Class 10 Subjective Political Chapter 5 लोकतंत्र की चुनौतियाँ पॉलिटिकल साइंस (Political Science) से जुड़े सभी प्रश्न आपको इस वेबसाइट पर मिल जाएंगे आप लोग के लिए तैयार किया गया मंटू सर Mantu Sir(Dls Education) के द्वारा मॉडल सेट (Subjective Model Set) आपको काफी मदद करेगा लघु उत्तरीय, दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Short And Long Question Answer) का सेट इस वेबसाइट पर मिल जाएगा आपके लिए चैप्टर वाइज सब्जेक्टिव प्रश्न (Chapter Wise Subjective Questions) तैयार किया गया है
आपको बता दे कि बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा में कुल 50% सब्जेक्टिव प्रश्न पूछे जाते हैं ऐसे में पॉलिटिकल साइंस के महत्वपूर्ण सब्जेक्ट(Political Subjective Questions) प्रश्न का सेट तैयार किया गया है इस सेट में न केवल चैप्टर से बल्कि पिछले कुछ सालों में परीक्षा के दौरान पूछे जाने वाले प्रश्न भी शामिल है
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Class 10 Subjective Political Chapter 5 लोकतंत्र की चुनौतियाँ
इस पाठ में आपको लोकतंत्र की चुनौतियों के बारे में पढ़ने को मिलता है परीक्षा में इस चैप्टर से एक या दो प्रश्न जरूर पूछे जाते हैं इस पाठ में आपको लोकतंत्र जनता का जनता के द्वारा तथा जनता के लिए शासन है किस प्रकार और केंद्र और राज्य सरकारों के बीच आप से टकराव से लोकतंत्र कैसे प्रभावित होता है परिवारवाद क्या है गठबंधन की राजनीतिक कैसे लोकतंत्र को प्रभावित करती है लोकतंत्र से आप क्या समझते हैं यह सब कुछ आपको पढ़ने को मिलता है हमारे देश पर यह पूरा का पूरा प्रभावी है और आपको इस पाठ से काफी कुछ पढ़ने को मिलती हैऔर काफी महत्वपूर्ण (Important Questions) भी है परीक्षा की दृष्टि से यह पाठ
लोकतंत्र की चुनौतियाँ
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Questions ) :
प्रश्न 1. लोकतंत्र जनता का जनता के द्वारा तथा जनता के लिए शासन है। कैसे ?
उत्तर- लोकतंत्र में शासन की ओर से जो भी विकासात्मक कार्य होते हैं वे सभी जनता के हित में होते हैं (जनता का)। जो भी काम होते हैं सब जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के द्वारा होता है (जनता के द्वारा)। जो भी काम हाते हैं, वे जनता के हि में होते हैं (जनता के लिए)। अतः स्पष्ट है कि ‘लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा तथा जनता के लिए शासन है।’ यह कथन अमेरिकी विद्वान अब्राहम लिंकन का है।
प्रश्न 2. केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच आपसी टकराव से लोकतंत्र कैसे प्रभावित होता है?
उत्तर- केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच आपसी टकराव से लोकतंत्र निश्चित रूप से प्रभावित होता है। इस टकराव के चलते आतंकवाद से लड़ने और जन कल्याणकारी योजनाओं को सुचारु रूप से क्रियान्वयन में बाधा पहुँचती है। यदि हमें कोई भी अपेक्षित लक्ष्य हासित चाहते हैं तो केन्द्र और राज्यों के बीच बेहतर तालमेल रखना ही होगा।
प्रश्न 3. परिवारवाद क्या है?
उत्तर- सत्ता का हस्तांतरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंप देना परिवारवाद है। भारत में इसका नंगा नाच पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा के समय से ही चला आ रहा है। उस परिवार द्वारा कुछ लालची चटुकार बनाए गए हैं, जो समय-समय पर झंडा भांजते और जयवार का नारा बुलन्द करते हैं। देखा-देखी छुटमैये नेताओं में भी यह प्रथा चल पड़ी है, मानों भारत में लोकतंत्र न होकर राजतंत्र हो। निश्चित ही इसकी जड़ में धन बल है ।
प्रश्न 4. आर्थिक अपराध का अर्थ स्पष्ट करें ।
उत्तर- बिना आयकर चुकाए धन एकत्र करना आर्थिक अपराध है। यह काम कुछ व्यवसायी और उद्योगकपति करते पाए गए हैं। घुस में धन वसूलकर धन एकत्र करना भी आर्थिक अपराध है। सरकार की नाक के नीचे आर्थिक अपराध नित्य हो रहे हैं।
प्रश्न 5. “सूचना का अधिकार कानून लोकतंत्र का रखवाला है ।” कैसे?
उत्तर- सूचना का अधिकार कानून लोकतंत्र का रखवाला इस अर्थ में है कि यह कानून लोगों को जानकार बनाता है। यह लोकतंत्र को रखवाले के तौर पर सक्रिय रहने की प्रेरणा देता है। यह कानून भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाता है। यह कानून लोकतंत्र को मजबूत भी बनाता है। राजनीतिक दल इससे शिक्षा ग्रहण करते हैं ।
लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions ) :
प्रश्न 1. लोकतंत्र से क्या समझते हैं?
उत्तर- लोकतंत्र से हमारी समझ बनती है कि लोकतंत्र ऐसा शासन है जो देश की जनता द्वारा निर्वाचित सदस्यों द्वारा चलाया जाता है। तात्पर्य कि जनता द्वारा निर्वाचित सदस्यों द्वारा, जनता के हित में किए जाने वाले शासन को लोकतंत्र कहते हैं। अमेरिका के एक विद्वान राष्ट्रपति का कहना है कि ‘लोकतंत्र जनता का, जनता द्वरा तथा जनताके लिए शासन है।’ इस परिभाषा से लोकतंत्र का अर्थ पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है। वर्तमान युग में लोकतंत्र से अच्छा शासन किसी भी तंत्र में नहीं है।
प्रश्न 2. गठबंधन की राजनीति कैसे लोकतंत्र को प्रभावित करती है ?
उत्तर- गठबंधन की राजनीति अनेक प्रकार से लोकतंत्र को प्रभावित करती है। गठबंधन में शामिल होने वाले राजनीतिक दल अपना वर्तमान तो सुधारना चाहते ही हैं,भविष्य भी सुरक्षित कर लेना चाहते हैं । शासक पार्टी का उनपर अंकुश रखना आसान नहीं होता, क्योंकि यदि अंकुश की बात की गई तो वे समर्थन वापस ले लेंगे और सरकार धराशायी हो जाएगी। इस प्रकार हम देखते हैं कि गठबंधन की राजनीति लोकतंत्र को कदम-कदम पर प्रभावित करती है ।
प्रश्न 3. नेपाल में किस तरह की शासन व्यवस्था है? लोकतंत्र की स्थापना में वहाँ क्या-क्या बाधाएँ हैं ?
उत्तर- नेपाल में अभी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था है। चूँकि वहाँ लगभग सैकड़ों वर्षों से राजतंत्र था फिर जनसंख्या भी कोई अधिक नहीं है, फिर भी जनसंख्या
जितनी कम है, राजनीतिक आकांक्षाएँ उतनी ही अधिक हैं। इसी कारण इतने छोटे देश में 24 राजनीतिक दल हैं। सरकार लोकतांत्रिक है लेकिन 21 दलों की गठबंधन हुआ है। यह कितना टिकाऊ होगी, समय बताएगा। इतने बड़े गठबंधन के शीर्ष नेता प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला की मृत्यु हाल में ही हुई है। आगे क्या होता है, यह देखना है।
प्रश्न 4. क्या शिक्षा का अभाव लोकतंत्र के लिए चुनौती है?
उत्तर- हाँ, शिक्षा का अभाव लोकतंत्र के लिए निश्चय ही चुनौती है। शिक्षा कीकमी के कारण मतदाता न तो अपने अधिकारों को समझ पाते हैं और न अपने कर्त्तव्यों को समझ पाते हैं। वे यह भी निश्चित करने में असमर्थ होते हैं कि वोट किसको देना अच्छा रहेगा। नतीजा होता है कि वे मतदान तो करते हैं, किन्तु किसी के कहने पर, बताने पर । ऐसा होने पर गुप्त मतदान की धज्जी उड़ जाती है।
प्रश्न 5. ‘आतंकवाद लोकतंत्र की चुनौती है ।’ कैसे ?
उत्तर- आतंकवाद निश्चय ही लोकतंत्र के लिए चुनौती है। किसी भी देश में लोकतंत्र और आतंकवाद—दोनों एक साथ नहीं चल सकते । लोकतांत्रिक शासन स्थिर शासन की पहचान, है, जबकि आतंकवादी कब, कहाँ, क्या कर बैठें, इसका कोई निश्चित नहीं रहता। ऐसा नहीं है कि केवल भारत ही आतंकवाद से पेरशान है। विश्व का सबसे बड़ा और सबसे पुराना लोकतंत्री देश संयुक्त राज्य अमेरिका भी तबाह है और सदैव डरा रहता है। यह बात दूसरी है कि आतंकवाद का जनक कभी अमेरिका ही रहा है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions ) :
प्रश्न 1. वर्तमान भारतीय राजनीति में लोकतंत्र की कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं? विवेचना करें ।
उत्तर- वर्तमान भारतीय राजनीति में लोकतंत्र के समक्ष निम्नलिखित चुनौतियाँ हैं :
(क) सशक्त विरोधी दलों का अभाव-देश में सशक्त विरोधी दलों का अभाव है। जो हैं भी उनमें से एकाध को छोड़कर किसी का प्रभाव पूरे देश में नहीं है। कुछ दल तो क्षेत्रीय हैं और कुछ जात-पाँत में विश्वास करते हैं।
(ख )विषमता लोकतंत्रीय _शासन की एक बड़ी समस्या है। इसी के कारण स्वस्थ जनमत का निर्माण नहीं हो पाता। गरीबी के कारण लोग अपने मत बेच भी देते हैं ।लोगों पर जब साम्प्रदायकिता, प्रादेशिकाता और भाषायी रंग चढ़ता है तो वे भूल जाते
(ग) साम्प्रदायिकता, प्रादेशिकता तथा भाषावाद पर आधारित राजनीति हैं कि यह सभी भारत के नागरिक हैं, हमें मिल-जुलकर रहना है।
(घ) हिंसा और आन्दोलन की राजनीति _आए दिन छोटी-छोटी बातों पर भी आन्दोलन खड़े कर दिये जाते हैं। हथियार बन्द प्रदर्शन होते हैं। इतना ही नहीं, कभी-
कभी इन प्रदर्शनों में हिंसा तक हो जाती है। यह लोकतंत्र के लिए कलंक है।
(ङ) दल-बदल की प्रवृत्ति—कुछ नेताओं की महत्त्वाकांक्षा के कारण दल-बदल को बढ़ावा मिलता है। दल-बदल के कारण सरकारें स्थिर नहीं रह पाती और कभी-कभी अल्पतम की सरकार भी टिकाऊ हो जाती हैं। लेकिन प्रतिनिधि यह नहीं सोचते कि उनके इस कार्य से जनमत की कितनी अवहेलना होती हैं।
प्रश्न 2. बिहार की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी लोकतंत्र के विकास में कहाँ तक सहायक है?
उत्तर- बिहार की राजनीति में अभी महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित नहीं है। अपनी पार्टी या अपने बल पर चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुँचनेवाली महिलाओं की संख्या नगण्य है। लेकिन जितनी भी महिलाएँ विधानसभा पहुँच जाती हैं या पहुँची हैं, उन्होंने लोकतंत्र के विकास में काफी सहायक बनाने का प्रयास किया है। अपनी संख्या के हिसाब से वे अपनी भागीदारी अच्छी प्रकार निभा रही हैं। यदि वे लोकतंत्र के विकास में सहायक नहीं हैं तो बाधा भी नहीं हैं।
वास्तव में इन्हें मौका ही नहीं दिया जाता। स्थानीय निकायों में, जहाँ महिलाओं को आरक्षण की सुविधा प्राप्त है, वे जीतकर जाती हैं और अच्छा काम करती हैं। अभी तक दो चुनाव ऐसे हुए हैं, जिनमें चुनाव महिलाओं ने हिस्सेदारी निभाई हैं। वहाँ के उनके कामों को देखकर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यदि उन्हें विधानसभा या लोकसभा में भी आरक्षण मिल जाय तो वे वहाँ पहुँच कर वैसा ही काम करेंगी,
जैसा स्थानीय निकायों में कर रही हैं। कम ही सही, किन्तु भारत में अतिरिक्त विश्व के अन्य देशों में भी संसद और ‘विधायिकाओं में महिला सदस्यों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। वृद्धि और वृद्धि का प्रतिशत दोनों में वृद्धि हो रही है। बिहार विधानसभा में महिलाओं की संख्या कुछ बढ़ी ही है
प्रश्न 3. परिवारवाद और जातिवाद बिहार में किस तरह लोकतंत्र को प्रभावित करते हैं?
उत्तर- बिहार की राजनीति में 1980 के पहले परिवारवाद की कोई समस्या नहीं थीं। इसका आरम्भ राजद के शासन से शुरू होने के बाद लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी, उनके दो-दो साले एक साथ विधानसभा में प्रवेश कर गए। इसके अलावा विधायकों के पुत्र, उनकी पत्नियाँ और रिश्तेदार राजनीति को प्रभावित करने लगे हैं। यदि संवैधानिक दृष्टि से देखें तो कहीं कोई गलती नजर नहीं आती, लेकिन नैतिकता की दृष्टि से इसे देखें तो सरासर गलत मानना चाहिए। कभी-कभी तो ऐसा भी देखा जाता है कि बापभी विधायक है और बेटा भी विधायक है।
झारखंड, जो कभी हाल हाल तक बिहार का एक अंग था, मैं श्री शिबू सोरेन का पूरा परिवार विधायक है। यह राजनीतिकबेईमानी है। जहाँ तक जातिवाद का प्रश्न है यह तो संविधान के लागू होते ही शुरू हो गया था । लगभग 80 प्रतिशत निर्वाचन जाति पर आधारित होते थे। वह स्थिति आज भी बदली नहीं है। उम्मीदवार बनाते समय ही यह देख लिया जाता है कि इस क्षेत्र में किस जाति की संख्या अधिक है। जिस जाति की संख्या अधिक रहती है, वहाँ उसी जाति का उम्मीवाद खड़ा किया जाता है। जातिवादी राजनीति में दिक्कत तब पैदा होती है
जब एक से अधिक उम्मीदवार उसी जाति के खड़े हो जाते हैं। तब यहाँ देखा जाता है कि किसकी पृष्ठभूमि मजबूत है। यदि दूसरा उम्मीदवार छोटी या नईपार्टी का हुआ तो वह हार जाता है, लेकिन कुछ-न-कुछ वोट तो वह काट ही लेता है। जातिवादी राजनीति लगभग सर्वत्र है, लेकिन बिहार में अधिक है। कारण कि जातिवादी राजनीति का जन्मदाता बिहार ही है। इसका कुछ कुप्रभाव पड़ोसी राज्यों की सीमाओं के जिलों तक में फैल गया है।
प्रश्न 4. क्या चुने हुए शासक लोकतंत्र में अपनी मर्जी से सबकुछ कर सकते हैं?
उत्तर- नहीं, चुने हुए शासक लोकतंत्र में अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं कर सकते । इसका कारण है कि उन्हें अनेक सीमाओं के अन्दर रहकर काम करना पड़ता है। सबसे बड़ी सीमा तो संविधान के प्रावधान की है। भारतीय संविधान को इस प्रकार बनाया गया है कि कोई मनमानी कर ही नहीं सकता है।
माना कि अपने बहुमत के बल पर कोई कुछ अपनी मर्जी का काम कर दे तो न्यायपालिका में जाने पर वह उसे निरस्त कर देती है. या कर सकती है अभी हाल में कई दलों को मिलाकर बहुमत बनाकर नेपाल में श्री प्रचंड ने सरकारग़ठित की थी । तब उन्होंने अपनी पार्टी की बन्दूकी ताकत का सहारा लेकर मनमानी करने की कोशिश की, लेकिन वे इसमें सफल भी नहीं हुए और अपनी गद्दी भी गँवानी पड़ी। वे भूल गए थे कि गठबंधन सरकार के मुखिया ।
बाद में गिरिजा प्रसाद कोइराला प्रधानमंत्री बनाए गए और जीवन पर्यन्त इस पद पर बने रहे। गठबंधन की सरकार न भी हो और एकदल के बहुमत से बनी सरकार हो फिर भी उसका मुखिया मनमानी नहीं कर सकता। कारण कि संविधान के प्रावधान रूपी तलवार सदैव तत्पर रहती है, जो निर्वाचित शासक को भी मनमानी से रोकती है। किसी की मनमानी के विरुद्ध कोई भी न्यायपालिका की शरण में जा सकता है। न्यायपालिका पर किसी का दबाव काम नहीं करता। वह संविधान के दायरे में रहकर निर्णय लेती है और गलत निर्णय को कार्यरूप में आने ही नहीं देती।
प्रश्न 5. ‘न्यायपालिका की भूमिका लोकतंत्र की चुनौती है ।’ कैसे ? इसके सुधार के उपाय क्या हैं?
उत्तर- भारतीय लोकतंत्र के तीन अंग हैं : (i) कार्यपालिका, (ii) विधायिका तथा (iii) न्यायपालिका। इसमें कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदायी और विधायिका न्यायपालिका के प्रति। किसी भी लोकतंत्र की सफलता वहाँ की निष्पक्ष और स्वतंत्र न्यायपालिका की भूमिका एक सर्वमान्य सत्य है। यदि हम विदेश और वहाँ के सर्वाधिकपुराने लोकतंत्र पर विचार करें तो वहाँ के लोकतंत्र की सफलता न्यायपालिका की सफलता भारतीय लोकतंत्र की अनेक समस्याएँ हैं,
जिनमें न्यायपालिका की भूमिका भी कुछ कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। आए दिन दो या दो से अधिक राज्यों तथा राज्य और केन्द्र के समक्ष विवादास्पद मामले सामने आते ही रहते हैं, जिनका समाधान न्यायापालिका को निकालना पड़ता है। यह काम उसके लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण है।
न्यायपालिका को न्याय करते समय यह ध्यान रखना पड़ता है कि कोई पक्ष असंतुष्ट भी न हो और स्थिति सामान्य ही रही है। वे देश हैं ब्रिटेन और अमेरिका । भी हो जाय । न्यायपालिका के कई स्तर होते हैं। जिला अदालत, जिला अदालत के ऊपर उच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के ऊपर सर्वोच्च न्यायालय । नीचे के अदालत के निर्णय के विरुद्ध ऊपर के न्यायालय में अपील हो सकती है। इसीलिए किसी भी स्तर का न्यायालय हो, खूब सोच-विचार और साक्ष्यों के सन्दर्भ में अपना निर्णय सुनाता है।
यह कम चुनौती भरा काम नहीं है। अपील में यदि उस न्याय के विपरीत फैसला होता है। तो निचली अदालत की कुछ-न-कुछ जग हँसाई तो होती ही है, भले ही कोई प्रकट कर या न करें ।
प्रश्न 6. क्या ‘आतंकवाद लोकतंत्र की चुनौती है ?” स्पष्ट करें ।
उत्तर- आतंकवाद विदेशी समस्या है, आतंकवादी किसी देश से जाकर किसी भी देश को तबाह कर देते हैं। आतंकवाद से आज पूरा विश्व परेशान है। सबसेलोकतांत्रिक देश अमेरिका, जो अपने धन-बल और अस्त्र बल के चलते पूरे विश्व को मजबूत अपनी अंगुलियों पर नचाता है, वह भी आतंकवाद के चपेट में आ चुका है और कब आतंकवादी उस पर कहाँ वार कर दें कोई ठिकाना नहीं। भारत तो पाकिस्तानी आतंकियों के निशाने पर है जबकि स्वयं पाकिस्तान भी लादेन के आदमियों से परेशान है।
आतंकवादी हमले से कुछ गिनती के देश ही बचे हैं, वरना पूरा विश्व इससे आक्रांत है। पूर्वी अफगानी आतंकियों से पाकिस्तान परेशान है और पाकिस्तानी आतंकियों से भारत परेशान है। विश्व जानता है कि पाकिस्तान आतंकियों का उत्पादक देश है। आतंकवाद से भी भयावह अलगाववाद है। भारत के पूर्वोत्तर भाग के कुछ राज्यों के नवयुवक गुमराह होकर गलत रास्ते पर चल पड़े हैं।
इस गलतफहमी में पड़े नवयुवको को समझाने-बुझाने और उन्हें रास्ते पर लाने का प्रयास बड़े पैमाने पर चल रहा है। उस राज्य की सरकार तो प्रयास कर ही रही है, केन्द्र भी उनको समझाने-बुझाने में संलग्न है।
लेकिन ईसाइयों की बढ़त मामले को उलझा कर रख दिया है। आज के राजनीतिज्ञों पर विश्वास करना भी कठिन है। ये क्या हैं और क्या करना चाहते हैं, कुछ पता नहीं चलता। ये देश के सिरमौर कैसे बन गए, इनकी भारत में पैठ कैसे हो गई ?
Political Chapter 5 लोकतंत्र की चुनौतियाँ Class 10
लोकतंत्र की चुनौतियाँ के कोई भी प्रश्न अब आप बड़े आसानी से बना सकते है बस आप को इन प्रश्न को कई बार पढ़ लेना है और हमने QUIZ Format मे आप के परीक्षा के मध्यनाज़र इस पोस्ट को तैयार किया है class 10h Political लोकतंत्र की चुनौतियाँ इस पोस्ट मे दिए गए है तो अब आप को परीक्षा मे कोई भी लोकतंत्र की चुनौतियाँ के प्रश्न से डरने की जरूरत नहीं फट से उतर दे
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लोकतंत्र की चुनौतियाँ Class 10 Subjective
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