स्वदेशी
लेखक- परिचय–भारतेन्दु युग के प्रमुख कवि बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ का जन्म उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में 1855 ई. में हुआ था। वे काव्य और जीवन दोनों क्षेत्रों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को अपना आदर्श मानते थे। इन्होंने 1874 ई. में मिर्जापुर में ‘रसिक समाज’ की स्थापना की। इन्होंने ‘आनंद कादंबिनी’ मासिक पत्रिका तथा ‘नारी नीरद’ नामक साप्ताहिक-पत्र का संपादन भी किया। वे साहित्य सम्मेलन के कलकत्ता अधिवेशन के सभापति रहे। इनकी मृत्यु ‘1922 ई. में हुई।
प्रश्न 1. कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- देशवासियों में स्वदेश-प्रेम की भावना का अलख जगाने के लिए कति ने प्रस्तुत पाठ का शीर्षक ‘स्वदेशी’ रखा है, जो विषय-वस्तु के प्रतिपादन तथा काव्य-वैभव की दृष्टि से सर्वथा सार्थक है। कवि ने लोगों की मनोवृत्ति अर्थात् प्रवृत्ति को देखते ऐसा शीर्षक रखा, क्योंकि पराधीनता के कारण लोगों की प्रवृत्ति भारतीय संस्कृति के प्रतिकूल तथा विदेशी प्रभाव के कारण स्वाभिमान रहित हो गई है। इसीलिए कवि ने देशवासियों को स्वदेशी बनने की प्रेरणा दी है।
प्रश्न 2. कवि को भारत में भारतीयता क्यों नहीं दिखाई पड़ती?
उत्तर- कवि को भारत में भारतीयता इसलिए नहीं दिखाई पड़ती, क्योंकि लोगों के आचार-विचार, खान-पान, वेश-भूषा, चाल-चलन आदि में महान् परिवर्तन हो गए है। लोग विदेशी रंग में रंगने के कारण अपनी सभ्यता-संस्कृति को भूल गए हैं। स्वदेशीपन का लोप हो गया है तथा अपने को भारतीय कहने में भी संकोच करने लगे हैं। अंग्रेजी बोलना, अंग्रेज जैसा आचरण करना शान की बात मानते हैं। तात्पर्य कि पराधीनता के ,कारण भारतीय अपने पूर्वजों के गौरव को भूल गए हैं, जिस कारण उनका स्वाभिमान मर गया है। उनमें भारतीयता के कोई भी लक्षण विद्यमान नहीं हैं। लोग चाटुकार, स्वार्थी तथा हीनाभावना से ग्रस्त हैं। इसीलिए कवि को भारत में भारतीयता नहीं दिखाई देती
प्रश्न 3. कवि समाज के किस वर्ग की आलोचना करता है और क्यों?
उत्तर- कवि समाज के उस वर्ग की आलोचना करता है जो साम्राज्यवादी तथा सामंतवादी विचार के हैं। साथ ही, वैसे लोग अर्थात् उच्च वर्ग जो अपनी संस्कृति, भाषा, व्यवहार आदि को विदेशी चमक-दमक की चकाचौंध में त्याग दिया है। तात्पर्य कि वैसे वर्ग फिरंगियों के समर्थक बनकर स्वयं अंग्रेजी भाषा, वेश-भूषा खान-पान आदि को अपनाकर अपने-आपको भारतीय कहना अनुचित मानने लगे हैं। कवि ने ऐसे लोगों की आलोचना करते हुए उनमें भारतीयता की भावना भरने का प्रयास किया है तथा नव जागरण का संदेश दिया है। इसी हीन प्रवृत्ति के कारण कवि ने उच्च वर्ग की आलोचना की है।
प्रश्न 4. कवि नगर, बाजार, अर्थव्यवस्था पर क्या टिप्पणी करता है ?
उत्तर- इस संबंध में कवि का कहना है कि अंग्रेजी शासन काल में भारतीय उद्योग नष्ट हो गए। स्वदेशी निर्मित वस्तुओं का उपयोग बन्द हो गया क्योंकि मशीन निर्मित वस्तुओं की अपेक्षा हस्तनिर्मित वस्तुएँ महँगी हैं। फलतः हाट-बाजार, गाँव-नगर में विदेशी वस्तुओं का प्रभाव हो गया। यहाँ के कारीगर बेरोजगार हो गए और बेरोजगारी के कारण उनकी माली हालत खराब हो गई। हमारी अर्थव्यवस्था अति दयनीय स्थिति में पहुँच गई है। सर्वत्र विदेशी वस्तुएँ ही दृष्टिगोचर होने लगी हैं। अतः विदेशी वस्तुओं के प्रचार-प्रसार से स्वदेश निर्मित वस्तुओं पर विपरीत असर पड़ा और हमें गरीबी और फटेहाली में जीने के लिए विवश होना पड़ा, हमारी अर्थव्यवस्था नष्ट-भ्रष्ट हो गई।
प्रश्न 5. नेताओं के बारे में कवि की क्या राय है ?
उत्तर- नेताओं के बारे में कवि का कहना है कि वे विलासी है। विलासिता में जीवन व्यतीत करने के कारण शरीर इतना भारी हो गया है कि उन्हें अपनी धोती संभाल पाना कठिन हो गया है। वे गरीबों का शोषण करते हैं। उचित मेहनताना भी नहीं देते । स्वयं उसकी कमाई खाकर स्वर्गिक सुखोपभोग में मशगूल हैं। वे फिरंगियों के पिच्छलग्गू बन गए हैं। उन्हें अपने देश की अपेक्षा विदेशी सरकार की चिंता इसलिए रहती है कि उनके विलासी जीवन पर कोई आफत न आने पावे। अतः कवि की राय है कि इन नेताओं में न तो देश-प्रेम की भावना है और न ही त्याग की भावना । निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि देश के नेता स्वार्थी, विलासी तथा अंग्रेजी के पोषक हैं।
प्रश्न 6. कवि ने ‘डफाली’ किसे कहा है और क्यों ?
उत्तर- कवि ने ‘डफाली’ उन्हें कहा है जो फिरंगी के विरोध के बजाय समर्थन करते हैं। वैसे लोग जिनका स्वाभिमान मर चुका है या देश-प्रेम की भावना अपने सुखोपभोग की चमक-दमक में लुप्त हो गई है। तात्पर्य यह कि जो स्वार्थ-सिद्धि के लिए फिरंगियों की झूठी प्रशंसा करने में मस्त हैं अथवा किसी पद या प्रतिष्ठा की प्राप्ति के लिए दिन- रात उसकी खुशामद करते हैं कवि के कहने का आशय है कि ऐसे लोग जिन्हें न तो अपने आत्मसम्मान की चिन्ता है और न ही भारतीयता का ख्याल है, वैसे लोग ही डफाली (बाजा) बजाने वालों की तरह उसकी खुशामद तथा झूठी प्रशंसा करते हुए उसका जयगान कर रहे हैं। तात्पर्य कि सामंतवादी लोग सरकार के कृपापात्र इसलिए हैं कि वे जनता का शोषण करके अपनी तिजोरी भर रहे हैं तथा स्वयं स्वर्गीय सुख का आनन्द ले रहे हैं।