Class 10 Subjective History Chapter 4 भारत में राष्ट्रवाद  | Bihar Board Social Science History Subjective Question 2025

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Class 10 Subjective History Chapter 4 भारत में राष्ट्रवाद सामाजिक विज्ञान (Social Science) के अंदर इतिहास विषय में कुल 8 चैप्टर है जिससे की परीक्षा में कई सारे सब्जेक्टिव प्रश्न (Subjective Questions) पूछे जाते हैं इसलिए आप लोगों को महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव प्रश्नों ( Important Subjective Questions) को याद करना बेहद जरूरी है और इसी क्रम में आपका मदद करेंगे

मंटू सर Mantu Sir(Dls Education) के द्वारा बनाए गए मॉडल सेट इस मॉडल सेट में चैप्टर वाइज सब्जेक्टिव प्रश्न (Chapter Wise Subjective Questions) आपको मिल जाएंगे यह प्रश्न न केवल चैप्टर से बल्कि पिछले कुछ वर्षों के परीक्षा के दौरान पूछे जाने वाले प्रश्न भी आप लोग के लिए निकल कर लाया गया है और आपको इस सेट (Subjective Model Set) में बिल्कुल फ्री में उपलब्ध कराया जा रहा है

आपको बता दे की सब्जेक्टिव प्रश्नों के मदद से आप परीक्षा में ज्यादा से ज्यादा प्राप्त कर सकते हैं बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा 2025 (Bihar Board Matric Exam 2025) में 50% सब्जेक्टिव प्रश्न पूछे जाएगा और आपको बता दे की दो नंबर और पांच नंबर के सब्जेक्ट के प्रश्न पूछे जाते हैंऔर आपके पास कई सारे ऑप्शन भी उपलब्ध होते हैं तो इसलिए आपको इतिहास के महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव प्रश्नों (Important Subjective Questions) को याद करना बेहद जरूरी है

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Class 10 Subjective History Chapter 4 भारत में राष्ट्रवाद

इतिहास के चौथा चैप्टर में आपकोभारत में राष्ट्रवाद के बारे में पढ़ने को मिलता है जैसे की खिलाफत आंदोलनराइट एक्ट दांडी यात्रा गांधी इरविन पैक्ट अथवा दिल्ली समझौता क्या था चंपारण सत्याग्रह और मेरठ षड्यंत्र औरजतरा भगत के बारे में आपको इस चैप्टर के अंदर बहुत कुछ पढ़ने को मिलती है इसके अलावा ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना कब हुई यह सब कुछ

आपको इस चैप्टर के अंदर पढ़ने को मिलता है भारत के इतिहास के हिसाब से यह काफी महत्वपूर्ण और परीक्षा की दृष्टि से भी क्योंकि इस चैप्टर से आपको एक पांच नंबर के प्रश्न जरूर पूछे जाएंगे कैसे मैं आपको इस चैप्टर को जरूर याद रखना चाहिए महत्वपूर्ण प्रश्नों (Important Questions) को 

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (लगभग 20 शब्दों में उत्तर दें) :

प्रश्न 1. खिलाफत आन्दोलन क्यों हुआ ?

उत्तर- प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्की ब्रिटेन के विरोध में लड़ रहा था, जिसमें उसकी करारी हार हुई। ब्रिटेन ने उसके साम्राज्य, उस्मानिया साम्राज्य का विघटन कर दिया। तुर्की बस तुर्की में ही सिमट कर रह गया। मुस्लिम जगत को यह नागवार लगा, क्योंकि तुर्की का खलीफा मुस्लिम विश्व का धर्म गुरु था। उसी के पक्ष में खिलाफत आन्दोलन हुआ ।

प्रश्न 2. रॉलेट एक्ट से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर- भारत में अंग्रेजी शासन के विरोध बढ़ रहे असंतोष को दबाने के लिए लार्ड चेम्सफोर्ड ने ‘सिडनी रौलेट’ की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की। समििने निरोधात्मक एवं दण्डात्मक विधेयक लाने का सुझाव दिया। इसके आधार पर जो विधेयक पारित हुआ।उसी को ‘रॉलेट एक्ट’ कहा गया। यह एक्ट बड़ा क्रूर था,देश भर में विरोध हुआ ।

प्रश्न 3. दाण्डी यात्रा का क्या उद्देश्य था ?

उत्तर- दाण्डी यात्रा का उद्देश्य था।ब्रिटिश कानून की धज्जियाँ उड़ाना । दाण्डी पहुँचकर 6 अप्रैल, 1930 को गाँधीजी ने समुद्र के पानी से नमक बनाकर कानून का उल्लंघन किया और अपनी गिरफ्तारी दी। इसके बाद देश भर में नमक बनाया जाने लगा। नमक बनाने वाले गिरफ्तारी देते रहे। गाँधीजी का यह सविनय अवज्ञा आन्दोलन सफल था।

प्रश्न 4. गाँधी इरविन पैक्ट अथवा दिल्ली समझौता क्या था ?

उत्तर- सविनय अवज्ञा आन्दोलन की सफलता ने अंग्रेजों को हिलाकर रख दिया। उन्होंने समझौता वार्ता का प्रस्ताव रखा। इसी संदर्भ में गाँधी-इरविन पैक्ट हुआ । इसे’दिल्ली समझौता’ के नाम से भी जाना जाता है। इस समझौता के अनुसार गाँधीजी ने 5 मार्च, 1931 को आन्दोलन समाप्त कर दिया और गोलमेज सम्मेलन में जाना स्वीकार कर लिया ।

प्रश्न 5. चम्पारण सत्याग्रह के बारे में बताइए ।

उत्तर-  चम्पारण सत्याग्रह निलहे अंग्रेजों के विरोध में था। वे लोग वहाँ के किसानों से जर्बदस्ती नील की खेती कराते थे और किसान इसे करना नहीं चाहते थे। कारण कि जिस खेत में नील की खेती होती थी, वह खेत अनउपजाऊ हो जाता था। गाँधीजी ने चम्पारण पहुँच कर इस कुप्रथा को रोकवा दिया। गाँधीजी की इस सफलता ने गाँधी को महात्मा गाँधी बना दिया। पूरे देश की जनता इनका गुणगान करने लगी।

प्रश्न 6. मेरठ षड्यंत्र से आप क्या समझते हैं?

उत्तर- मेरठ षड्यंत्र वास्तव में मजदूर आन्दोलन से सम्बद्ध था। मजदूरों के आन्दोलन को दबाने के लिए 31 मजदूर नेता, गिरफ्तार किए गए, जिनमें दो अंग्रेज मजदूर नेता भी थे। इन्हें मेरठ लाया गया और वहीं पर चार वर्षो तक मुकदमे की सुनवाई होती रही। इसी को ‘मेरठ षड्यंत्र’ या ‘मेरठ षड्यंत्र केस’ कहा जाता है। 31 मजदूर में से कुछ को तो सजा हुई, कुछ को रिहा कर दिया गया। इस केस से मजदूरों में एकता बढ़ गई।

प्रश्न 7. जतरा भगत के बारे में आप क्या जानते हैं? संक्षेप में बताइए ।

उत्तर- उड़ीसा में खेड़ों का एक आन्दोलन चला, लेकिन यह अहिंसक था । यह आंदोलन 1914 से 1920 तक चला। इस आन्दोलन के नेता जतरा भगत थे। उन्होंने माँग को बदलकर सामाजिक एवं शैक्षणिक सुधार की ओर मोड़ दिया। उन्होंने एक श्वरवाद को माना तथा मांस-मदिरा का बहिष्कार करने को कहा ।

प्रश्न 8. ‘ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ की स्थापना क्यों हुई ?

उत्तर- 1917 के आस-पास गुजरात के कपड़ा मिल के मजदूरों ने हड़ताल कर दी । मिल मालिकों ने घाटा का बहाना बनाकर बोनस देने से इंकार कर दिया था। गाँधीजी ने हड़तालियों का समर्थन किया और मिल मालिकों को झुकना पड़ा। बाद में मिल मजदूरों के साथ ही खेतीहर मजदूरों का कांग्रेसी कार्यक्रमों में भाग लेने तथा उनके समर्थन मे ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना हुई ।

लघु उत्तरीय प्रश्न (लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें ) :

प्रश्न 1. असहयोग आन्दोलन प्रथम जन आंदोलन था कैसे ?

उत्तर- वास्तव में असहयोग आन्दोलन ही था जिसे हम जन–आन्दोलन की संज्ञा दे सकते हैं।क्योंकि इसका प्रसार पूरे देश के गाँव-गाँव तक फैला था ।आन्दोलनकारी अपना सर्वस्व न्यौछावर को तत्पर थे। गाँधीजी जब दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे तो असहयोग आन्दोलन 1921 में शुरू हुआ। इसका उद्देश्य था फिरंगी सरकार के कार्य में सहयोग नहीं करना। वकील न्यायालयों का त्याग करने लगे।

छात्र स्कूल-कॉलेज छोड़ने अनेक आन्दोलन चलाए किन्तु वे स्थानीय थे और कुछ ही लोगों के हित के लिए थे।न्यायालयों के स्थान पर ग्राम पंचायतें और सरकारी स्कूल कॉलेजों के स्थान पर काम में लगे। उद्देश्य था इस प्रकार विदेशी सरकार को कमजोर कर सत्ता पर अधिकार जमाना।कि उत्तर प्रदेश के चौरा-चौरी में एक ऐसी घटना घट गई, जिससे गाँधीजी ने आन्दोलन स्कूल और विद्यापीठों की स्थापना हुई। पूरे देश में आन्दोलन शांति पूर्वक चल रहा।था।स्थगित कर दिया ।

प्रश्न 2. सविनय अवज्ञा आन्दोलन के क्या परिणाम हुए था?

उत्तर- असहयोग आन्दोलन के बाद सविनय अवज्ञा आन्दोलन वह दूसरा आन्दोलन हर ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब-अमीर सभी की सहभागिता थी। मध्य विद्यालय से कॉलेज तक के छात्रों का इस आन्दोलन में सहयोग था। सविनय अवज्ञा आन्दोलन ने श्रमिको एवं कृषकों को भी प्रभावित किया। आन्दोलन का परिणाम था कि फिरंगी सरकार को कांग्रेस के साथ बराबर के आधार पर बात करने को मजबूर किया। दूसरा परिणाम जो महत्त्वपूर्ण परिणाम था, वह था कि ब्रिटिश सरकार को 1935 का भारत शासन अधिनियम पारित करना पड़ा।

प्रश्न 3. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना किस परिस्थितियों में हुई?

उत्तर- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की जड़ में देश में फैल रही राष्ट्रवाद की स्थिति थी । राष्ट्रवाद की जड़ में खाद-पानी देने में आर्थिक कारण तो था ही, सामाजिक और धार्मिक कारण भी थे। भारतीय धर्म ग्रन्थों का जब अंग्रेजी में अनुवाद हुआ तब भारत का आमजन भी धर्म का मर्म समझने लगा। लोगों की निष्ठा धर्म की ओर बढ़ने लगी।सर्वत्र रास्ता चलते भी नवयुवक राष्ट्रवाद की चर्चा करते थे।

समाज सुधारकों ने भारतीयों को एकता,समानता एवं स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाकर उनके जीवन में नई चेतना भर दी।इन्हीं परिस्थितियों में राष्ट्रवादी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए एक राष्ट्रवादी दल’भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना 1885 में हुई।

प्रश्न 4. बिहार के किसान आन्दोलन पर एक टिप्पणी लिखिए ।

उत्तर- बिहार में किसान सभा का गठन 1922-23 में शाह मुहम्मद जुबैर के नेतृत्व में हुआ। लेकिन 1928 के बाद बिहार में किसान आन्दोलन अधिक, व्यापक और शक्तिशाली बना जब स्वामी सहजानन्द ने किसान सभा का नेतृत्व करना शुरू किया। बिहटा से आरम्भ कर सोनपुर होते हुए पूरे बिहार में किसान आन्दोलन ने किसानों को जागृत करने का काम किया।

सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भी बिहार आकर किसान आन्दोलन को बल प्रदान किया। 11 अप्रैल, 1936को लखनऊ में ‘अखिल भारतीय किसान सभा’ की स्थापना हुई, जिसमें बिहार के किसानों का बड़ा हाथ था। बिहार के किसान बकास्त आन्दोलन चला रहे थे।

प्रश्न 5. स्वराज पार्टी की स्थापना एवं उद्देश्य की विवेचना करें ।

उत्तर- स्वराज पार्टी की स्थापना चित्तरंजन दास तथा मोतीलाल नेहरू के प्रयास से। इस पार्टी का पहला अधिवेशन 1923 में इलाहाबाद में हुआ। स्वराज्य पार्टी कांग्रेस से कोई भिन्न नहीं थी, बल्कि यह कांग्रेस की ही B टीम थी। वास्तव में असहयोग आन्दोलन अत स्थगित हो जाने से कुछ नेता हतप्रभ और निराश थे। वे चाहते थे कि विधान सभा के चुनाव में भाग लेकर सीट जीती जायें और अन्दर से असहयोग किया जाय।901 में से 43 सीट स्वराज पार्टी ने जीती। 1925 में वित्तरंजन दास की मृत्यु के बाट स्वराज पार्टी कमजोर पड़ गई और अंततः समाप्त हो गई।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (लगभग 150 शब्दों में उत्तर दे) :

प्रश्न 1. प्रथम विश्व युद्ध का भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के साथ अंतर्संबंधों की विवेचना कीजिए।

उत्तर- प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) एक ऐसा महायुद्ध था, कि इतना बड़ा बुद्ध इसके पहले कभी नहीं लड़ा गया था। युद्ध में दो गुट थे एक गुट में था. फ्रांस, ब्रिटेन, और अमेरिका तथा दूसरे गुट में थे जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी तथा इटली। ये सातों देश साम्राज्यवादी थे और अपने-अपने उपनिवेशों का विस्तार के साथ वहाँ से कच्चा माल प्राप्त कर वहीं पर तैयार माल बेचने के लिए बाजार बढ़ाना चाहते थे। इस युद्ध का भारत के साथ अंत संबंध  यह था कि यह भी ब्रिटेन का एक उपनिवेश था और यहाँ से वह कच्चा माल ले जाता था और यहीं पर तैयार माल बेचा करता था। 

इसी कारण भारत के गृह उद्योग समाप्त हो गए थे और कारीगरों को मजदूर बन जाना पड़ा था। स्पष्ट है कि भारत ब्रिटेन की हार देखना चाहता था। इस डर को मिटाने के लिए युद्ध की अवधि के लगभग बीच में, 1916 में ब्रिटेन ने झूठी घोषणा की कि भारत में ब्रिटिश सरकार का लक्ष्य यहाँ क्रमशः जिम्मेदार सरकार की स्थापना करनी है। सही में फिरंगियों की ओर से भारतीयों के लिए पोस्टडेंटल  लाली पॉप था। तब तक भारत में राष्ट्रवाद पूरा परिपक्व हो चुका था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में तिलक का प्रवेश हो चुका था।

युद्ध में उन्होंने पूरी तरह ब्रिटेन को साथ देने का आह्वान किया। लेकिन युद्ध की समाप्ति के बाद फिरंगियों ने रंग बदल लिया। भारत को कुछ भी सुविधा देने से इंकार कर दिया। तब तक गाँधीजी का भारत में पदार्पण हो चुका था। उन्होंने शांतिपूर्ण ढंग से आन्दोलन चलाना आरम्भ किया। अंततः द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब ब्रिटेन कमजोर पड़ चुका था, उसे भारत को आजादी देकर अपने देश लौट जाना पड़ा।

प्रश्न 2. असहयोग आन्दोलन के कारण एवं परिणाम का वर्णन करें।

उत्तर– असहयोग आन्दोलन गाँधीजी द्वारा चलाया जाने वाला पहला शांतिपूर्ण
जन आन्दोलन था। मुख्यतः इसके तीन कारण थे
(क) खिलाफत आन्दोलन में सहयोग देकर मुसलमानों का दिल जीतना ।
(ख) जालियाँ वाला बाग में सरकार की बर्बर कार्रवाइयों के विरुद्ध न्याय पाना ।
(ग) स्वराज प्राप्त करने के लिए स्वयंसेवक तैयार करना।

1 जनवरी, 1921 से अहयोग आन्दोलन का आरंभ हुआ। सम्पूर्ण भारत में इस आन्दोलन को इतनी सफलता मिली. जितना कि सोचा नहीं गया था। देशभर में विदेशी करों का बहिष्कार होने लगा। छात्र स्कूल और कॉलेज छोड़ने लगे। राष्ट्रीय विद्यालयबड़े-बड़े खुलने लगे। जामिया मिलिया तथा काशी विद्यापीठ में पढ़ाई आरम्भ हो गई। वैरिस्टरों तक ने न्यायालय का बहिष्कार कर दिया। ब्रिटेन के राजकुमार ‘प्रिंस ऑफ वेल्स के मुंबई पहुँचने पर पूरे महानगर में हड़ताल रखा गया। यह घटना 17 नवम्बर, 1921 की है।

आन्दोलन गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। 30,000 से अधिक आन्दोलनकारी गिरफ्तार कर लिए गए। इस पर गांधीजी ने देश में सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाने की धमकी दी। इसी बीच एक दुर्घटना घट गई। उत्तर प्रदेश के चौरा-चौरी स्थान पर आन्दोलन कारियों का एक शांतिपूर्ण जुलूस जा रहा था। रास्ते में ही थाना था, जिससे होकर जुलूस को गुजरना था।

सिपाहियों ने अकारण जुलूस पर फायरिंग शुरू कर दी। जब तक उनके पास गोलियों का स्टॉक मौजूद था, तब तक तो वे फायरिंग करते रहे। गोलिया के समाप्त होते ही वे थाने के अन्दर छिप गए। जुलूस के लोग प्रतिक्रिया में बेकाबू हो गए और थाना में आग लगा दी। यह घटना 5 फरवरी, 1922 की है। इसमें 22 पुलिसकर्मी जिन्दा जल मरे। इस घटाना से गाँधीजी बुध हो गए।

उन्होंने समझा कि जनता अभी तक असहयोग और सविनय अवज्ञा के मर्म को समझ नहीं सकी है। फलतः 12 फरवरी, 1922 को उन्होंने आन्दोलन वापस ले लिया। इस प्रकार असहयोग आन्दोलन समाप्त हो गया। यद्यपि की कांग्रेस के कुछ नेताओं ने गाँधीजी के इस निर्णय का विरोध भी किया।

प्रश्न 3. सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारणों की विवेचना करें।

उत्तर-असहयोग आन्दोलन को समाप्त हुए एक दशक हो चुके थे। भारतीय
राष्ट्रवादियों के बीच एक शून्यता की स्थिति आ गई थी। इसी बीच कुछ ऐसी घटनाएँ। घटी कि गाँधीजी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाना पड़ा। कारण निम्नलिखित थे :

(i) साइमन कमीशन-1919 का एक्ट पारित करते समय सरकार ने कहा था कि 10 वर्षों बाद इसकी पुनः समीक्षा होगी। किन्तु नवम्बर, 1927 को ही साइमन कमीशन को भेज दिया। कमीशन में सात सदस्यों में कोई भी भारतीय नहीं था। भारत में इसकी विपरीत प्रतिक्रिया हुई 1 स्थान-स्थान पर कमीशन का भारी विरोध हुआ।

(ii) नेहरू रिपोर्ट—उसी समय तत्कालीन भारत सचिव लार्ड विरकल हैड ने व्यंग्य किया कि भारतीय आजादी तो चाहते हैं लेकिन वे अपना संविधान तक नहीं बना सकते जिसे सभी को मान्य हो। मोतीलाल नेहरू ने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार किया और 1928 में संविधान तैयार करके दिखा दिया। इसी को नेहरू रिपोर्ट कहते हैं।

(iii) विश्वव्यापी आर्थिक मंदी-1929-30 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का कुप्रभाव भारत पर भी पड़ा। मूल्य में भारी वृद्धि हुई। भारत का निर्यात गिर गया लेकिन अंग्रेजों ने यहाँ से धन ले जाना बन्द नहीं किया। अनेक कारखाने बंद हो गए और पूँजीपतियों की स्थिति पतली हो गई। मजदूर बेकार हो गए।

(iv) समाजवाद का बढ़ता प्रभाव-इसी समय समाजवाद का प्रभाव विश्व में तेजी से बढ़ रहा था। कांग्रेस में भी इसका दबाव महसूस होने लगा। समाजवाद के प्रखर नेता सुभाषचन्द्र बोस थे, जिसके कारण उन्हें कांग्रेस छोड़ना पड़ा। उन्होंने कांग्रेस ही नहीं, देश को भी छोड़ दिया। तब जवाहरलाल नेहरू भी अपने को समाजवादी होने का दिखावा करने लगे।

(v) क्रांतिकारी आन्दोलनों का उभार इसी समय मेरठ षडयंत्र केस’ तथा ‘लाहौर षडयंत्र केस’ ने देश के नवों में सरकार विरोधी विचारधारा को उम्र बना दिया था। पूरे भारत की स्थिति विस्फोटक हो गई थी। बंगाल में कांतिकारियों की टोली खुलेआम घूमने लगी थी। 1930 में चटगाँव में सरकारी शस्त्रागार लूट लिया गया। इसका नेतृत्व सूर्यसेन ने किया था। इन्हीं का नाम ‘मास्टर दा‘ था।

प्रश्न 4. भारत में मजदूर आन्दोलन के विकास का वर्णन करें।

उत्तर- औद्योगिक प्रगति के साथ मजदूर वर्ग में चेतना विश्व भर में बढ़ रही थी और भारत भी इससे अछूता नहीं था। उद्योगों के बढ़ने के साथ-साथ मजदूरों की चेतना मैं वृद्धि हो रही थी। बीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में स्वदेशी आन्दोलन का प्रभाव भी मजदूरों पर पड़ा। 1917 में अहमदाबाद के कपड़ा मिल के मजदूरों ने हड़ताल करती थी। उनकी माँग थी कि

उनके बोनस में कटौती नहीं की जाय। गाँधीजी ने मजदूरी की माँग को समझा और उसका समर्थन भी किया। मिल मालिकों को झुकना पड़ा और मजदूरों की माँग माननी पड़ी। सन् 1917 की रूसी क्रांति का ‘कम्युनिस्ट इन्टरनेशल’ तथा ‘श्रम संगठनों की स्थापना’ कुछ ऐसी विदेशी घटनाएँ थीं, जिनका प्रत्यक्ष प्रभाव राष्ट्रीय आन्दोलन एवं मजदूर वर्ग, दोनों पर पड़ा।

31 अक्टूबर, 1920 को कांग्रेस पार्टी ने ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की स्थापना की। सी. आर. दास ने सुझाव दिया कि कांग्रेस द्वारा किसानों और मजदूरों को राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिया रूप से सम्मिलित किया जाय। साथ-साथ जब तब उठ रहे इनकी माँगों का समर्थन भी किया जाय।

समय के बीतने के साथ बामपंथी विचारों को समझा जाने लगा और उनकी लोकप्रियता ने मजदूर आन्दोलन को मजबूत बनाया, जिससे ब्रिटिश सरकार की चिता बढ़ने लगी। उससे मजदूरों के खिलाफ दमनकारी उपायों को भी अपनाया। इसी क्रम में मार्च, 1929 में कुछ वामपंथी नेताओं के विरुद्ध ‘मेरठ षड्यंत्र’ के नाम से ‘देशद्रोह’ का मुकदमा चलाया गया।

इसी समय 1930 में ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ आरम्भ हुआ। इस आन्दोलन में मजदूरों ने भी भाग लिया। 1931 में ऑल इण्डिया नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस, हिन्द मजदूर संघ और यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस नाम से तीन ट्रेड यूनियनों में बँट गया। इसके बावजूद राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रमुख नेताओं-सुभाष चन्द्र बोस, जवाहरलाल नेहरू आदि ने समाजवादी विचारों से प्रभावित होकर मजदूरों की माँगों को समर्थन दिया और उसे जारी रखा।

प्रश्न 5. भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में गाँधीजी के योगदान की विवेचना करें ।

उत्तर- गाँधीजी के कांग्रेस में प्रवेश करते ही पार्टी में एक नई जान आ गई। अफ्रीका में गाँधीजी को अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई में काफी यश प्राप्त हो चुका था। 1917 में चम्पारण के निलहे साहबों से किसानों का उद्धार करा कर गाँधीजी अब महात्मा गाँधी बन गए। पूरा देश इनके पीछे चल पड़ा। कांग्रेस जो पहले कुछ प्रमुख लोगों की संस्था थी, सम्पूर्ण जनता की संख्या बन गई।

अब गाँधीजी ने 1920 में असहयोग आन्दोलन का कार्यक्रम दिया। लोग सरकारी नौकरियाँ त्यागने लगे। सरकारी स्कूल-कॉलेज का छात्रों ने त्याग किया। जितना ही आन्दोलन तेज होता गया सरकारी दमन भी उसी हिसाव से बढ़ता गया। 1922 तक 30.000 लोग जेलों किया राजी नथागत कर दिया। मैंने का अभियान चलाने का फैसला पूरा देश रह गया। अब सामाजिक कार्यो को आगे बढ़ाने का कार्यक्रम अपने तार कर लिए गए और उन्हें पाँच गाँधीजी ने आह्वान किया। वर्षों की 1910 में हो गई।

होण्डी मात्रा का समुद्र के किनारे जाकर उन्होंने आरम्भ किया, जिसके तहत बड़ा और अपनी गिरफ्तारी दी। उसके बाद देश भर के गाँव गाँव में नमक बनाने का काम शुरू हो और लोग गिरफ्तार होते गए। 1931 के आते आते महज एक वर्ष में 90,000 लोग जैनों में डाल दिए गए। जनवरी, 1931 में गाँधीजी और कुछ अन्य प्रमुख नेता रिहा कर दिए गए।

गाँधी इरविन समझौता हुआ। फलत: गांधीजी ने आन्दोलन वापस ले लिया। भी राजनीतिक बंदी रिहा कर दिए गए। गाँधीजी ने इंगलैंड जाकर गोलमेज कोय में सम्मिलित होना स्वीकार कर लिया था। कराची अधिवेश में इसे मान्यता भी मिल गई। गोलमेज से गाँधीजी को कोई लाभ नजर नहीं आया। फलत: सविनय अवज्ञा हो गया। अबकी बार 1933 तक लगभग एक लाख बीस हजार लोग गिरफ्तार किए गए।

1934 में पुनः आन्दोलन रुक गया। 1940 में गाँधी जी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह आरम्भ किया। उस सत्याग्रह का नारा था, “एक पाईना एक भाई”। इसका अर्थ था कि भारत का पैसा युद्ध में न लगाया जाय और न कोई भारतीय फौज में शामिल हो। यह सत्याग्रह इतना लोकप्रिय हुआ और इतने लोग गिरफ्तारी देने के लिए तैयार हो गए कि बाद में सरकार गिरफ्तार करने से करने लगी।

अभी व्यक्तिगत सत्याग्रह स्थगित भी नहीं हुआ था कि गाँधीजी ने बम्बई कांग्रेस अधिवेशन में 8 अगस्त, 1942 को ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ और ‘करो या मरो’ का  नारा दे दिया। रातो– रात सभी नेता गिरफ्तार हो गए। जनता को राह दिखाने वाला कोई नही रहा। फलतः जनता भड़क गई और देश भर में बेमिसाल आन्दोलन आरम्भ हो गया। इस आन्दोलन को दबाने के लिए अंग्रेजी सरकार ने बहुत कड़ा रुख अपनाया। हजारों लोग गिरफ्तार किए गए। सैकड़ों को गोली मार दी गई। आन्दोलन दब गया।

इस आन्दोलन से अंग्रेज समझ गए कि अब भारत में उनका टिका रहना कठिन है। 15 अगस्त, 1947 को देश आजाद हो गया। अंग्रेज बले गए। खुशियाँ मनाई गई, किन्तु दिल में दर्द भी कि आजादी तो मिली, किन्तु देश को टुकड़ों में बाँटकर।

प्रश्न 6, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में वामपंथियों की भूमिका को रेखांकित कीजिए।

उत्तर- रूसी क्रांति की सफलता के बाद भारत में भी तेजी से साम्यवादी विचारा का फैलाव होने लगा। लेकिन वे समझते थे कि यह काम गलत है। अतः ये छिपकर काम करते थे। असहयोग आन्दोलन के दौरान इनको अपने विचारों को फैलाने का मौका मिल गया। ये लोग इन क्रांतिकारियों से जुड़ गए, जो राष्ट्रवादी

की समाप्ति के बाद सरकार ने इन पर कारवाई आरंभ कर दी।पेशावर पच्चास केस (1932-38) कानपुर मदन केस (1934) और मेरठ षड्यंत्र  केस  (1920-11) के तहत ह पर मुकदमे चलाए गए। बासी लोगों का ध्यान अपनी और सफल हो गए। बाद में कांतिकारी राष्ट्रवादी शहीद ‘साम्यवादी शहीद कहे जाने लगे। अंग्रेजी सरकार पब्लिक से पटी बिल’, जो कम्युनिस्टों के विरोध में था, कांग्रेस ने उसे पारित नहीं होने दिया। फलत: कम्युनिस्टों ने कांग्रेस को अपना समर्थक मान लिया। फल हुआ कि देश में कम्युनिस्ट आन्दोलन प्रतिष्ठा प्राप्त करने लगा।

दिसम्बर, 1925 में ‘सत्य भक्त’ ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना कर डाली। अब ब्रिटिश साम्यवादी दल भी भारतीय कम्युनिस्ट में दिलचस्पी लेने लगा।
यद्यपि अबतक भारत में अनेक मजदूर संगठन बन गए थे और कार्यरत थे। इनके पहले कि कांग्रेस समर्थित ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की स्थापना हो चुकी थी और कई मजदूर आन्दोलनों को सफलता दिलवा चुकी थी।

फिर भी वामपंथ का प्रसार मजदूर संघों पर बढ़ रहा था। विभिन्न स्थानों पर किसान मजदूर की स्थापना हुई। लेबर स्वराज पार्टी भारत की पहली किसान मजदूर पार्टी थी। अखिल भारतीय स्तर पर दिसम्बर, 1928 में अखिल भारतीय किसान मजदूर पार्टी बनी । अब तक कांग्रेस के कुछ नेताओं पर भी साम्यवाद या समाजवाद का रंग चढ़ाने लगा था। इनमें सुभाषचन्द्र बोस, जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, नरेन्द्र देव प्रमुख थे। फिर भी ये कांग्रेस के साथ ही थे।

HISTORY Chapter 4 यूरोप में राष्ट्रवाद  Class 10

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