू आदि को उपजाते थे। अब बाजार स्थानीय या राष्ट्रीय न रहकर विश्वव्यापी रूप से फैल गया।
प्रश्न 4. भूमंडलीकरण में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के योगदान (की भूमिका) को स्पष्ट करें।
उत्तर- बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ ही भूमंडलीकरण का लाभ उठा सकेगी, न कि बाजार में कपड़ा या चावल दाल बेचने वाले ? बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ ही विभिन्न देशों में पूँजी लगा सकती हैं और कारखाने लगा सकती हैं। उनको लाभ होता है कि उन्हें कारखाना लगाने के लिए भी जमीन मिल जाती है। कच्चा माल मिल जाता है। सस्ते श्रम’ की प्राप्ति हो जाती है और सबसे बड़ी बात कि उन्हें बाजार भी मिल जाता है।
वे अधिकांश उन्हीं देशों में कारखाना लगाते हैं, जहाँ की जनसंख्या घनी होती है या घनी जनसंख्या वाले देश निकट होते हैं और बन्दरगाह की सुविधा उपलब्ध रहती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि भूमंडलीकरण में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के योगदान या उनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है। वाले प्रयासों पर प्रकाश डालें ।
प्रश्न 5.1950 के बाद विश्व अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए किए जाने प्रयासों पर प्रकाश डालें।
उत्तर- दो महायुद्धों के मध्य मिले आर्थिक अनुभवों से सीख लेते हुए यह तय किया गया कि बाजार आधारित अर्थव्यवस्था बिना उपभोग के कायम नहीं रह सकती। दूसरी बात यह थी कि अर्थव्यवस्था की रीढ़, जो वास्तव में कोई-न-कोई रोजगार के लक्ष्य हो, को तभी हासिल किया जा सकता है, जब सरकार के पास वस्तुओं, पूँजी और श्रम की आवाजाही को नियंत्रित करने की ताकत उपलब्ध हो।
अतः द्वितीय महायुद्ध के बाद अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य यह था कि औद्योगिक विश्व में आर्थिक किया गया कि इसी आधार पर विश्व शांति भी स्थापित रखी जा सकती है। स्थिरता और पूर्ण रोजगार की स्थिति को बनाए रखा जाय। साथ ही यह भी महसूस
प्रश्न 6. भारत पर भूमंडलीकरण के प्रभाव को स्पष्ट करें।
उत्तर- भूमंडलीकरण की प्रक्रिया 19वीं सदी के मध्य से लेकर प्रथम महायुद्ध के आरंभ तक काफी तीव्र रहा। इस दौरान तैयार माल, पूजा और श्रम तीनों का अंतर्राष्ट्रीय प्रवाह लगातार बढ़ता गया। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। भारतीय कच्चा माल तथा श्रम विश्व में, खासकर ब्रिटिश विश्व में फैलता चला गया। यहाँ जाने वाले श्रम गिरिमिटया मजदूर’ कहे गए। 1914 से 1991 के बीच भूमंडलीकरण की प्रक्रिया धीमी हो गई।
द्वितीय महायुद्ध के बाद विश्व में स्पष्टतः दो गुट बन गए। पहला पूजीवादी। देश का अमेरिकी गुट तथा दूसरा साम्यवादी देशों का रूसी गुट भारत इनमें से किसी का पिछलग्गू नहीं बना। इसने निर्गुट देशों का एक तीसरा गुट बनाया, जिसका नेतृत्व ये देश ही करते थे। 1991 के बाद भूमंडलीकरण की प्रक्रिया तेजी से फैली। ऐसे तो भारत में पहले से ही बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ कार्यरत थी। अब उनकी संख्या बढ़ गई। भारत के पूँजीपति भी विदेशों में पूँजी लगाने लगे। आज पूरा विश्व एक बाजार के रूप में विकसित हो गया है।
प्रश्न 7. विश्व बाजार की लाभ-हानि पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर- विश्व बाजार ने व्यापार और उद्योगों को द्रुतगति से बढ़ाया, जिससे पूँजीपति, मजदूर और मध्यवर्ग—इन तीन वर्गों का अस्तित्व सामने आया। बैकिंग व्यवस्था का विस्तार हुआ। भारत जैसे गुलाम देशों का औद्योगीकरण और आधुनिकीकरण विश्व
बाजार के आलोक में ही हुआ। तम्बाकू, रबर, नील, चाय, कॉफी, गन्ना आदि कृषिगत वस्तुओं की उपज की वृद्धि विश्व बाजार ने ही करवाई। यह सब लाभ का पक्ष रहा। हानि रही कि नकदी फसल उपजाने के चक्कर में खाद्यान्न की उपज कम हो गई। इनके लिए आयात का आसरा बच गया।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें) :
प्रश्न 1. 1929 के आर्थिक संकट के कारणों और परिणमो को स्पष्ट करें।
उत्तर- 1929 के आर्थिक संकट का प्रमुख कारण था कृषि और उद्योग में अति उत्पादकता । उत्पादन इतना बढ़ गया कि उसके खरीदारों की आर्थिक शक्ति इतनी क्षीण हो गई कि उसे खरीद सकने की शक्ति उनमें नहीं थी। कारण यह था कि ग्राहकों की आय के स्रोत समाप्त थे। लाखों-लाख लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया। कई कारखाने बन्द हो गए। अमेरिका के अनेक बैंक दिवालिया हो गये। सुना यहाँ तक जाता है कि बाजार को स्थिर रखने के लिए अमेरिका ने लाखों टन गेहूँ को जला दिया। उसने ऐसा इसलिए किया कि दर अधिक नीचे नहीं गिरने पावे। जिनके पास पैसा था |
उसने जो कुछ खरीद सकने की स्थिति में थे, वे बिना जरूरत भी सामान खरीद कर उपभोग करने लगे। धीरे-धीरे उनका जेब भी खाली हो गया। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री काडलिफ ने अपनी पुस्तक ‘दि कॉमर्स ऑफ नेशन’ में लिखा कि विश्व के सभी भागों में कृषि उत्पादन एवं खाद्यान्नों के मूल्य की विकृति 1929-33 के आर्थिक संकट का मुख्य कारण थी। आर्थिक मंदी का परिणाम तो लगभग पूरे विश्व को भुगतना पड़ा, लेकिन सबसे अधिक कुप्रभावित होने वाला देश था अमेरिका। मंदी के कारण अमेरिकी बैंकों ने कर्ज देना बन्द कर दिया। जो कर्ज दिया भी जा चुका था,
उसकी वसूली में तेजी कर दी गई। कुछ कड़ाई भी हुई। किसनों की उपज बिकते नहीं थे, जिससे वे कंगाल हो गए। बैंकों से ऋण नहीं मिलने से व्यापार चौपट होने लगे। उधर कर्ज वसूली नहीं होने से बैंक भी कंगाल हो गए। अनेक बैंकों का तो दिवाला तक निकल गया। वे पूर्णतः बन्द हो गए। 1933 आते-आते 4000 से अधिक बैंक बन्द हो गए। इसी प्रकार इस अवधि तक लाखों कम्पनियाँ चौपट हो गई। रूस के अलावे विश्व के सभी देशों की स्थिति यही थी।
प्रश्न 2. 1945 से 1960 के बीच विश्व स्तर पर विकसित होने वाले आर्थिक संबंधों पर प्रकाश डालें ।
उत्तर- 1945 से 1960 के बीच विकसित होने वाले अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को तीन क्षेत्रों में बाँटकर हम अध्ययन करेंगे। 1945 में अभी-अभी विश्व युद्ध समाप्त हुआ था। युद्ध समाप्त होते ही विश्व दो गुटों में बँट गया। एक गुट का नेतृत्व पूँजीवादी देश अमेरिका कर रहा था और दूसरे गुट का नेतृत्व साम्यवादी देश रूस कर रहा था। रूस चाहता था कि अधिक से अधिक देश साम्यवादी छाते की नीचे आ जाए जबकि अमेरिका किसी तरह साम्यवाद को फैलने से रोकना चाहता था। रूस के लाख प्रयास के बाद पूर्वी यूरोप के कुछ देशों तथा एशिया में सुदूर पूर्व के देश जैसे कोरिया और वियतनाम में ही रूस को सफलता मिली।
चीन में राजतंत्र था सो 1948 में वहाँ पूर्णतः साम्यवादी व्यवस्था लागू हो गई। लेकिन इसमें रूस का कोई हाथ नहीं था । वहाँ की जनता ने ही उस शासन को स्वीकार कर लिया। फिर भी फारमोसा में चांगकाई शेक पूँजीवादी चीन का प्रतिनिधित्व करते रहा। आज भी वहाँ यही स्थिति है। दूसरा क्षेत्र पूँजीवादी अर्थतंत्र वाला था, जिसका नेतृत्व अमेरिका करता था । अमेरिका ने अपना उद्देश्य ही बना लिया कि किसी प्रकार साम्यवादी प्रभाव बढ़ने नहीं पावे । उसके प्रभाव को किसी प्रकार रोका जाय । उसके लिए चाहे जो हो जाय।
इस क्रम में केवल कोरिया और वियतनाम में ही लाखों अमेरिकी सैनिक मारे गए और अरबों डालर का आर्थिक नुकसान हुआ। अमेरिका कभी-कभी जोर जबरदस्ती भी करता था । पेट्रोलियम उत्पन्न करने वाले अरब देशों को विभिन्न तरह से दबाकर अपने प्रभाव में रखना चाहता था ताकि भविष्य में उसे तेल की कमी नहीं होने पावे तीसरा क्षेत्र निर्गुट देशों का था, जो न तो पूँजीवाद और न साम्यवाद की ओर थे। ये तटस्थ देश थे। निर्गुट पक्ष तैयार करने में भारत का हाथ था।
प्रश्न 3. भूमंडलीकरण के कारण आमलोगों के जीवन में आनेवाले परिवर्तनों को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- भूमंडलीकरण में आर्थिक स्वरूप का स्थान महत्त्वपूर्ण है। मुक्त बाजार, मुक्त व्यापार, खुली प्रतिस्पर्द्धा, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का प्रसार, उद्योग तथा सेवा क्षेत्रों का निजीकरण, आर्थिक भूमंडलीकरण के मुख्य तत्व है। इस प्रक्रिया का लक्ष्य है कि विश्व संगठन और संस्थाओं तथा क्षेत्रीय संघों की बड़ी भूमिका है। आज के समय में आर्थिक को एक मुक्त व्यापर क्षेत्र में बदल दिया जाय।
इसमें महत्त्वपुर्ण अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय भूमंडलीकरण का प्रभाव आम जीवन पर साफ दिख रहा है। आज भूमंडलीकरण के कारक जीवीकोपार्जन के क्षेत्र में काफी बदलाव आया है। इस बदलाव की झलक शहर से गाँव तक सभी जगह स्पष्ट देखा जा सकता है। छोटे बाजार हो या कस्बा, सभी जगह बदलाव दिखाई दे रहा है। वास्तव में इस बदलाव का आरम्भ 1991 के बाद ही दिखाई देने लगा था। सम्पूर्ण विश्व में सेवा क्षेत्र का विस्तार काफी तीव्र गति से हुआ है।
इसमें जीवीकोपार्जन के अनेक नए क्षेत्र सामने आए हैं। सेवा क्षेत्र का तात्पर्य वैसी आर्थिक गतिविधियों से है, जिनमें लोगों से विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ प्रदान करने के बदले नकद मूल्य लिया जाता है। यातायात के साधनों की सुविधा, बैंकिंग व्यवस्था तथा बीमा क्षेत्र में दी जाने वाली सुविधा तो हैं ही, दूरसंचार और सूचना तकनीक, होटल और रेस्टुरेंट, बड़े शहरों में शॉपिंग मॉल, काल सेंटर इत्यादि की सुविधा अब लगभग सर्वत्र उपलब्ध है। यातयात में बस, रेल, टैक्सी, हवाई जहाज हैं तो दूरसंचार में मोबाइल फोन, कम्प्यूटर और इंटरनेट हैं।
शॉपिंग मॉल उस स्थान को कहते हैं, जहाँ एक ही छत के नीचे आवश्यकता की सारी वस्तुएँ मिल जाती हैं। कॉलसेंटर वह स्थान है जहाँ किसी कम्पनी से सम्बंधित सभी क्रियाकलापों के विषय में फोन या इंटरनेट पर जानकारी मिल जाती है। ये सभी क्षेत्र भूमंडलीकरण के दौरान काफी तेजी से फैले हैं। इनसे लोगों को जीवीकोपार्जन के अनेक नए अवसर मिले हैं।
प्रश्न 4. 1919 से 1945 के बीच विकसित होने वाले राजनैतिक और आर्थिक सम्बंधों पर टिप्पणी लिखें ।
उत्तर- प्रथम महायुद्ध 1918 में समाप्त हुआ । यह युद्ध कुछ देशों को खुशहाल बनाया तो किसी-किसी को कंगाल बना दिया। सबसे आर्थिक हानि तो जर्मनी की हुई बरासाय की संधि में मित्र देशों ने उस पर इतना हर्जाना लगाया कि उसकी कमर टूट गई। आर्थिक के अलावा राजनीतिक रूप से भी वह पंगु बन गया। मित्र देशों के साथ लड़ने वाले इटली की भी हालत कुछ अच्छी नहीं थी। विजय के बावजूद उसे कुछ नहीं मिला, जिससे वह राजनीतिक और आर्थिक दोनों रूपों से कुंठित रहने लगा। परिणाम हुआ कि इटली में फासीवाद और जर्मनी में नाजीवाद को बढ़ने से कोई रोक नहीं सका।
1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति तक फासीवाद तथा नाजीवाद के चलते लोग तबाही में पड़ते रहे। लेकिन प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद 1929 में जो आर्थिक मंदी आई, रूस और फ्रांस को छोड़ सारे विश्व को अपने चपेट में ले लिया। हुआ यह कि युद्ध उसने के चलते युद्ध में संलग्न सभी देश अपने-अपने कारखानों के उपयोगी वस्तुओं को बनाना छोड़ युद्ध के हथियार बनाने में लग गए। परिणाम हुआ कि आवश्यक वस्तुओं का बाजार में भारी कमी दिखाई देने लगी। युद्ध के बाद कारखाने अबाध गति से उपभोक्ता वस्तुओं को बनाने लगे। दूसरी ओर युद्ध की समाप्ति के बाद फौज में छँट गया का क्रम जारी रहा।
इससे विश्व में बेकारी की एक फौज खड़ी हो गई। कारखानों में सामान तो बने, किन्तु विके नहीं, इससे स्टॉक जमा हो गया और पूँजी की कमी हो गई। इससे 1929 में भारी आर्थिक मंदी आई। औद्योगिक वस्तुओं के साथ कृषिगत वस्तुओं का बिकना भी बन्द हो गया। किसी प्रकार अमेरिका के प्रयास से इस मंदी पर काबू पाया गया। पुनः 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया जो 1944 तक चला। इस युद्ध में यूरोपीय देशों का कचूमर निकाल दिया। वे इतने कमजोर हो गए कि उनके सभी उपनिवेश एक-एक कर स्वतंत्र हो गए।
प्रश्न 5. दो महायुद्धों के बीच और 1945 के बाद औपनिवेशिक देशों में होने वाले राष्ट्रीय आन्दोलनों पर एक निबंध लिखें।
उत्तर- प्रथम महायुद्ध ने यूरोप की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर दिया। उस समय विश्व में ब्रिटेन ही था जो विश्व के अर्थतंत्र को नियंत्रित और संचालित कर सकता था। के कारण वह स्वयं जर्जर हो चुका था। उसके सभी आर्थिक साधन पूर्णतः लेकिन युद्ध नष्ट हो चुके थे। यूरोप के अन्य महत्वपूर्ण अर्थतंत्र जर्मनी, फ्रांस, इटली इत्यादि भी बहुत कुप्रभावित हुए। इनमें से जर्मनी को तो बरसाय की संधि द्वारा पूर्णतः पंगु बना दिया गया, जबकि फ्रांस जर्मनी से इतनी जुर्माने की रकम मिल गई कि उसपर किसी प्रकार का कुप्रभाव नहीं पड़ा। इटली को युद्ध से कोई लाभ नहीं हुआ था,
जबकि उसे बहुत आर्थिक हानि उठानी पड़ी थी। इसके विपरीत संयुक्त राज्य अमेरिका तथा औपनिवेशिक देशों का अर्थ तंत्र काफी मजबूत हो गया। भारत में इसी समय कपड़ा, जूट, खनन, लोहा आदि क्षेत्रों में काफी विकास हुआ। इसमें भारतीय उद्योगपतियों टाटा, बिड़ला, गोदरेज, जमनालाल बाजाज, डालमिलया आदि इसी विकास की उपज हैं। प्रथम महायुद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने यूरोपीय अर्थव्यवथा को सम्भालने का काफी प्रयास किया किन्तु 1929 आते-आते वह स्वयं एक बड़ी आर्थिक मंदी में फँस गया। उसके लाखों कारखाने बन्द हो गए। हजारों बैंक दिवालिया हो गए।
अमेरिका ही नहीं सारा विश्व भारी आर्थिक मंदी में घिर गया। एक और यूरोपीय देश आर्थिक मंदी से जूझ रहे थे तो दूसरी ओर उनके उपनिवेशों में स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रति एक लहर चल पड़ी। आन्दोलन तेज-से-तेजतर होते गये। एशिया में न केवल भारत बल्कि हिन्द चीन के देशों में भी आंदोलन तेज हो गए। दक्षिण अफ्रीका भी रंग भेद की नीति समाप्त कर बराबरी का हक माँगने लगा। अफ्रीका में और भी यूरोपीय उपनिवेश के देश स्वतंत्र होने के लिए छटपटाने लगे। तुर्की में कमाल पाशा का उदय और खलीफा का प्रथम युद्ध के तुरंत बाद पतन हो चुका था ।
HISTORY Chapter 7 व्यापार और भूमंडलीकरण Class 10
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व्यापार और भूमंडलीकरण Class 10 Subjective
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