Bihar Board 10th Economics Chapter 3 Subjevtive मुद्रा बचत एवं साख | Social Science Economics Subjective Question 2025

Bihar Board 10th Economics Chapter 3 Subjevtive बचत एवं साख अर्थशास्त्र (Bihar Board Economics) परीक्षा में कई बार ज्यादा अंक के पूछ ले जाते हैं आपको बता दे की सामाजिक विज्ञान में अर्थशास्त्र एक महत्वपूर्ण टॉपिक है जिसे पढ़ने आप लोग के लिए बेहद जरूरी है आप लोग के लिए चैप्टर वाइज ऑब्जेक्टिव प्रश्न (Objective Questions) मंटू सर Mantu Sir (Mantu Sir) के द्वारा तैयार किया गया है इसमें चैप्टर से महत्वपूर्ण प्रश्न (Important Questions) निकल गए हैं

इसके साथ ही पिछले वर्षों के प्रश्न पत्र से भी महत्वपूर्ण प्रश्न निकाल कर इसमें जोड़ गए हैं इससे आप आराम से परीक्षा में 10 से 20 अंक प्राप्त कर सकते हैं आपको पता होगा बिहार बोर्ड 10वीं परीक्षा 2025 (Bihar Board 10th Exam 2025) में 50% ऑब्जेक्टिव और 50% सब्जेक्टिव प्रश्न पूछे जाते हैं ऐसे में अगर आप ही परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आपको इन प्रश्नों को देखना बहुत जरूरी है अन्ना केवल परीक्षा की दृष्टि से बल्कि आपको इकोनॉमिक्स से भारत के बढ़ते अर्थव्यवस्था के बारे में भी समझने में मदद मिलती है इसलिए महत्वपूर्ण प्रश्नों (Important Economics Questions ) को जरूर याद करें इससे परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने में काफी मदद मिलेगी

Bihar Board 10th Economics Chapter 3 Subjevtive बचत एवं साख

लघु उत्तरीय प्रश्न ( Short Answer Questions ) :

प्रश्न 1. वस्तु-विनियम क्या है?

उत्तर-  वस्तु से वस्तु की अदला-बदली वस्तु-विनिमय कहलाती है। यह प्रथा तब प्रचलित थी, जब मुद्रा का आविष्कार नहीं हुआ था। माना कि रामेश्वर के पास और रहीम के पास कपड़ा। रामेश्वर को कपड़े की आवश्यकता है और रहीम को गेहूँ चाहिए। इस स्थिति में दोनों अपनी-अपनी वस्तुओं की अदला-बदली करके अपनी आवश्यकता की पूर्ति कर लेते थे ।

प्रश्न 2. मौद्रिक प्रणाली क्या है?

उत्तर-  वस्तु विनियम प्रणाली में कभी-कभी अनेक कठिनाइयाँ उपस्थित हो जाया करती थीं। फलस्वरूप मुद्रा का आविष्कार हुआ। अब लोग अपनी उत्पादित वस्तु बाजार में बेचकर मुद्रा प्राप्त करने लगे। मुद्रा प्राप्ति के बाद वे उस मुद्रा से अपनी आवश्यकता की वस्तु खरीदने लगे। इससे उन्हें अपनी पसन्द की वस्तुएँ खरीदने में आसानी हो गई। इस प्रकार मुद्रा से वस्तुओं की खरीद-बिक्री को मौद्रिक प्रणाली कहते हैं ।

प्रश्न 3. मुद्रा की परिभाषा दें ।

उत्तर-  मुद्रा वह साधन है, जो सरकार द्वारा जारी की जाती है और देश में सबके द्वारा मान्य होती है। इससे देश के किसी कोने में अपनी पसंद की कोई भी वस्तु खरीदी जा सकती है या आवश्यकता से अधिक वस्तु हो तो उसे बेची जा सकती है । प्रमुख अर्थशास्त्री क्राउथर का कहना है कि जिस प्रकार यंत्रशास्त्र में चक्र का, विज्ञान में अग्नि और राजनीति में मत (vote) का स्थान है, वही स्थान आज के आर्थिक जीवन में मुद्रा का है।” आज मुद्रा के बिना मनुष्य का एक कदम भी चलना कठिन हो गया है।

प्रश्न 4. A.T.M. क्या है?

उत्तर-  ATM एक प्रकार का प्लास्टिक मुद्रा है। यह प्रसिद्ध बैंकों द्वरा जारी किया जाता है। ATM का पूरा नाम है ‘स्वचालित टेलर मशीन’ (Automatic Teller Machine= ATM) है। यह मशीन चौबीसों घंटे अर्थात् दिन-रात रुपये निकालने तथा जमा करने की सेवा प्रदान करती है। भारत में सभी बड़े व्यावसायिक बैंक अपने ग्राहकों को यह सेवा प्रदान करते हैं। ATM प्लास्टिक का एक टुकड़ा है, जिस पर ग्राहक का पिन कोड दर्ज रहता है। ATM सुविधा प्राप्त ग्राहक के खाते में यदि रुपया है तो वह देश के किसी भाग में ATM के सहारे रुपया निकला सकता है। इसके लिए बैंक के अन्दर नहीं जाना पड़ता । लेटर बॉक्स की तरह यह बैंक के बाहर या सार्वजनिक जगहों पर लगा रहता है।

प्रश्न 5. Credit Card क्या है ?

उत्तर-  Credit Card प्लास्टिक मुद्रा का एक रूप है। यह सुविधा ATM के पहले से ही लागू है। इसमें ग्राहक के साख के आधार पर बैंक एक राशि निर्धारित कर देता है। Credit Card धारी बैंक द्वारा निर्धारित राशि के अन्दर किसी भी दुकान से या किसी भी व्यक्ति से वस्तु या सेवा खरीद सकता है। वस्तु या सेवा विक्रेता उस कार्ड का नम्बर या कोड ले लेता है। क्रेडिट कार्डधारी के खाते से रुपया अपने खाते में डलवा लेता है। इससे ग्राहक को लाभ है कि नकद रुपया लेकर घूमना नहीं पड़ता ।

प्रश्न 6. बचत क्या है?

उत्तर-  व्यक्ति अपनी आय को अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए व्यय करता है । वास्तव में व्यक्ति आय का अर्जन इसीलिए करता है। किसी समय सीमा के अन्दर व्यक्ति की आय और व्यय में जो अंतर होता है, उसे ‘बचत’ कहते हैं। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा आसानी से समझा जा सकता है : बचत = आय- व्यय या आय व्यय = बचत

प्रश्न 7. साख क्या है?

उत्तर-  विश्वास और भरोसा का एक नाम ‘साख’ है। जिस व्यक्ति पर समाज को अधिक विश्वास और भरोसा रहता है उस व्यक्ति की साख भी अधिक रहती है। वैसे तो साख के आधार पर व्यक्ति किसी भी व्यापारी से वस्तुएँ खरीद सकता है और दिए समय सीमा के अन्दर भुगतान कर सकता है। लेकिन वास्तव में साख का सृजन बैंक करते हैं। वे अपने विश्वासी ग्राहक को एक सीमा के अन्दर बैंक से रुपये निकालने की सुविधा देते हैं, भले ही उसके जमा खाते में रुपया हो या नहीं हो ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions) :

प्रश्न 1. वस्तु विनियम प्रणाली की कठिनाईयों पर प्रकाश डालें

उत्तर- वस्तु विनियम प्रणाली की निम्नलिखित कठिनाईयाँ थीं : (i) आवश्यकता के दोहरे संयोग का अभाव – वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं की अदला-बदली होती थी। लेकिन दिक्कत यह थी कि यह आवश्यक नहीं था कि एक पक्ष की वस्तु की आवश्यकता दूसरे पक्ष को भी हो। तब पहले पक्ष को वैसे व्यक्ति की तलाश करनी पड़ती थी, जो उसकी वस्तु की चाह रखता हो और उसके पास वह वस्तु भी हो, जिसे पहला पक्ष चाहता है। ऐसा संयोग कठिनाई से बन पाता था । (ii) मूल्य के समान मापक का अभाव – वस्तु विनियम प्रणाली की दूसरी कठिनाई यह थी कि मूल्य का कोई माप निश्चित नहीं था । पाँच पसेरी गेहूँ के बदले ला कितना पसेरी चावल दिया या लिया जाय। एक गाय के बदले कितनी बकरियों का लेन- कभ देन हो, यह निश्चित नहीं था। किसी व्यक्ति के पास एक घोड़ा है और वह दो बकरियाँ चाहता है। लेकिन घोड़ा मूल्यवान है। इस स्थिति में भी विनिमय नहीं हो सकता था। भी (iii) मूल्य संचय का अभाव-वस्तु विनियम प्रणाली में मूल्य संचय की कठिनाई थी । व्यक्ति ऐसी वस्तुओं का उत्पादन करता था कि उसे अधिक दिनों तक संग्रहित कर रखा नहीं जा सकता था। वे नष्ट हो जाती थीं, अनाज में घुन लग जाता था। अनाज के क अलावा दूध, फल, मछली आदि तो कुछ घंटों तक भी रखना कठिन था । (iv) सह-विभाजन का अभाव – कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं, जो मूल्यवान होती हैं व और उनका विभाजन नहीं हो सकता। एक व्यक्ति के पास गाय है और बदले में बकरी, मुर्गी, आलू, फल आदि की चाहत है और ये सब अलग-अलग व्यक्तियों के पास होती थीं। गाय को काट कर नहीं दिया जा सकता था। अतः ऐसी स्थिति में विनमय कठिन हो जाता था । दो कठिनाईयाँ और थीं जिनसे वस्तु विनियम में कठिनाई होती थी। (i) भविष्य में भुगतान की कठिनाई तथा (ii) मूल्य के हस्तांतरण की समस्या ।

प्रश्न 2. मुद्रा के कार्यों पर प्रकाश डालें ।

उत्तर- मुद्रा के निम्नलिखित कार्य हैं : (i) विनिमय का माध्यम- मुद्रा के आविष्कार के बाद वस्तु-विनियम प्रणाली की जो कठिनाईयाँ थीं, सब दूर हो गई। अब वस्तुओं के क्रय-विक्रय में मुद्रा एक मध्यस्त की भूमिका निभाने लगी। मोहन अपना गेहूँ बेचकर मुद्रा प्राप्त करने लगा और उस मुद्रा से करीम से कपड़ा खरीदने लगा। मुद्रा, गेहूँ तथा कपड़ा तीनों का मूल्य निश्चित रहता था, अतः विनिमय में कोई कठिनाई नहीं होती थी । (ii) मूल्य का मापक – मुद्रा मूल्य का मापक भी है। कारण कि बहुत-बहुत दिनों तक मुद्रा का मूल्य एक मसान बना रहता है। इस कारण किसी वस्तु का मूल्यांकन करने में मुद्रा से बड़ी सहायता मिलती है। यह बात दूसरी है कि वस्तु या वस्तुओं की दर कमती-बढ़ती रहे, किन्तु मुद्रा का मूल्य समान बना रहता है। इस कारण व्यक्ति को ज्ञात रहता है कि एक निश्चित मुद्रा के बदले कौन वस्तु कितनी मिलेगी। (iii) विलम्बित भुगतान का माध्यम—कभी-कभी उपभोक्ता या व्यापारियों को साख पर समान खरीदना पड़ जाता है। निश्चित है कि वह व्यक्ति उस उधार ली गई वस्तु का भुगतान कुछ विलम्ब से करेगा। इस अवधि के बीच सम्भव है कि उस वस्तु का मूल्य बढ़ जाय । लेकिन वह व्यक्ति उतना ही भुगतान करेगा, जिस दर से उसने वस्तु खरीदी थी। इस प्रकार मुद्रा विलम्बित भुगतान में काफी सहायक होता है । (iv) मूल्य का संचय — सभी व्यक्ति अपनी आय की रकम से कुछ बचाकर रखना चाहते हैं कि समय पर काम आवे। खासकर बुढ़ापे में किसी पर निर्भर नहीं होना पड़े। मुद्रा में यह गुण है कि इसको संचित रखा जा सकता है। बचत को बैंक में जमाकर देने पर कुछ ब्याज भी जुटते जाता है। ब्याज की रकम महँगाई की मार को कुछ बराबरी पर ला देती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि मुद्रा मूल्य संचय का एक ऐसा माध्यम है, जो कभी नष्ट नहीं होती। इसके अलावे (i) मुद्रा क्रय शक्ति का स्थानांतरण तथा (ii) साख सृजन का आधार भी बनती है।

प्रश्न 3. मुद्रा के आर्थिक महत्त्व पर प्रकाश डालें ।

उत्तर- मुद्रा के आर्थिक महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ट्रेस्कॉट ने कहा है कि “यदि मुद्रा हमारी अर्थव्यवस्था का हृदय नहीं तो रक्त स्रोत तो अवश्य है।” आज का आर्थिक जगत मुद्रा के बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकता। इन बातों का समर्थन करते हुए प्रो० मार्शल ने कहा है कि “मुद्रा वह धुरी है, जिसके चारों तरफ सम्पूर्ण आर्थिक विज्ञान चक्कर काटता है।” आधुनिक आर्थिक व्यवस्था के लिए मुद्रा प्राण है। यदि मुद्रा को हटा दिया जाय तो हमारी सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था अस्त-व्यवस्था हो जाएगी। यदि मुद्रा का आविष्कार नहीं हुआ रहता तो विश्व के देश इतना आर्थिक प्रगति भी नहीं कर पाए होते। देश की अर्थव्यवस्था चाहे जो हो, सभी में मुद्रा आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। क्राउथर ने मुद्रा के सम्बंध में बड़ी रोचक बात कही है। उन्होंने कहा है कि “ज्ञान की प्रत्येक शाखा की अपनी-अपनी मूल खोज होती है, जैसे-यंत्रशास्त्र में चक्र, विज्ञान में अग्नि, राजनीति में वोट (vote) । ठीक उसी प्रकार मनुष्य के आर्थिक एवं व्यावसायिक जीवन में मुद्रा सर्वाधिक उपयोगी आविष्कार है, जिस पर सम्पूर्ण व्यवस्था ही आधारित है। मुद्रा के महत्त्व को बताते हुए किसी अंग्रेजी के कवि ने मुद्रा को सूर्य से भी चमकीला तथा मधु से भी अधिक मीठा बताया है। मुद्रा मानव का एक महत्त्वपूर्ण आविष्कार है।

प्रश्न 4. मुद्रा के विकास पर प्रकाश डालें ।

उत्तर- मुद्रा के विकास पर यदि हम ध्यान देते हैं तो पाते हैं कि वस्तु विनिमय प्रणाली (Barter system) से आरम्भ होकर साख मुद्रा (Credit money) पर आकर समाप्त होती है। अर्थात मुद्रा पाँच सीढ़ियों तक चढ़ती हुई आज तक का अपना सफर पूरा किया है। इस विकास सीढ़ियों को हम निम्नलिखित प्रकार वर्णन कर सकते हैं : (i) वस्तु विनिमय (Barter) -वस्तु विनिमय में वस्तु से वस्तु की अदला-बदली होती है। (ii) वस्तु मुद्रा (Commodity Money) – वस्तु मुद्रा का चलन प्राचीन काल के शिकारी युग में था। उसमें किसी पशु या कृषि उत्पाद को मुद्रा के रूप में मान लिया जाता था। . (iii) धात्विक मुद्रा (Metalic Money)-वस्तु मुद्रा में अनेक कठिनाईयाँ थीं। इन कठिनाईयों को दूर करने के लिए धातु मुद्रा का उपयोग होने लगा। धातु में सर्वप्रथम पीतल या ताँबा का उपयोग हुआ। (iv) सिक्के (Coin)—धातु मुद्रा में भी कुछ कठिनाई होने लगीं। तब सोना, चाँदी जैसी बहुमूल्य धातु के सिक्के राज्य द्वारा जारी होने लगे। सिक्के पर जितना मूल्य अंकित रहता था, उस मूल्य को सभी नागरिक आवश्यक रूप से मानते थे। कारण कि इसमें राज्य की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई होती थी। (v) पत्र मुद्रा (Paper Money)—सिक्कों में भी कुछ दोष दिखने लगे। कारण कि कुछ लोग कम मूल्य की धातु का उपयोग कर जाली मुद्रा बनाने लगे। फिर सिक्के भारी होते थे, जिससे उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना कठिन था। तब राज्य द्वारा कागजी मुद्रा अर्थात पत्र मुद्रा जारी होने लगा। सामान्य बोलचाल में इसे नोट (note) कहा जाने लगा। (vi) साख मुद्रा (Credit Money)-साख मुद्रा और भी हल्की हो गई। इसके सृजन में बैकों का हाथ होता है। राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में साख मुद्रा ही उपयोग लायी जाती है। चेक (cheque) या हुण्डी, बैंक ड्राफ्ट आदि साख मुद्रा के उदाहरण हैं

प्रश्न 5. साख पत्र क्या है? कुछ प्रमुख साख पत्रों पर प्रकाश डालें ।

उत्तर-  साख पत्र से तात्पर्य उन साधनों से है, जिनका उपयोग साख मुद्रा के रूप में होता है। ऋणों का आदान-प्रदान साख पत्रों के आधार पर ही होता है। साख पत्र पूर्ण रूप से व्यक्ति के विश्वास पर चलते हैं। कुछ प्रमुख साख पत्र निम्नलिखित हैं : (i) चेक (Cheque)—चेक सर्वाधिक मान्य साख पत्र है। चेक देने वाला लिखता है। कि अमुख व्यक्ति को इतनी रकम अदा कर दी जाय। चेक उतनी रकम अदा कर देता है, बशर्तें चेक देना वाले के खाते में उतनी रकम हो (ii) बैंक ड्राफ्ट (Bank Draft)—बैंक ड्राफ्ट वह साख पत्र है, जिसे कोई बैंक ही जारी करता है। बैंक ड्राफ्ट द्वारा आसानी से दूरस्थ स्थानों पर रकम भेजी जा सकती है। बैंक अपनी शाखा को लिखता है कि इतनी रकम धारक को दे दी जाय । (iii) यात्री चेक (Traveller’s Cheque ) — यात्रियों की सुविधा के लिए बैंक द्वारा यात्री चेक जारी किया जाता है। यात्री बैंक में निश्चित रकम जमाकर के यात्री चेक प्राप्त कर सकता है। इससे उस यात्रा पर नगद लेकर यात्रा करने से मुक्ति मिल जाती है। वह अपने गन्तव्य पर के बैंक से रकम प्राप्त कर लेता है (iv) प्रतिज्ञा पत्र (Promissory Note ) —प्रतिज्ञा पत्र भी एक प्रकार का साख पत्र ही है। इसमें ऋणी की माँग पर एक निश्चित अवधि के बाद ब्याज सहित रकम लौटाने का वह वादा करता है। प्रतिज्ञा पत्र को ही हुण्डी कहा जाता है।

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