Bihar Board 10th Economics Chapter 4 Subjective हमारी वित्तीय संस्थाएँ | Social Science Economics Subjevtive Question 2025

Bihar Board 10th Economics Chapter 4 Subjective हमारी वित्तीय संस्थाएँ अर्थशास्त्र एक ऐसा टॉपिक है सामाजिक विज्ञान (Social Science) में जिसमें आपको बचत रोजगार अर्थव्यवस्था इत्यादि के बारे में पढ़ने को मिलती है यह सभी महत्वपूर्ण टॉपिक(Economics Important Topics) है न केवल परीक्षा की दृष्टि से बल्कि आपके आम जीवन में भी इससे आपको काफी लाभ मिलता है बिहार बोर्ड 10वीं परीक्षा 2025 (Bihar Board 10th Exam 2025) की तैयारी कर रहे हैं तो आपको अर्थशास्त्र इकोनॉमिक्स को जरूर पढ़ना चाहिए क्योंकि इससे कई बार परीक्षा में ज्यादा अंक का प्रश्न पूछे जाता है ऑब्जेक्टिव में और सब्जेक्टिव में भी इस विषय की तैयारी करने में मंटू सर Mantu Sir (Dls Education) के द्वारा उपलब्ध कराए गए मॉडल सेट Model Set जो की चैप्टर वाइज(Chapter Wise Questions) तैयार किए गए हैं और पिछले वर्षों के प्रश्न पत्र से भी प्रश्न को चुनकर इस मॉडल सेट(Economics Model Set 2025) में रखा गया है इससे आपको परीक्षा में आज ज्यादा अंक प्राप्त करना मदद मिलेगा कई बार इसी मॉडल सेट (Model Paper) से परीक्षा में काफी प्रश्न पूछे जाते हैं ऐसे में आपको इनका ध्यान पूर्वक पढ़ना चाहिए

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Bihar Board 10th Economics Chapter 4 Subjective हमारी वित्तीय संस्थाएँ

 

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions) :

प्रश्न 1. वित्तीय संस्थान से आप क्या समझते हैं?

उत्तर- वित्तीय संस्थान उसे कहते हैं, जो साख और ऋण की आवश्यकता की पूर्ति करते हैं। उदाहरण में बैंकों के नाम दिए जा सकते हैं।

प्रश्न 2. राज्य की वित्तीय संस्थानों को कितने भागों में बाँटा जाता है?

उत्तर- राज्य की वित्तीय संस्थानों को मुख्यतः दो भागों में बाँटा जाता है। पहली गैर-संस्थागत तथा दूसरी संस्थागत । गैर-संस्थागत संस्थान के उदाहरण हैं ग्रामीण महाजन तथा संस्थागत संस्थान सहकारी बैंक हैं ।

प्रश्न 3. किसानों को साख अथवा ऋण की आवश्यकता क्यों होती है ?

उत्तर-  किसानों के पास आय की कमी होती है, जिससे वे खास तौर पर गरीब होते हैं । किन्तु कृषि कार्य में उन्हें पूँजी की आवश्यकता होती है। इसी कारण किसानों को साख अथवा ऋण की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 4. व्यावसायिक बैंक कितने प्रकार की जमा राशि स्वीकार करते हैं?

उत्तर-  व्यावसायिक बैंक चार प्रकार की जमा राशि स्वीकार करते हैं। जैसे : (i) स्थायी जमा, (ii) चालू जमा, (iii) संचयी जमा तथा (iv) आवर्ती जमा ।

प्रश्न 5. सहकारिता से आप क्या समझते हैं?

उत्तर- सहकारिता से तात्पर्य मिल-जुलकर कर काम करने से है। लेकिन अर्थशास्त्र की दृष्टि से यह परिभाषा अपूर्ण है। पूर्ण परिभाषा यह है कि “सहकारिता वह संगठन है, जिसके द्वारा दो या दो से अधिक व्यक्ति स्वेच्छापूर्वक मिल-जुलकर समान स्तर पर आर्थिक हितों की पूर्ति करते हैं।

प्रश्न 6. स्वयं सहायता समूह से आप क्या समझते हैं?

उत्तर-  स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) उसे कहते हैं जिसमें 15 से 20 महिलाएँ मिलकर एक समूह बनाती हैं और अपनी बचत के रुपयों तथा बैंक से लघुऋण लेकर अपने सदस्यों की पारिवारिक आवश्यकाताओं की पूर्ति करती हैं। यह समूह विकास की गतिविधियाँ चलाकर गाँव का विकास और महिला सशक्तिकरण में योगदान करता है।

प्रश्न 7. भारत में सहकारिता की शुरुआत किस प्रकार हुई ? संक्षिप्त वर्णन कीजिए ।

उत्तर-  भारत में 19वीं सदी के आरम्भ में ही निर्धनों के उत्थान एवं किसानों को सस्ती दर पर ऋण दिलाने के लिए सहकारी समितियों की स्थाना पर जोर दिया जाने लगा था। इसके लिए सबसे पहले 1904 ई. में एक ‘सहकारिता साख समिति’ अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम के अनुसार गाँव या शहर में कोई भी 10 व्यक्ति मिलकर सहकारी साख समिति की स्थापना कर सकते थे।

प्रश्न 8. सूक्ष्म वित्त योजना को परिभाषित कीजिए ।

उत्तर-  सूक्ष्म वित्त योजना के द्वारा गाँव, कस्बा जिला आदि में गरीब परिवारों को ‘स्वयं सहायता समूह’ से जोड़कर ऋण मुहैया कराने की जो व्यवस्था जारी हुई उसे ‘सूक्ष्म वित्त योजना’ कहा गया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions) :

प्रश्न 1. राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान किसे कहते हैं? इसे कितने भागों में बाँटा जाता है ? वर्णन करें ।

उत्तर- जो संस्थान पूरे देश के लिए वित्त प्रबंधन के कार्यों का सम्पादन करते हैं, उन्हें राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान कहते हैं। इसे दो भागों में बाँटा गया है। वे हैं : (क) भारतीय मुद्रा बाजार तथा (ख) भारतीय पूँजी बाजार । (क) जहाँ उद्योग एवं व्यवसाय के लिए अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन वित्तीय व्यवस्था एवं प्रबंधन किया जाता है, उस क्षेत्र को मुद्रा बाज़ार कहा जाता है। (ख) भारतीय पूँजी बाजार भारतीय पूंजी बाजार में उद्योग और व्यापार के लिए दीर्घकालीन वित्तीय प्रबंधन की व्यवस्था की जाती है। सामान्यतः भारतीय पूँजी बाजार को दो क्षेत्रों में बाँटा जाता है : (i) संगठित क्षेत्र तथा (ii) असंगठित क्षेत्र । (i) संगठित क्षेत्र-संगठित क्षेत्र में वाणिज्य बैंक, निजी बैंक, सार्वजनिक बैंक तथा विदेशी बैंक आते हैं। भारत में संगठित क्षेत्र में अनेक बैंक हैं। जैसे : (क) केन्द्रीय बैंक, (ख) वाणिज्य बैंक, (ग) सहकारी बैंक आदि । (ii) असंगठित क्षेत्र—असंगठित क्षेत्र ग्रामीण किसानों को अल्पकालीन ऋण की व्यवस्था करते हैं । वे हैं ग्रामीण महाजन, सेठ-साहुकार, स्थानीय व्यापारी तथा रिश्तेदार वगैरह ।

प्रश्न 2. राज्यस्तरीय संस्थागत वित्तीय स्रोत के कार्यों का वर्णन करें ।

उत्तर- राज्य स्तरीय संस्थागत वित्तीय स्रोत की संस्थाएँ हैं : (i) सहकारी बैंक, (ii) प्राथमिक सहकारी समितियाँ, (iii) भूमि विकास बैंक, (iv) व्यावसायिक बैंक, (v) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक इत्यादि । इन संस्थाओं के कार्यों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है : (i) सहकारी बैंकों द्वारा अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण की सुविधा दी जाती है। केन्द्रीय सहकारी बैंक तथा राज्य सहकारी बैंक सामान्य बैंकिंग सुविधा भी प्रदान करते हैं। (ii) प्राथमिक सहकारी समितियाँ कृषि क्षेत्र को अल्पकालीन ऋण देकर किसानों की आवश्यकता की पूर्ति करती हैं। (iii) भूमि विकास बैंक भूमि के विकास कार्यों के लिए किसानों को दीर्घकालीन ऋण की सुविधा मुहैया कराते हैं (iv) व्यावसायिक बैंक देश में हर प्रकार के बैंकिंग सुविधा प्रदान करते हैं। खासकर व्यापारियों के रुपयो का लेन-देन करते हैं। इसके अलावे अब ये किसानों को भी ऋण देने लगे हैं। (v) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक सीमांत किसानों, छोटे किसानों, कारीगरों तथा कमजोर वर्ग को ऋण देकर उन्हें मदद करते हैं।

प्रश्न 3. व्यावसायिक बैंक के प्रमुख कार्यों की विवेचना करें ।

उत्तर- व्यावसायिक बैंक के निम्नलिखित कार्य हैं :

(i) जमा राशि को स्वीकार करना (Accepting Deposits) – जमा राशि स्वीकार करना व्यावसायिक बैंकों का सर्वाधिक महत्त्व का काम है। ये अपने ग्राहकों से जमा के रूप में मुद्रा प्राप्त करते हैं। इससे सामान्य ग्राहकों को लाभ होता है कि उनके लाभ का कुछ अंश बच जाता है, जो वे बैंक के बचत खाते में जमा करते हैं। इससे उन्हें लाभ होता है कि उनकी बचत सुरक्षित रहती है और ब्याज के रूप में उन्हें कुछ लाभ भी प्राप्त हो जाता है।

(ii) ऋण प्रदान करना (Providing Loans ) — व्यावसायिक बैंक का दूसरा महत्त्व का काम है कि ये लोगों को, खासतौर पर व्यापारियों को ऋण प्रदान करते हैं और ब्याज कमाते हैं। यह ब्याज ही बैंकों की मुख्य आय होती है। बैंकों में जो रुपया जमा रहता है, उसी में से वे ऋण देते हैं, कारण कि जमाकर्ता सभी रकम एक साथ निकाल लेंगे, इसकी आशा कम रहती है। ऋण प्रदान करना ही बैंकों का आधार होता है ।

(iii) सामान्य उपयोगिता सम्बन्धी कार्य (General Utility Functions)—इन कार्यों के अलावा व्यावसायिक बैंक कुछ अन्य कार्यों का भी सम्पादन करते हैं। जैसे : यात्री चेक एवं सांख प्रमाण-पत्र जारी करना, लॉकर की सुविधा देना, ATM एवं क्रेडित कार्ड की सुविधा देना, व्यापारिक सूचनाएँ एवं आँकड़े एकत्र करना। इन सेवाओं से बैंक के ग्राहकों को बहुत सुविधा होने लगी है।

(iv) एजेंसी सम्बन्धी कार्य (Agencies Functions) — आज व्यावसायिक बैंक अपने ग्राहकों के एजेंट के रूप में भी काम करते हैं। ये चेक, बिल तथा बैंक ड्राफ्ट का संकलन कर उनका निबटारा करते हैं। ब्याज तथा लाभांश का संकलन तथा वितरण करते हैं। ब्याज, ऋण की किस्त, बीमे की किस्त का भुगतान कर देते हैं। प्रतिभूतियों का क्रय- विक्रय और बैंक ड्राफ्ट द्वारा कोष का हस्तांतरण आदि क्रियाएँ करते हैं।

प्रश्न 4. सहकारिता के मूल तत्त्व क्या हैं? राज्य के विकास में इसकी भूमिका का वर्णन करें।

उत्तर- सहकारिता के मूल तत्त्व निम्नांकित हैं :

(i) सहकारिता का पहला मूल तत्व है कि इसकी सदस्यता स्वेच्छिक है। इसका सदस्य बनने के लिए कोई किसी पर दबाव नहीं डाल सकता। लोग इच्छा होने पर ही इसकी सदस्यता ग्रहण करते हैं।

(ii) सहकारिता का दूसरा मूल तत्व है कि इसका प्रबंधन तथा संचालन जनतांत्रिक आधार पर होता है। इसके सदस्यों के बीच धनी, गरीब अथवा अन्य किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता। सभी सदस्य एक-दूसरे को समान दृष्टि से देखते हैं।

(iii) सहकारिता का तीसरा मूल तत्त्व है कि इसके आर्थिक उद्देश्य में नैतिक और सामाजिक तत्त्व भी सम्मिलित रहते हैं। इसकी स्थापना ही इस उद्देश्य से की गयी थी कि परस्पर लूट-खसोट से कोई धनवान नहीं बन पाए। पारस्परिक सहयोग से एक-दूसरे को लाभ पहुँचाना इसका मूल उद्देश्य है। राज्य के विकास में सहकारिता की भूमिका _आज की स्थिति में बिहार में कृषि ही आर्थिक आधार है। कुल जनसंख्या का 80% भाग कृषि पर निर्भर है। यहाँ सिंचाई की उचित व्यवस्था नहीं होने से मानसून पर ही किसानों को निर्भर रहना पड़ता है। लेकिन वर्ष-प्रति-वर्ष मानसून धोखा दे जाता है। कृषि की इस बुरी दशा के कारण लोगों को अनेक कुटीर उद्योगों में लगना पड़ता है। ये सारे कार्य लगभग सहकारिता के आधार पर चलाए जाते हैं। इनके लिए पूँजी का प्रबंध राज्यस्तरीय सहकारी बैंक करता है। सहकारी बैंकों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को काफी लाभ प्राप्त हुआ है।

प्रश्न 5. स्वयं सहायता समूह में महिलाएँ किस प्रकार अपनी अहम भूमिकानिभाती हैं? वर्णन करें ।

उत्तर-  वास्तव में स्वयं सहायता समूह महिलाओं द्वरा ही आरम्भ किया जाता है, क्योंकि घर के काम निबटाने के बाद इनके पास समय ही समय रहता है। इस खाली समय का सदुपयोग से स्वयं सहायता समूह से जुड़ कर परिवार की आय में वृद्धि कर अपने परिवार को समृद्ध करती हैं। इस योजना का आरम्भ महिलाओं को ही काम देने के उद्देश्य से किया गया है। इस समूह के आरम्भ करने से लेकर उत्पादन करने, उनको बाजार में पहुँचाने और धन एकत्र कर आपस में बाँटने तक का सारा काम महिलाएँ ही करती हैं।

महिलाओं द्वारा संचालित स्वयं सहायत समूह एक समान सामाजिक तथा आर्थिक स्तर की महिलाओं को एकत्र कर एक स्वैच्छिक और स्थायी संस्था बनाई जाती है। ये सभी महिलाएँ पास-पड़ोस की ही होती हैं। इस संस्था को नियमबद्ध ढंग से संचालित कर आपसी सहयोग सहायता समूह में महिलाओं की अहम भूमिका होती है या वे अहम भूमिका निभाती हैं।

Economics Chapter 4 हमारी वित्तीय संस्थाएँ Class 10

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