Class 10 Subjective History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद  | Bihar Board Social Science History Subjective Question 2025

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Class 10 Subjective History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद सामाजिक विज्ञान (Social Science) के अंतर्गत आने वाला विषय इतिहास जिससे परीक्षा में काफी सब्जेक्टिव प्रश्न(Subjective Questions) पूछे जाते हैं कई सारे महत्वपूर्ण तिथि और कई सारे लोग जगह और भी कई सारी जानकारियां आपको इतिहास में मिलती है जिससे परीक्षा में कई सारे प्रश्न पूछे जाते हैं और इतिहास के विषय में ज्यादा प्राप्त करने के लिए आपको सब्जेक्टिव प्रश्नों कोजरूर देखना चाहिए

आप लोग के लिए महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव प्रश्न इतिहास (History Important Subjective Questions)  विषय के हर चैप्टर सेलेकर आ चुके हैं मंटू सर Mantu Sir(Dls Education) आपको सब्जेक्टिव सेट (Subjective Model Set) उपलब्ध करा रहा है इसमें आपको कई सारे प्रश्न मिलेंगे लघु उत्तरीय, दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Short And Long Question Answer) उपलब्ध हैजिस की परीक्षा मेंआप सभी प्रश्नों के जवाब आसानी से दे पाएंगे बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा (Bihar Board Matric Exam 2025) में 50% सब्जेक्टिव प्रश्न पूछे जाते हैंकिसी को देखते हुए आपको सब्जेक्टिव प्रश्नों (Subjective Questions) को ध्यान से पढ़ना जरूरी है

Class 10 Subjective History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद

यूरोप एक राष्ट्रवाद एक ऐसा चैप्टर (Class 10 History Chapter 1) है इस चैप्टर से काफी प्रश्न परीक्षा में पूछे जाते हैं इस चैप्टर में आपको राष्ट्रवाद के बारे में बताया गया है और यूरोप में राष्ट्रवाद को फैलाने में नेपोलियन बोनापार्ट किस तरह सहायक हुए इसकी भी जानकारी आपको मिलती है और 1830 की जुलाई क्रांति का फ्रांस पर क्या प्रभाव पड़ा था और 1848 ई की फ्रांसीसी क्रांति के क्या कारण रहे थेलोग एवं रिक्त की नीति क्या थी यह सब कुछ आपको इस चैप्टर में पढ़ने को मिलता है इतिहास का काफी कुछ इस चैप्टर में दिया गया है

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. राष्ट्रवाद क्या है?

उत्तर– राष्ट्रवाद एक ऐसी भावना है,जो किसी विशेष भौगोलिक संस्कृति की याद सामाजिक परिवेश में रहने वालों के बीच एकता की भावना का वाहक बनती है।

प्रश्न 2.मेजिनी कौन था?

उत्तर- मेंजिनी मुख्त: एक साहित्यकार था लेकिन उसे राजनीतिक से भी प्रेम था वह कुछ दिनों तक एक क्रांतिकारी और गुप्त संगठन कार्बोनरी से जुड़ा रहा था लेकिन वह गणतंत्र में विश्ववास रखता था।

प्रश्न 3. जर्मनी के एकीकरण की बढ़ाएं क्या-क्या थी?

उत्तर- जर्मनी के एकीकरण की अनेक बढ़ाएं थी वह लगभग 300 छोटे बड़े राज्यों में बांटा हुआ था। इन सभी राज्यों के प्रमुखों की अपनी अपनी सोच थी धार्मिक और जातीय रूप से भी एक नहीं थे।

प्रश्न 4 मेटरनिख युग क्या है? 

उत्तर-  मेटरनिख ही पुरातन व्यवस्था का समर्थन था नेपोलियन द्वारा स्थापित एकता उसे पसंद नहीं थी इटली पर अपना प्रभाव जमाने के लिए उसने उसे कई राज्य में विभाजित कर दिया। इसी युग इटली पर अपना प्रभाव जमाने को मेटरनिख युग कहते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न:  (लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें):

प्रश्न 1. 1848 के फ्रांसीसी क्रांति के क्या कारण थे?

उत्तर– फ्रांस का शासक लुइ फिलिप उदारवादी था लेकिन वह महत्वाकांक्षी  भी था। उसने 1840 ईस्वी में गजों को प्रधानमंत्री नियुक्त किया। जो कटर प्रतिक्रिया वाली था। राज्य में वह किसी भी सुधार को लागू करने के पक्ष में नहीं था राजा लुई फिलिप भी अमीर का साथ पसंद करता था उसके पास कोई सुधार आत्मक कार्यक्रम नहीं था देश में भुखमरी और बेरोजगारी चरम पर थी सफलता सुधारवादी रहने लगे। 1848 के फ्रांसीसी क्रांति के लिए यही सभ  कारण थे।

प्रश्न 2. इटली और जर्मनी के एकीकरण में ऑस्ट्रिया की क्या भूमिका थी?

उत्तर– इटली का एकीकरण—ऑस्ट्रेलिया और पीडमाउन्ट  में सीमा को लेकर विवाद था इस कारण ऑस्ट्रेलिया और इटली के युद्ध शुरू हो गया युद्ध 1859 में प्रारंभ हुआ और 18 से 60 तक चला युद्ध में इटली के समर्थन में फ्रांस ने अपनी सेना उतार दी। ऑस्ट्रिया सी बुरी तरह परास्त हुई। हेलो ऑस्ट्रेलिया के एक बड़े राज्य लोंबार्ड पर पिडमाउंट का अधिकार हो जाने से इटली एक बड़े राज्य के रूप में सामने आ खड़ा हुआ। काबुल मध्य तथा उत्तरी इटली को इटली में मिलना चाहता था इतना ही नहीं,रोन   को छोड़ संपूर्ण इटली के एकीकरण में कबूल को सफलता मिल गई।

ऑस्ट्रिया को चुप बैठ जाना पड़ा। जर्मनी का एकीकरण—1806 में नेपोलियन बोनापार्ट ने जर्मन क्षेत्र को जीत कर राइन राज्य संघ का गठन किया। इसी के बाद जर्मन वासियों ने राष्ट्रवाद की भावना बढ़ाने लगी लेकिन दक्षिणी जर्मनी के लोग एकीकरण के विरोध में थे जर्मनी में विरोध की स्थिति पैदा होने लगी, जिसे ऑस्ट्रेलिया और प्रशा ने मिलकर दबा दिया। प्रसाद जर्मनी का एकीकरण अपने नेतृत्व में करना चाहता था, जिसके लिए वह अपनी सैन्य शक्ति बढ़ने लगा। सैन्य शक्ति तथा कूटनीति के चलते जर्मनी के एकीकरण में वह सफल हो गया तथा बिस्मार्क को जर्मनी का चांसलर नियुक्त कर दिया। इस प्रकार इस एकीकरण में भी ऑस्ट्रेलिया है मूल में था।

प्रश्न 3. यूरोप में राष्ट्रवाद को फैलाने में नेपोलियन बोनापार्ट किस तरह सहायक हुआ?

उत्तर- नेपोलियन बोनापार्ट ने जो जर्मनी और इटली में राष्ट्रीयता की स्थापना में मदद पहुंचाई, बल्कि संपूर्ण यूरोप के देशों में राष्ट्रीयता को लेकर उथल-पुथल आरंभ हो गया। इस राष्ट्रीयता के मूल में राष्ट्रीयता की भावना के साथ है लोकतांत्रिक विचारों का भी उदय हुआ। हंगरी बोहेमिया तथा यूनान में स्वतंत्रता आंदोलन इसी राष्ट्रवाद का परिणाम था। इसी आंदोलन के प्रभाव के कारण उस्मानिया साम्राज्य का पतन हो गया और वह तुर्की तक में ही सीमेंट कर रह गया राष्ट्रवाद के कारण है बाल्कन क्षेत्र के सलाह जाति को संगठित होने का मौका मिला और सर्बियान ,नामक  नए देश का जन्म हुआ।

प्रश्न 4.गैरीबाल्डीके कार्यों की चर्चा करें।

उत्तर- गैरीबाल्डी सशस्त्र क्रांति का समर्थन था वह इटली के रियासतों का एकीकृत करके इटली में गणतंत्र की स्थापना करना चाहता था। वह मैजिनी के विचारों को मानता था, किंतु बाद में काबुल के प्रभाव में आकर संवैधानिक राजतंत्र का समर्थक बन गया। उसने अपने लोगों को मिलाकर एक से का गठन किया और सुना के बल पर इटली के सीसरली तथा निपल्स पर अधिकार जमा लिया। उसने विक्टर इमानुएल के प्रतिनिधि के रूप में वहां की सत्ता संभाल ली। वह रूम पर आक्रमण करना चाहता था लेकिन काबुल के कहने से उसने यह योजना त्याग दी। उसने बहुत कुछ किया किंतु कहीं का शासक बनने से इनकार कर दिया। इस त्याग से विश्वभर में उसकी प्रशंसा हुई।

प्रश्न 5 विलियम प्रथम (1) के बगैर जर्मनी के एकीकरण बिस्मार्क के लिए असंभव था।कैसे?

उत्तर- विलियम प्रथम  1 जिसे फ्रेडरिक विलियम भी कहा जाता है, बिस्मार्क के लिए बड़े ही महत्व का था। 1848 ई को पुरानी संसद को फ्रैंकफर्ट मैं बुलाया गया। वहां यह निर्णय लिया गया की फैक्ट्री विलियम जर्मन राष्ट्र का नेतृत्व करेगा और उसी के नेतृत्व में समस्त जर्मन राज्यों को एकीकृत किया जाएगा। लेकिन विलियम ने इसको मानने से इनकार कर दिया। जब बिस्मार्क को जर्मनी का चांसलर नियुक्त कर दिया गया तो देश की एकता और शांति स्थापित करने से वह विलियम को आवश्यक मानने लगा। क्योंकि फ्रेंड फोर्ट के निर्णय को वह भूला नहीं था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न: (लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें):

प्रश्न 1. इटली के एकीकरण में जर्मनी काबुल और गैरीबाल्डी के योगदानों को बताएं।

उत्तर- मेजिनी कलम के साथ तलवार में भी विश्वास रखता था। वह साहित्यकार के साथ ही एक युग सेनापति भी था। लेकिन उसे राजनीति की अच्छी समझ नहीं थी। बार-बार की असफलता के बावजूद वह हार मानने वाला नहीं था। 1848 ईस्वी में यूरोपीय क्रांति के दौर में मैजिनी को ऑस्ट्रेलिया छोड़ना पड़ा। बाद में वह इटली को राजनीतिक मे सक्रिय हो गया। वह संपूर्ण इटली का है कि कारण और उसे गणराज्य बनाना चाहता था। लेकिन जब ऑस्ट्रिया ने इटली में चल रहे जनवादी आंदोलन को दबा दिया तो मैजिनी को वहां से भागना पड़ा।

सर्दिनिया– पिंडमाउंट काश शासक “विक्टर इमानुएल”राष्ट्रवादी था और इटली का एकीकरण चाहता था। इस काम में तेजी लाने के लिए उसने अकाउंट कबूल को अपना प्रधानमंत्री बना दिया काबुल सफल राजनीतिज्ञ और कट्टर राष्ट्रवादी था उसका मानना था कि इटली के एकीकरण में ऑस्ट्रेलिया सबसे बड़ा रोड़ा है वह ऑस्ट्रेलिया को हराने के लिए फ्रांस से मित्रता कर लिया और उसकी ओर 1853 से 54 में क्रीमिया युद्ध में भाग लेने की घोषणा कर दी युद्ध की समाप्ति के बाद पेरिस के शांति सम्मेलन में फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया के साथ विद माउथ को भी बुलाया गया। काबुल इसमें सम्मिलित हुआ अपनी कूटनीति के बल पर उसने इटली को पूरे यूरोप की समस्या बना दिया इटली में ऑस्ट्रेलिया के हस्तक्षेप को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया यह कबूल की बहुत बड़ी सफलता थी।

प्रश्न 2. जर्मनी के एकीकरण में विस्मार्क की भूमिका का वर्णन करें।

उत्तर- विस्मार्क जर्मन संसद (डायट) में अपने सफल कूटनीतिज्ञ होने का लगातार परिचय देता आ रहा था। वह निरंकुश राजतंत्र का समर्थन के साथ जर्मनी के एकीकरण के प्रयास में भी जुड़ा था। उसकी कूटनीतीज्ञ सफलता थी। कि उदारवादी और कट्टरवादी —दोनों ही विस्मार्क को अपना समर्थक समझते थे। विस्मार्क ‘रक्त और लौह नीति’ का अवलंबन करते हुए जर्मनी के एकीकरण के लिए सैन्य शक्ति बढ़ाना चाहताथा । उसने अपने देश में अनिवार्य सैन्य सेवा’ लागू कर दी।जिस एक विस्मार्क ने प्रशा को मजबूत करने का प्रयास किया ताकि जर्मनी के एकीकरण में आस्ट्रिया अवरोध खड़ा करने की स्थिति में नहीं रहे। लेकिन अपनी कूटनीतिक जाल में फंसाकर उसने आस्ट्रिया से संधि कर ली।

1864 में श्लेशविग और हॉलेस्टीन राज्यों को मुद्दा बनाकर उसने डेनमार्क पर आक्रमण कर दिया, क्योंकि ये दोनों राज्य इसी के अधीन थे। विजयी होने के बाद श्लेशविग प्रशा को मिला तथा हॉलेस्टीन आस्ट्रिया को ।इन दोनों राज्यों में जर्मन मूल के लोगों की संख्या अधिक थी। इस कारण प्रशा ने जर्मन राष्ट्रवादी भावना भड़का कर विद्रोह फैला दिया। इस विद्रोह को आस्ट्रिया रोकना तो चाहताथा, किन्तु प्रशा से होकर ही उसे वहाँ जाना था, जिसके लिए काबूर ने उसे मना कर दिया ।विस्मार्क ओस्ट्रिया से युद्ध अवश्यक मानता था। लेकिन उसकी मंशा थी कि दुनिया आस्ट्रिया को ही आक्रमणकारी समझे। दोनों में युद्ध शुरू हो गया,जबकि फ्रांस तटस्थ बना रहा। आस्ट्रिया ने 1866 ई. में प्रशा के खिलाफ सेडोवा में युद्ध की घोषणा कर दी।

संधि के अनुसार प्रशा के पक्ष में इटली ने आस्ट्रिया पर आक्रमण कर दिया। अत: आस्ट्रिया दोनों ओर से घिर गया और बुरी तरह हार गया। फलत: आस्ट्रिया का जर्मन क्षेत्रों पर से प्रभाव समाप्त होगया। लेकिन उसकी मंशा थी कि दुनिया आस्ट्रिया को ही आक्रमणकारी समझे। दोनों में युद्ध शुरू हो गया, जबकि फ्रांस तटस्थ बना रहा। आस्ट्रिया ने 1866 ई. में प्रशा के खिलाफ सेडोवा में युद्ध की घोषणा करदी। संधि के अनुसार प्रशा के पक्ष में इटली ने आस्ट्रिया पर आक्रमण कर दिया। अत: आस्ट्रिया दोनों ओर से घिर गया और बुरी तरह हार गया फलत: आस्ट्रिया का जर्मन क्षेत्रों पर से प्रभाव समाप्त हो गया।

प्रश्न 3. राष्ट्रवाद के उदय और प्रभाव की चर्चा कीजिए।

उत्तर- राष्ट्रवाद का उदय फ्रांस की क्रांति के फलस्वरूप हुआ। क्रांति की सफलता से पूरे यूरोप में राष्टवाद का लहर उठ गया। फलस्वरूप अनेक छोटे-बड़े राष्ट्रों का उदय हुआ । बाल्कन क्षेत्र के छोटे राज्य एवं जातियों के समूहों में भी राष्ट्रवाद की भावना पनपने लगी। जर्मनी, इटली, फ्रांस, इंग्लैंड जैसे देशों में तो राष्ट्रवाद इतनी कट्टरता से उपर कि साम्राज्यवाद फैलाने में ये एक-दूसरे से होड़ करने लगे। यह राष्ट्रवाद का नकारात्मक एवं घृणित पक्ष था । औद्योगिक क्रांति की सफलता भी कट्टर राष्ट्र वादिता को हवा देने लगी। ये बड़े साम्राज्यवादी सर्वप्रथम एशिया और बाद में अफ्रीका को अपना निशाना बनाने लगे। इसके लिए इनमें अनेक युद्ध भी हुए। जो जितना शक्तिशाली था,वह उतना ही बड़े भाग पर कब्जा जमा बैठा।

इन उपनिवेश वादियों ने जहाँ अपनी जड़ जमाई वहाँ उन्होंने खुलकर शोषण किया। उपनिवेशों से उन्हें दो लाभ प्राप्त हुए। एक तो उद्योगों के लिए कच्चा माल आसानी से मिलने लगा और दूसरा यह कि तैयार माल का बाजार भी हाथ में आ गया। भारत के लिए इंग्लैंड, फ्रांस,पुर्तगाल और हॉलैंड में युद्ध हुआ, जिसमें इंग्लैंड विजयी रहा। हॉलैंड को तो भारत छोड़ना ही पड़ा, पुर्तगाल और फ़्रांस एक कोने में सिमट कर रह गए। अफ्रीका को तो इन्होंने बपौती जमीन की तरह बटा ।यह राष्ट्रवाद का घिनौना प्रभाव था।

फ्रांस की संसद एवं उदारवादियों ने पोलिग्ने की कड़ी भर्तसना की । चार्ल्स दसवें ने इस विरोध की प्रतिक्रिया में 25 जुलाई, 1830 ई. को चार अध्यादेशों द्वारा उदारवादियों को तंग करने का प्रयास किया। इन अध्यादेशों का पेरिस में स्थान-स्थान पर विरोध होने लगा। इसके चलते 28 जून, 1830 ई. में फ्रांस में गृह युद्ध आरम्भ होगया। वास्तव में यही जुलाई 1830 की क्रांति थी । क्रांति सफल हुई ।

प्रश्न 4. जुलाई, 1830 की क्रांति का विवरण दीजिए 

उत्तर— फ्रांस का शासक चार्ल्स दसवाँ निरंकुश तो था ही, घोर प्रतिक्रियावादी भी था। उसने फ्रांस में उभरी   राष्ट्रीयता को तो दबाया ही,जनतांत्रिक भावनाओं को भी कड़ाई से दबाने का काम किया। उसके द्वारा संवैधानिक जनतंत्र की राह में अनेक रोड़े खड़े किए गए। उसने ‘पोलिग्नेक’ को प्रधानमंत्री नियुक्त किया जो उससे भी बड़ा प्रतिक्रियावादी था । उसने पहले से चली आ रहीं समान नागरिक संहिता के स्थान पर शक्तिशाली अविभाजित  वर्ग को विशेषाधिकार से विभूषित किया उसके इस कदम को उदारवादियों ने चुनौती समझा।

उन्हें यह भी संदेह हुआ कि क्रांति के विरुद्ध यह एक षड्यंत्र है। फ्रांस की संसद एवं उदारवादियों ने पोलिग्ने की कड़ी भर्तसना की । चार्ल्स दसवें ने इस विरोध की प्रतिक्रिया में 25 जुलाई, 1830 ई. को चार अध्यादेशों द्वारा उदारवादियों को तंग करने का प्रयास किया। इन अध्यादेशों का पेरिस में स्थान-स्थानपर विरोध होने लगा। इसके चलते 28 ज।5 यूनानी स्वतंत्रता आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण दें।

प्रश्न 5. यूनानी स्वतंत्रता आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण दें।

उत्तर—फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित होकर यूनानियों में राष्ट्रीयता की भावना जग गई।कारण कि एक तो सभी यूनानियों का धर्म और उनकी जाति-संस्कृति एक थी, दूसरे कि प्राचीन यूनान सभ्यता, संस्कृति, साहित्य, विचार, दर्शन,कला, चिकित्सा विज्ञान आदि के क्षेत्र में न केवल यूरोप का बल्कि पूरे विश्व का अगुआ था। इसके बावजूद आज वह उस्मानिया साम्राज्य के एक अंग के रूप में जाना जाता था। फलतः तुर्की के विरुद्ध आन्दोलन आरम्भ हो गया । आन्दोलन में मध्य वर्ग का सहयोग मिलने लगा जो काफी शक्तिशाली था ।यूनान की स्थिति तब और विकट हो गई, जब तुर्की ने यूनानी आन्दोलन कारियों को भी एक-एक कर दबाना शुरू कर दिया। 1821 ई. में यूनानियों ने विद्रोह शुरू कर दिया।रूस तो यूनानियों के पक्ष में था,

लेकिन आस्ट्रिया के दबाव के कारण वह खुल करबी सामने नहीं आ रहा था। लेकिन जार निकोलस खुलकर यूनान का समर्थन करने लगा। एक प्रकार से सम्पूर्ण यूरोप से यूनान को समर्थन मिलने लगा। यूनान और तुर्की में युद्ध छिड़ गया। अनेक देश यूनानियों के पक्ष में आए, किन्तु तुर्की के पक्ष में केवल मिस्र ही सामने आया। युद्ध में यूनानी विजयी रहे। तुर्की और मिस्र दोनों हार गए इसके बावजूद यूनान को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं मिली। वह पूर्ण स्वतंत्र तब हुआ जब 1832ई. में उसे एक स्वतंत्र राष्ट्र मान लिया गया।

HISTORY Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद  Class 10

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यूरोप में राष्ट्रवाद Class 10 Subjective

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