हिन्द चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन Question 2022 | 10th Social science vvi subjective question 2022 |

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पाठ के मुख्य बात (सारांश)

हिन्द चीन से तात्पर्य वियतनाम, लाओस और कम्बोडिया के सम्मिलित रूप से है। जो दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन सागर से लेकर मयनमार एवं चीन की सीमा तक फैला है।

        इन क्षेत्रों पर कभी भारत का कब्जा था। इसका प्रमाण कम्बोडिया में अंकोरवाट का मन्दिर है। जिसे राजा सूर्य वर्मा द्वितीय ने 12वीं शताब्दी में बनवाया था। आरम्भ में ही इन क्षेत्रों के कुछ भाग पर चीन और कुछ भाग पद हिन्दुस्तान का प्रभाव रहा, जिस कारण इस क्षेत्र का नाम हिन्द चीन पड़ा।

     एशिया और अफ्रीका के देशों में जब यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियाँ अपना-अपना ठिकाना ढूँढ़ रही थीं, उस समय फ्रांस को हिन्द चीन में अपना पैर जमने का मौका मिल गया। फ्रांस द्वारा हिन्द चीन में अपना उपनिवेश बनाने का प्रारंभिक उद्देश्य था डच और ब्रिटिश कम्पनियों को व्यापारिक प्रतिद्वन्द्विता का सामाना करना। भारत में फ्रांसीसी कमजोर पड़ गए थे । उधर चीन में उनकी प्रतिद्वन्द्विता केवल ब्रिटेन से थी। हिन्द चीन में रहकर वह भारत और चीन दोनों पर नजर रख सकता था।

       हिन्द चीन में फ्रांसीसियों ने आरम्भिक शोषण व्यापारिक नगरों और बन्दरगाहों से आरम्भ किया। चीन से सटे क्षेत्रों में कोयला, टीन, जस्ता, टंगस्टन, कोमियम जैसे खनिजों का भरमार था । फ्रांसीसियों ने इनके शोषण के साथ सिंचाई की व्यवस्था कर धान उपजाने की व्यवस्था की। धान की उपज वहाँ पर इतनी बढ़ गई कि उसका निर्यात तक होने लगा। शिक्षा जहाँ पहले चीनी या स्थानीय भाषाएँ थीं वहीं अब फ्रांसीसी भाषा को पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया।

       विश्व में जिस तरह राष्ट्रीयता की भावना बढ़ रही थी, वह हिन्द चीन में भी बढ़ी। 20वीं सदी के आरम्भ से ही वहाँ राष्ट्रीयता की भावना बढ़ने लगी। 1905 में जापान द्वारा रूस को हरा दिए जाने के बाद हिन्द चीन के वासियों पर भी इसका अच्छा प्रभाव पड़ा। इनमें भी गौरव का भाव बढ़ा फलतः राष्ट्रीयता और जोर पकड़ने लगी । हो-चि-मिन्ह वहाँ के पहले राष्ट्रवादी नेता हुए। उन्होंने कम्युनिस्ट पाटी की स्थापना की और फ्रांसीसियों का विरोध शुरू कर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के बीतते-बीतते हिन्द चीन में स्वतंत्रता की लहर चल पड़ी। फ्रांस जर्मनी से हार चुका था। वह पुनः अपना कब्जा जमाना चाहता था। लेकिन हिन्द चीन के लोगों ने-खासकर वियतनामियों ने हो-चि-मिन्ह के नेतृत्व में उसके मनसूबों पर पानी फेर दिया।

       वियतनाम आपसी युद्ध में उलझ गया । एक पक्ष को अमेरिकी मदद मिल रही थी और एक पक्ष को रूस मदद रे रहा था। युद्ध बहुत दिनों तक चला, जिसमें अमेरिका की भारी हानि हुई और अंत में उसे वहाँ से भागना पड़ा। ऐसी बात नहीं थी कि हानि केवल अमेरिका की ही हुई। हानि तो रूस को भी हुई। अन्ततः जेनेवा समझौता हुआ, जिससे वियतनाम दो भागों में बँट गया। एक भाग पर कम्युनिस्ट समर्थकों का कब्जा हुआ और दूसरे भाग पर पूँजीवाद समर्थकों का कब्जा हुआ। रूस और अमेरिका दोनों की मंशा पूरी हो गई।

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प्रश्न 1. एकतरफा अनुबंध व्यवस्था क्या थी?

उत्तर–एकतरफा अनुबंध हिन्द चीन में फ्रांसीसियों द्वारा लागू किया जाने वाला एक शोषणमूलक व्यवस्था थी। मजदूरों को तो कोई अधिकार नहीं रहता था जबकि सरकार को असीमित अधिकार प्राप्त हो जाते थे।

प्रश्न 2. बाओदायी कौन था?

उत्तर-‘बाओदायी’ हिन्द चीन के एक द्वीप अन्नाम का शासक था। लेकन साम्यवादी राष्ट्रवादियों ने दबाव डालकर उसे सत्ताच्युत कर दिया। 25 अगस्त, 1945 को उसने अपनी गद्दी छोड़ दी। इसके बाद ही वियतनाम एक गणराज्य बन गया।

प्रश्न 3.हिन्द चीन का क्या अर्थ है ?

उत्तर- कुछ समय तक वियतनाम और लाओस पर चीनी अधिकार था और कम्पोडिया भारतीय (हिन्दुस्तानी) प्रभाव में था। इसी कारण इन तीन द्वीपों को सम्मिलित, रूप से हिन्द चीन’ कहा जाने लगा।

प्रश्न 4. जेनेवा समझौता कब और किनके बीच हुआ?

उत्तर- जेनेवा समझौता मई, 1954 में साम्यवादियों और अमेरिका के बीच हुआ। इस समझौता ने पूरे वियतनाम को दो भागों में बाँट दिया। एक पर पूँजीवादियों का प्रभुत्व रहा और एक पर साम्यवादियों का।

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प्रश्न 1. हिन्द चीन में फ्रांसीसी प्रसार का वर्णन कीजिए।

उत्तर-हिन्द चीन में आए तो अनेक यूरोपीय देश, किन्तु किसी ने वहाँ अपनी सत्ता स्थापित करने का प्रयास नहीं किया। उनमें फ्रांस ही एक ऐसा देश निकला जो व्यापार करने के साथ वहाँ अपनी सत्ता भी स्थापित कर ली। 17वीं शताब्दी तक बड़ी संख्या में व्यापारियों के साथ ईसाई पादरी भी हिन्द चीन पहुँचने लगे। 19वीं सदी में फ्रांसीसी पादरियों की बढ़ती संख्या के विरुद्ध अन्नाम, कोचीन-चीन में उग्र आन्दोलन हो रहे थे।

         इसके बावजूद 1862 में फ्रांस ने जबरदस्ती अन्नाम पर अधिकार कर लिया और बाद में शीघ्र ही वह कम्बोडिया को भी अपने संरक्षण में ले लिया। 1783 में तोकिन में भी फ्रांसीसी सेना वुस गई और 20वीं शताब्दी तक फ्रांस पूरी तरह हिन्द चीन में स्थापित हो गया।

 प्रश्न 2. रासायनिक हथियारों तथा एजेंट ऑरेंज का वर्णन कीजिए।

उत्तर-  रासायनिक हथियारों में ‘नापाम’ अधिक प्रसिद्ध है। यह एक ऐसा रासायनिक मिश्रण था जो अग्नि बमों में गैसोलिन के साथ मिलकर एक ऐसा तत्व तैयार करता था, जो नागरिकों की त्वचा से चिपक जाता था और काफी जलन उत्पन्न करता था । अमेरिका ने इसका वियतनाम में व्यापक उपयोग किया।

          एजेंट ऑरेंज भी खतरनाक जहरों से तैयार था। यह वृक्षों की पत्तियों को झुलसा देता था और वृक्ष भी सूखते-सूखते मर जाते थे। इसका जंगलों को नष्ट करने के साथ खेतों में लगी फसलों को भी समाप्त करने में उपयोग होता था। अबादी पर भी इसका उपयोग हुआ, जिससे अगली पीढ़ी बीमार पैदा होने लगी। स्पष्ट है कि इन दोनों का उपयोग अमेरिका द्वारा 1964 में वियतनाम के विरुद्ध हुआ।

 प्रश्न 3. हो-ची-मिन्ह के विषय में एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

 उत्तर-  हो-ची-मिन्ह वियतनाम का एक क्रांतिकारी नेता था। जब वह पेरिस में शिक्षा प्राप्त कर रहा था, वहीं पर उसने साम्यवादियों का एक गुट बनाया। बाद की शिक्षा के लिए वह मास्को गया और वहीं पर वह साम्यवाद में पूरी तरह पारंगत हो गया। 1925 में उसने ‘वियतनामी क्रांति दल’ बनाया और उसके सदस्यों को सैनिक प्रशिक्षण देने लगा।

         1930 तक वियतनाम के बिखरे राष्ट्रवादियों को एक जुटकर वियतनाम कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना कर ली। आन्दोलन शुरू हुआ, लेकिन फ्रांसीसियों द्वारा इसे कड़ाई से कुचल दिया गया। आन्दोलन ऊपर से दब तो गया लेकिन अन्दर ही अन्दर आग सुलगती रही द्वितीय विश्व युद्ध में फ्रांस जर्मनी से हार गया और उसे वियतनाम से भागना पड़ा अब वियतनाम जापान के कब्जे में था। मौका देख हो-चि-मिन्ह ने वियतनाम पर अपना शासन स्थापित कर लिया।

5 अमेरिका हिन्द चीन में कैसे घुसा? चर्चा करें।

उत्तर- जेनेवा सम्मेलन के अनुसार हिन्द चीन मुख्यतः दो भागों में बँट गया। एक भार्ग पर अमेरिकी समर्थक पूँजीवादियों का अधिकार हुआ और एक भाग रूस के समर्थक साम्यवादियों के प्रभुत्व में आ गया । अमेरिका नहीं चाहता था कि वियतनाम में साम्यवादियों जी जरकार प्रगति करे । उसी को दबाने के लिए अमेरिका हिन्द चीन में घुस आया और बिना मतलब टाँग अड़ा बैठा।

          लेकिन वियतनाम की साम्यवादी सरकार दिनों-दिन मजबूत होती गई और अंततः अमेरिका को दुम दबाकर भागना पड़ा। उसे काफी आर्थिक हानि के साथ मानवीय हानि भी झेलनी पड़ी।

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1. ‘हिन्द चीन’ में उपनिवेश स्थापना का उद्देश्य क्या था?

उत्तर- ‘हिन्दी चीन’ में फ्रांस द्वारा अपने उपनिवेश स्थापना का पहला उद्देश्य  डंच एवं बिटिश कम्पनियों की व्यापारिक प्रतिद्वन्द्विता का सामना करना था। भारत में फ्रांस कमजोर पड़ रहा था। चीन में भी उसकी व्यापारिक प्रतिद्वन्द्विता केवल बिटेन से ही थी। अतः अपनी व्यापारिक सुरक्षा के लिए हिन्द चीन में फ्रांस द्वारा उपनिवेश स्थापित करना आवश्यक हो गया था। उनको यह महसूस हुआ कि हिन्द चीन में स्थिर होकर वह चीन और भारत-दोनों ओर ध्यान दे सकता है। इससे वे यदि किसी कठिनाई में फँसेगे, उससे निकल सकना आसान होगा।

          दूसरी बात यह थी कि फ्रांसीसी उद्योगों के लिए उसे हिन्द चीन से पर्याप्त कच्चा माल मिल सकता था तथा तैयार माल के लिए बाजार भी, कारण कि हिन्द चीन की आबादी काफी घनी थी। पहले तो फ्रांसीसियों ने बन्दरगाह वाले नगरों के साथ व्यापारिक नगरों से शोषण आरम्भ किया और धीरे-धीरे वे ग्रामीणों का भी शोषण करने लगे। हिन्द चीन के उपभाग तोकिंन के जीवन का आधार लाल घाटी थी,

            उसी तरह कम्बोडिया का सहारा मेकांग नदी का मैदानी क्षेत्र था। कोचीन-चीन के जीवन निर्वाह का जरिया मेकांग का डेल्टा क्षेत्र था। फ्रांसीसी व्यापारियों तथा पादरियों ने पहले ही सर्वेक्षण कर लिया था कि जल का निकासी कर दल-दली भूमि तथा वनों को काटकर खेती का क्षेत्रफल बढ़ाया जा सकता है। इससे धान की इतनी उपज होगी कि स्थानीय खपत से बचे धान का निर्यात भी किया जा सकेगा। फ्रांसीसियों ने वैसा ही किया भी। इस प्रकार स्पष्ट है कि हिन्द चीन में उपनिवेश स्थापना के ये ही उद्देश्य थे।

प्रश्न 2. ‘माई ली’ गाँव की घटना क्या थो? इसका क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर- ‘माई ली’ नाम का दक्षिणी वियतनाम में एक गाँव था। अमेरिकी सेनाओं ने यहाँ ऐसी बर्बरता पूर्ण कार्य किए, जिससे विश्व में शर्म को भी शर्म आने लगी। ‘माई ली’ गाँव के निवासियों को बियतकांक समर्थक मानकर पूरे गाँव को घेर लिया। इसके बाद उन्होंने गाँव के एक-एक कर सभी पुरुषों को खोज-खोजकर मार डाला।

बच्चियों तथा स्त्रियों के साथ कई दिनों तक बलत्कार किया और अन्त में गाँव में आग लगा दी गई, जिसे सभी जलकर भस्म हो गए। भाग्य से किसी प्रकार एक बूढ़ा बचकर छिपा हुआ था, उसी ने विश्व के समक्ष यह कहानी बताई। ‘माई ली’ गाँव की इस घटना को सुन विश्व स्तब्ध रह गया। विश्व के कोने-कोने में अमेरिका की भर्त्सना होने लगी।

अन्य देशों को कौन कहे, स्वयं अमेरिका में अमेरिकी सैनिकों की थू-थू होने लगी । अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन की काफी बदनामी हुई। हॉलीउड जहाँ वियतनाम में अमेरिकी कार्रवाई के पक्ष में फिल्में बनती थी,

 प्रश्न 3. राष्ट्रपति निक्सन के हिन्द चीन में शांति के सम्बंध में पाँच सूत्री योजना क्या थी? इसका क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर- हिन्द चीन में शांति के सम्बंध में राष्ट्रपति निक्सन की पाँच सूत्री योजना निम्नलिखित थी

(i) हिन्द चीन में सभी पक्ष की सेना युद्ध बन्द कर दे तथा जहाँ पर है, वहीं पर बनी रहे।

(ii) युद्ध विराम की देखरेख अंतराष्ट्रीय पर्यवेक्षक करेंगे

(iii) इस दौरान कोई देश अपनी शक्ति बढ़ाने का प्रयत्न नहीं करेगा।

(iv) युद्ध विराम के दौरान सभी तरह की लड़ाइयाँ बंद रहेंगी।

(v) युद्ध विराम का अंतिम लक्ष्य समूचे हिन्द चीन में संघर्ष का अंत होना चाहिए। लेकिन पाँच सूत्री शांति प्रस्ताव पेश कर अमेरिका ने पीठ में छूरा भोंकने का काम किया। उसने स्वयं अपने ही प्रस्ताव को अपने ही तोड़ दिया। एकाएक बिना कोई सूचना के अमेरिकी सेना ने बमबारी आरम्भ कर दी। बमबारी इतनी हुई, जिसे हीरोशिक नाकासाकी से भी अधिक आँका गया। लेकिन अमेरिका को महसूस होने लगा था कि गुल हो रहे चिराग का यह अंतिम लौ है। निक्सन ने पुनः एक नया प्रस्ताव-आठ सूत्री योजना आगे रखी।

          लेकिन वियतनामियों को अमेरिकी बातों पर विश्वास नहीं रह गया था, जिससे उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया। इसके बावजूद 24 अक्टूबर, 1972 को वियतकांग, उत्तरी वियतनाम, अमेरिका एवं दक्षिण वियतनाम में समझौता हो गया। फिर भी दक्षिणी वियतनाम ने अपत्ति जताई और पुनः वार्ता के लिए आग्रह किया। वितयकांग ने इसे अस्वीकार कर दिया। अमेरिका ने फिर बमबारी शुरू कर दी, जिससे हनोई नगर बर्बाद हो गया। अंततः 27 फरवरी, 1973 को पेरिस में वियतनाम युद्ध को समाप्ति के समझौते पर हस्ताक्षर हो गया। समझौते की मुख्य बातें थीं कि युद्ध समाप्ति के 60 दिनों के अंदर अमेरिकी सेना वापस हो जाएगी। उत्तर और दक्षिण वियतनाम परस्पर सलाह कर एकीकरण का मार्ग खोजेंगे। अमेरिका वियतनाम को आर्थिक सहायता देगा।

प्रश्न 4. फ्रांसीसी शोषण के साथ-साथ उसके द्वारा किये गये सकारात्मक कार्यों की समीक्षा कीजिए।

उत्तर- फ्रांस वालों ने हिन्द चीन में शोषण तो किया लेकिन उन्होंने कुछ विकासात्मक जैसे सकारात्मक काम भी किये। उन्होंने सर्वप्रथम कृषि उपज बढ़ाने की ओर ध्यान दिया। इसके लिए उन्होंने नहरों का विकास किया ताकि सिंचाई की सुविधा बढ़े। निम्न भूमि, जहाँ सालो भर पानी भरा रहता था और जमीन दलदली हो गई थी, वहाँ से पानी निकासी का उपाय किया और दलदलों को सूखाकर जमीन को खेती के योग्य बनाया। जंगल क्षेत्रों को भी कृषि भूमि के योग्य बनाया गया।

       इन प्रयासों का परिणाम हुआ कि 1931 तक वियतनाम विश्व का तीसरा बड़ा चावल निर्यातक देश बन गया। रबरों के बगान लगाए गए। हालाँकि इन कार्यों में जिन मजदूरों को लगाया गया उनसे एक तरफा अनुबंध किया गया, जिससे उनका शोषण भी हुआ। लेकिन उपज बढ़ने से देश में खुशहाली भी बढ़ी। हिन्द चीन में पूरे उत्तर से दक्षिण तक संरचनात्मक विकास तेजी से हुआ। विस्तृत रेल नेटवर्क तथा सड़क का जाल-सा बिछ गया । शिक्षा के क्षेत्र में भी फ्रांसीसियों ने हिन्द चीन में कुछ काम किया ।

        परम्परागत स्थानीय भाषा के साथ चीनी भाषा की शिक्षा भी दी जा रही थी। लेकिन प्रमुखता फ्रांसीसी भाषा को ही दी जाती थी। स्थानीय जनता तथा फ्रांसीसियों के जीवन स्तर में काफी अंतर था। फिर भी जो शिक्षा मिली उसी से लाभ उठाकर छात्र-छात्राएँ राजनीतिक पार्टियाँ बनाने लगे थे, जो आगे चलकर देश के लिए काफी लाभजनक रहा।

प्रश्न 5. हिन्द चीन में राष्ट्रवाद के विकास का वर्णन करें।

उत्तर- 20वीं शताब्दी के आरम्भ से ही हिन्द चीन के युवक यूरोपीय सम्पर्क में आने लगे थे तथा फ्रांसीसी के साथ अंग्रेजी की पढ़ाई भी करने लगे थे। यूरोपीय देशों में उन्हें स्वतंत्र तथा परतंत्र में अन्तर समझ में आने लगा। फान वोई चाऊ ने ‘द हिस्ट्री ऑफ द लॉस ऑफ वियतनाम’ लिखकर नवयुवकों में हलचल पैदा कर दी। इसी फान वोई चाऊ ने ‘दुई तान होई’ नामक एक क्रांतिकारी दल का गठन 1903 में कर लिया था।

          1905 में जापान ने जब रूस को हरा दिया तो हिन्द चीन के युवकों को भी प्रेरण मिली और इनमें उत्साह फैल गया। रूसो और मांग्टेस्क्यू जैसे फ्रांसीसी विचारकों के विचार भी उन्हें उद्वेलित कर रहे थे। इसी समय एक अन्य राष्ट्रवादी नेता फान चू त्रिन्ह  हुए, जिन्होंने राष्ट्रवादी आंदोलन के राजतंत्रीय स्वरूप को गणतंत्रवादी बनाने की कोशिश की । जापान में जाकर शिक्षा प्राप्त युवक इसी तरह के विचार रखने लगे। सनयात सेन के नेतृत्व में चीन में सत्ता परिवर्तन ने इन्हें और भी प्रोत्साहित किया।

             इसी प्रकार के छात्रों ने वियेतनाम कुबान फुक होई वियतनाम मुक्ति एसोसिएशन) की स्थापना कर ली। प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) जब प्रारम्भ हुआ तो हिन्द चीन के युवकों में भी राष्ट्रवाद की भावना भरने लगी। 1914 में ही इन देशभक्तों ने ‘वियतनामी राष्ट्रवादी दल’ नामक एक दल का गठन किया। इस दल का पहला अधिवेशन कैटन में हुआ। लेकिन फ्रांसीसियों ने इस दल को कुचल दिया इससे हिन्द चीन के युवको में और जोश भर गया। अब उनके द्वारा पूरी तरह से फ्रांसीसी शासन को उखाड़ फेंकने की बात सोची जाने लगी।

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