धरती कब तक घूमेगी | Hindi Class 10th Subjective Question 2022 | Matric Hindi Subjective Question 2022 |
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धरती कब तक घूमेगी (साँवर दइया)
लेखक- परिचय- पाँवर दइया राजस्थानी भाषा के एक प्रमुख कलाकार है इन्होंने अपनी कहानियों में राजस्थानी समाज की समस्याओं को बड़े ही मार्मिक ढंग से उपस्थित किया है। प्रस्तुत कहानी ‘धरती कब तक घूमेगी’ का राजस्थानी भाषा से हिन्दी में अनुवाद कहानीकार ने स्वयं किया है। यह कहानी ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ से यहाँ साभार संकलित है।
प्रश्न 1. सीता अपने ही घर में क्यों घुटन महसूस करती है?
उत्तर-सीता अपने ही घर में इसलिए घुटन महसूस करती है, क्योंकि परिवार का माहौल ठीक नहीं है। भरा-पूरा घर है। बेटे-बहुएँ हैं, पोते-पोतियाँ हैं, लेकिन किसी में तालमेल नहीं है। परिवार की ऐसी स्थिति देख उसका मन भर जाता है। वह आँखे पोंछकर आकाश की ओर देखने लगती है उसे लगता है कि जैसे पृथ्वी और आकाश के बीच घुटन भरी हुई है, वैसी घुटन उसके हृदय में भरी हुई है, क्योंकि वह घर में उपेक्षित है। खाने को रोटी तो मिल जाती है, लेकिन माँ के प्रति बेटे का जो दायित्व होना चाहिए वह नहीं दिखता। अर्थात् माँ-बेटे के बीच जो आत्मीयता होती है उसका सर्वथा अभाव है। न तो कोई माँ का हालचाल पूछने वाला है और न माँ की समस्या को जानने वाला ही है। घर के लोग माँ को बोझ जैसा मानते हैं। इन्हीं कारणों से सीता अपने घर में घुटन महसूस करती है।
प्रश्न 2. पाली बदलने पर अपने घर दादी माँ के खाने को लेकर बच्चे खुश होते हैं जबकि उनके माता–पिता नाखुश । बच्चे की खुशी और माता– पिता की नाखुशी के कारणों पर विचार करें।
उत्तर –पाली बदलने पर अपने घर दादी माँ के खाते देखकर बच्चे इसलिए खुश होते थे कि वे अपनी दादी माँ के साथ एक ही थाली में खाएँगे, उनके साथ खेलेंगे। लेकिन उनके माता-पिता नाखुश हो जाते थे, क्योंकि उन्हें एक महीना उनका खर्च वहन करना होगा। बच्चों के माता-पिता अपनी माँ (सीता) को बोझ मानते है। एक माँ के प्रति पुत्र की जो आत्मीयता होनी चाहिए, वह नहीं है। माँ को दोनों शाम रोटी इसलिए देते है, क्योंकि यह तो गले आ पड़ा फर्ज है। बेटे तो माँ को बोझ मान बैठे थे। वे अपने-अपने लाभ में डुबे हुए थे। इस स्वार्थ के कारण वे इतने गिर गए थे कि जन्म देने वाली माँ को आफत मानने लगे थे। तात्पर्य यह कि वे पुत्र का नहीं, अपितु सामाजिक बाध्यता तथा बदनामी के भय से दोनों वक्त रोटी दे देते थे। यदि यह भय नहीं होता तो रोटी भी नहीं देते, लेकिन बच्चे उन्हें अपनी दादी जानकर खुश होते थे कि उन्हें अपने पिता की माँ का स्नेह भरा प्यार मिलता था।
प्रश्न 3. ‘इस समय उसकी आँखों के आगे न तो अँधेरा था और न ही उसे धरती और आकाश के बीच घुटन हुई।‘ सप्रसंग व्याख्या करें ।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश साँवर दइया द्वारा लिखित कहानी ‘धरती कब तक घूमेगी’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है इसमें कहानीकार ने तीन बेटे की एक माँ की मनोदशा का मार्मिक चित्रण किया है। घर भरा-पूरा है। बेटे-बहुएँ, पोते-पोतियाँ तथा धन-सम्पत्ति से सम्पन्न परिवार है। लेकिन पति के मरते ही सीता (माँ) दूध की मक्खी बन जाती है। तीनो बेटे बारी- बारा से माँ को एक-एक महीने अपने परिवार में खाना तो देते है, लेकिन सभी उन्ह उपेक्षा एवं घृणा की दृष्टि से देखते है। परिवार की ऐसी स्थिति देख माँ का हृदय टूट जाता है। वह अपनी व्यथा अन्दर-ही-अन्दर सह लेती है, लेकिन व्यक्त नहीं करती। इसके बावजूद जब माँ, बेटे और रोटी में रोटी ही महत्त्वपूर्ण रह जाती है तब वह एक के बाद दूसरे और दूसरे के बाद तीसरे में पाँच वर्षों तक चक्कर लगाती रहती है। इस पर भी मन नहीं भरता है तब माहवारी खर्च के लिए माँ को डेढ़ सौ रुपये देने का निर्णय लिया जाता है। बेटों के इस निर्णय से माँ का स्वाभिमान जाग पड़ा। उसने बेटों से मजदूरी लेने की अपेक्षा कही और नौकरी करना बेहतर समझा, क्योंकि वहाँ न तो अपमानित होना पड़ेगा और न ही ताने सुनने पड़ेगे।
दूसरे के घर में परिश्रम के अनुकूल आदर तथा अपनी इच्छा प्रकट करने का अवसर मिलेगा। स्वतंत्र जीवन तथा खुली हवा होगी। यही कारण है कि घर छोड़ते समय आँखो के आगे न तो अँधेरा था और न ही उसे धरती और आकाश के बीच घुटन महसूस हो रहा था। बारा से माँ को एक-एक महीने अपने परिवार में खाना तो देते है, लेकिन सभी उन्ह उपेक्षा एवं घृणा की दृष्टि से देखते है। परिवार की ऐसी स्थिति देख माँ का हृदय टूट जाता है। वह अपनी व्यथा अन्दर-ही-अन्दर सह लेती है, लेकिन व्यक्त नहीं करती। इसके बावजूद जब माँ, बेटे और रोटी में रोटी ही महत्त्वपूर्ण रह जाती है तब वह एक के बाद दूसरे और दूसरे के बाद तीसरे में पाँच वर्षों तक चक्कर लगाती रहती है। इस पर भी मन नहीं भरता है तब माहवारी खर्च के लिए माँ को डेढ़ सौ रुपये देने का निर्णय लिया जाता है। बेटों के इस निर्णय से माँ का स्वाभिमान जाग पड़ा। उसने बेटों से मजदूरी लेने की अपेक्षा कही और नौकरी करना बेहतर समझा, क्योंकि वहाँ न तो अपमानित होना पड़ेगा और न ही ताने सुनने पड़ेगे। दूसरे के घर में परिश्रम के अनुकूल आदर तथा अपनी इच्छा प्रकट करने का अवसर मिलेगा। स्वतंत्र जीवन तथा खुली हवा होगी। यही कारण है कि घर छोड़ते समय आँखो के आगे न तो अँधेरा था और न ही उसे धरती और आकाश के बीच घुटन महसूस हो रहा था।
प्रश्न 4. सीता का चरित्र–चित्रण करें।
उत्तर– सीता इस कहानी की नायिका है जो स्वाभिमानी, सहनशील, धैर्यवान तथा ममतामयी है। पति की मृत्यु के बाद वह इच्छारहित हो उसे जो कुछ खाने को मिलता है, चुपचाप खा लेती है।, उसे इस बात पर आश्चर्य होता है कि कहने को तो वह माँ है, लेकिन कोई हालचाल तक नहीं पूछता। यह सोचकर उसका हृदय भर आता है। वह खिन्न हो जाती है, लेकिन किसी के समक्ष अपनी व्यथा प्रकट नहीं करती है। वह हर अपमान को चुपचाप सह लेती है। परिवार के दूषित वातावरण को देख कहती है कि “कहने को तो यह घर है। गली के लोगों की दृष्टि में अच्छा खाता-पीता घर है, लेकिन यहाँ खाते-पीते घर में हो खाने-पीने को लेकर एक पेट के लिए इतने झंझट ! ये लोग सुबह-शाम गाय-कुत्ते को रोटी डालो है। फिर मेरी रोटी में ऐसा क्या है कि इन लोगों को हमेशा नये ढंग से सोचना पड़ता है।” इस प्रकार वह परिवार की हर उपेक्षा तथा वृणा को धैर्यपूर्वक सहोती है लेकिन तीनो बेटे द्वारा माहवारी खर्च के रूप में डेढ़ सौ रुपये दिए जाने की बात। सुनकर विदग्ध हो जाती है तथा एक स्वाभिमानी की भाँति स्वतंत्रतापूर्ण जीवन व्यतीत करने के उद्देश्य से घर का त्याग कर चल देती है।
प्रश्र 5. कहानी के शीर्पक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर—प्रस्तुत कहानी ‘धरती कब तक घूमेगी’ चरित्र प्रधान कहानी है। कहानी आरंभ से अंत तक सीता के इर्द-गिर्द घूमती है। कहानी तीन बेटे और एक माँ की दोनों वक्त रोटी की कहानी है, जिसमें रोटी ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है। माँ की रोटी के कारण बड़ा बेटा कैलास अपने दो भाइयों से कहता है- “माँ को रखने का ठेका सिर्फ उसी ने तो नहीं ले रखा है।’ परिणामतः माँ को तीनों बेटों में बारी-बारी सक एक-एक महीना खाने के लिए घूमना पड़ता है। और यह क्रम तब तक चलता है जब तक सीता (माँ) घर छोड़कर चली नहीं जाती है। कहानीकार ने कहानी का शीर्षक ‘धरती कब तक घूमेगी’ के माध्यम से यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि धरती अर्थात् माँ दो वक्त की रोटी के लिए एक से दूसरे तथा दूसरे से तीसरे के घर कब तक घूमेगी? इसी चक्कर को रोकने के लिए कैलास तीनों भाई माँ को पचास-पचास रुपये हर महीने देने का निर्णय करता है, लेकिन माँ इसे अपना अपमान मानकर घर का त्याग कर देती है। इस प्रकार कहानी अपने लक्ष्य तक पहुँच पाठकों के मन में एक जिज्ञासा पैदा कर देती है कि आखिर वह कहाँ गई ? अतः कहानी का शीर्षक विषयानुकूल तथा भाव उद्बोधक है।