समाजवाद और साम्यवाद Social Science vvi Subjective Question 2022 | Class 10th Social Science vvi Subjective Question 2022 |
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पाठ के मुख्य बात (सारांश)
समाजवाद साम्यवाद भारत के लिए कोई नई बात नहीं है, क्योंकि प्राचीन भारत में समाज के सबलोग मिल-जुलकर काम करते थे और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे। आधुनिक काल में समाजवाद की परिकल्पना कार्ल मार्क्स द्वारा 19वीं शताब्दी में की गई। इसके पहले यूटोपियनों (स्वप्नदर्शियों) ने इस पर कुछ प्रकाश डाला था। यूटोपियनों में सेंट साइमन, चार्ल्स फोरियर, लुई ब्लां तथा राबर्ट ओवन प्रमुख थे । प्रथम तीन तो फ्रांसीसी थे और अंतिम एक इंगलिश था ।
कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई, 1818 में हुआ था। वह समाजवाद का प्रथम प्रतिवादक था। उसने ‘दास कैपिटल’ नाम की पुस्तक की रचना करके समाजवाद को प्रतिष्ठा प्रदान की थी। इसकी मृत्यु 1883 में हुई । उस समय रूस मार्क्सवादियों के लिए स्वर्ग-सा था, क्योंकि वहाँ का शासक जार जनता के बदले चापलूसों को अधिक पसन्द करता था। 1817 के अक्टूबर में बोल्शेविक क्रांति की सफलता के बाद रूस में समाजवादी शासन की स्थापना हुई। लेनिन ने पहले तो अधिक कड़ाई की लेकिन बाद में उसे कुछ सहुलियतें देनी पड़ी, जिसके लिए उसने 1921 में नई आर्थिक नीति की घोषण की। 1924 में लेनिन की मृत्यु के बाद स्टालिन ने सत्ता सम्भाली ।
उसने नई आर्थिक नीति के कई प्रावधानों को वापस ले लिए और कम्युनिस्टों का असली चेहरा दिखा दिया । 1953 मे स्टालिन की मृत्यु के बाद कई नेता बारी-बारी से रूस का प्रधानमंत्री बनते रहे और बदले जाते रहे। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद रूस एक बड़ी शक्ति के रूप में सामने आया ! अब पूँजीवादी देशों और रूस जैसे समाजवादी देशों में प्रतिस्पर्धा बढ़ने लगी। फलतः भयानक युद्धक शस्त्रास्त्र बनाए जाने लगे। इससे शीत युद्ध की भावना प्रबल होने लगी। रूसी क्रांति का अच्छा-बुरा दोनों प्रभाव पड़ा। यूरोपीय उपनिवेशों की जनता अपनी गुलामी से मुक्ति के लिए छटपटाने लगी। आन्दोलन-पर-आन्दोलन होने लगे। अंत में उबकर विदेशियों को उन देशों से भागना पड़ा, जहाँ वे जड़ें जमा कर वहाँ की जनता का अनेक तरह से शोषण कर रहे थे। सभी परतंत्र देश स्वतंत्र हो गए।
समाजवाद और साम्यवाद अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1. पूंजीवाद क्या है?
उत्तर- पूँजीवाद एक ऐसी अर्थव्यवस्था है, जिसके तहत उत्पादन के सभी साधना पर पूंजीपतियों का अधिकार रहता है। वे ही कारखाने लगाते और उत्पादन करते हैं। इस अर्थव्यवस्था में पूँजीपति लाभान्वित होते हैं।
2. खूनी रविवार क्या है?
उत्तर- 1905 में जापान जैसे छोटे एशियाई देश से जब रूस हार गया तो वहाँ क्रांति हो गई। 9 जनवरी, 1905 को लोग ‘रोटी दो’ के नारे के साथ राजमहल की ओर प्रदर्शन करते बढ़ने लगे। सेना ने इन निहत्थों पर गोलियाँ चलानी शुरू कर दी। बहुतेरे लोग, जिनमें स्त्रियाँ और बच्चे भी थे मारे गए। वह रविवार का दिन था। तब से उस तिथि का रविवार ‘खूनी रविवार’ कहलाने लगा।
समाजवाद और साम्यवाद vvi Question 2022
3. अक्टूबर क्रांति क्या है?
उत्तर- 7 नवंबर, 1917 ई. को बोल्शेविकों ने करेंस्की सरकार का तख्ता पलट दिया और रूस पर अधिकार जमा लिया। थी तो वह नवम्बर क्रांति किन्तु रूसी कलेण्डर अनुसार यह अक्टूबर था, जिस कारण इसे अक्टूबर क्रांति कहते हैं।
4. सर्वहारा वर्ग किसे कहते हैं?
उत्तर- समाज का वैसा वर्ग, जिसमें किसान, मजदूर, फुटपाथी दुकानदार एवं -आम गरीब लोग, जिनके पास अपना कहने के लिए कोई वस्तु नहीं होती, ‘सर्वहारा’ कहलाता है।
प्रश्न 5. क्रांति के पूर्व रूसी किसानों की स्थिति कैसी थी?
उत्तर- -क्रांति से पूर्व रूसी किसनों की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। उनके खेत बहुत छोटे-छोटे थे जिनपर वे पारंपरिक ढंग से खेती करते थे। उनके पास पूँजी की कमी थी। वे करों के बोझ से दबे रहते थे।
समाजवाद और साम्यवाद लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. रूसी क्रांति के किन्हीं दो कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- रूसी क्रांति के प्रमुख दो कारण थे :
(i) जार की निरंकुशता तथा
(ii) मजदूरों की दयनीय स्थिति।
(i) जार की निरंकुशता – उन्नीसवीं सदी के मध्य तक यूरोप की राजनीतिक संरचना बदल चुकी थी। राजाओं की शक्ति कम कर दी गई थी। परन्तु रूसं का जार अभी भी पुरानी दुनिया में जी रहा था और राजा की दैवी अधिकार में विश्वास करता था। वह अपनी शक्ति कम करने को तैयार नहीं था।
(ii) मजदूरों की दयनीय स्थिति- रूसी क्रांति के पूर्व वहाँ के मजदूरों को अधिक समय तक काम करने के बावजूद उन्हें मजदूरी कम मिलती थी। मजदूरी इतनी कम मिलती थी कि उससे वे अपने परिवार का भरण-पोषण नहीं कर पाते थे। मालिकों द्वारा उनके साथ दुर्व्यवहार भी किया जाता था।
2. रूसीकरण की नीति क्रांति हेतु कहाँ तक उत्तरदायी थी?
उत्तर- रूस में अनेक राष्ट्रों के लोग रहते थे। स्लाव जाति के लोगों की अधिकता थी। फिन, पोल, जर्मनी, यहूदी आदि जातियों की भी कमी नहीं थी। इनकी जाति तो अलग थी ही, ये अलग-अलग भाषाओं का भी उपयोग करते थे। इनके रस्म-रिवाज विभिन्न थे। ऐसी स्थिति में जार निकोलस द्वितीय ने इन लोगों पर रूसी भाषा, शिक्षा और संस्कृति लादने का प्रयास किया। इससे अल्पसंख्यकों में निराशा फैलने लगी । जार के इस ‘रूसीकरण’ का सभी अल्पसंख्यकों द्वारा विरोध होने लगा। इस नीति के विरुद्ध 1863 में “पोलो’ ने विद्रोह कर दिया, जिसे निर्दयतापूर्वक दबा दिया गया ।
3. “साम्यवाद एक नई आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था थी।” कैसे?
उत्तर- 1917 की बोल्शेविक क्रांति के पूर्व विश्व में पूँजीवादी व्यवस्था का बोलबाला था, जिसमें उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत अधिकार माना जाता था। लेकिन क्रांति के सफल होने के बाद रूस में साम्यवादी व्यवस्था कायम की गई। इस व्यवस्था के तहत उत्पादन के सभी साधनों पर राज्य का अधिकार कायम करना है। श्रमिकों को उनके श्रम के अनुसार पारिश्रमिक दी जाती है। इससे श्रमिक मन लगाकर काम करते हैं और उत्पादन बढ़ाने का प्रयास करते हैं। उत्पादन में सभी का भाग बराबर रहता है। यही व्यवस्था ‘साम्यवाद एक नई आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था थी।’ यह केवल पढ़ने में आकर्षक है, किन्तु व्यावहारिकरूप देना कठिन है। यही कारण था कि रूस में यह व्यवस्था लगभग नाकाम रही।
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प्रश्न 4. “नई आर्थिक नीति मार्क्सवादी सिद्धान्तों के साथ समझौता था।” कैसे?
उत्तर– लेनिन ने बोल्शेविक क्रांति के सफल होते ही रूस में पूर्णतः मार्क्सवादी सिद्धान्त के अनुसार आर्थिक व्यवस्था लागू कर दी। लेकिन जनता इसके लिए पहले से तैयार नहीं थी। ऐसा लगा कि उत्पादन गिरकर पहले के मुकाबले बहुत हद तक नीचे आ गया, बल्कि इतना तक हुआ कि अनाज सरकार को देने के बजाय किसान उसे जला देना बेहतर समझने लगे। इससे निबटने के लिए लेनिन को नई आर्थिक नीति लागू करनी पड़ी। इस नीति के अनुसार किसानों को एक हद तक अपनी उपज का कुछ भाग बेचने की सुविधा दी गई। 20 श्रमिकों को रखकर कोई भी निजी कारखाना चला सकता था। लेनिन के इस कार्य का उसके विरोधियों द्वारा आलोचना भी हुई। लेकिन उसने इसे यह कहकर टाल दिया कि “तीन कदम आगे बढ़कर एक कदम पीछे चलना दो कदम आगे चलने के बराबर है।”
प्रश्न 5. प्रथम विश्व युद्ध में रूस की पराजय ने क्रांति हेतु मार्ग प्रशस्त किया।” कैसे?
उत्तर- रूस में क्रांति का मार्ग प्रशस्त करने में केवल प्रथम विश्व युद्ध में पराजय ही नहीं था, बल्कि कुछ अन्य कारण थी थे। युद्ध में रूस की हार नहीं हुई थी, बल्कि लेनन ने क्रांति के बाद स्वयं युद्ध से हाथ खींच लिया और सैनिकों को वापस बुला लिया। कारण था कि देश के आर्थिक विकास के लिए शांति आवश्यक थी। इतना ही नहीं,
उसने जर्मनी से अनाक्रमण संधि तक कर ली। वास्तव में क्रांति की जमीन पहले से ही तैयार हो रही थी। 1805 में रूस का जापान से हार जाना, खूनी रविवार, रासपुटिन का षड्यंत्र, देश में फैल रही गरीबी, अन्य भाषा भाषियों पर जबदस्ती रूसी भाषा लादना आदि अनेक कारणों ने क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया था।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. रूसी क्रांति के कारणों की विवेचना करें।
उत्तर- रूसी क्रांति के कारण निम्नलिखित थे:-
(1) जार की निरंकुशता एवं आयोग्य शासन- 19वीं सदी के मध्य तक यूरोप की राजनीतिक संरचना बदल चुकी थी। राजा की शक्ति घटा दी गई थी। परन्तु रूस का जार अभी भी दैवी सिद्धान्त को पकड़े हुए था। वह अपना विशेषाधिकार छोड़ने को तैयार नहीं था । उसे आम जनता की कोई चिता महीं थी। उसके अफसर अयोग्य थे।
नियुक्ति का आधार योग्यता की जगह अपने लोगों से स्थान भरना था। स्वेच्छाचारिता बढ़ गई थी। जनता की स्थिति बदतर होती जा रही थी।
(ii) मजदूरों की दयनीय स्थिति- मजदूरों को अधिक घंटों तक काम करना पड़ता था उसके एवज में मिलने वाली मजदूरी इतनी कम होती थी कि उससे उन्हें अपने परिवार का भरण-पोषण कठिनाई से होती थी। उनके साथ मालिक दुर्व्यवहार भी करते थे। हड़ताला पर प्रतिबंध था। उन्हें राजनीतिक अधिकारों को कौन कहे, किसी प्रकार के अधिकार प्राप्त नहीं थे। इस कारण मजदूर क्षुब्ध थे
(iii) औद्योगीकरण की समस्या यूरोपीय देश जहाँ औद्योगिक क्राति का लाभ उठाने में लगे थे, वहीं रूस में औद्योगिक पिछड़ापन व्याप्त था। वहाँ चूंकि पूँजी का अभाव था, जिससे विदेशी पूँजी के बल पर कुछ उद्योग थे, लेकिन वे खास-खास स्थानों पर ही अवस्थित थे। विदेशी पूँजीपति अपनी आय बढ़ाने के चक्कर में मजदूरों का शोषण करते थे। मजदूर असहाय थे और राजा बेफिक्र था। सर्वत्र असंतोष व्याप्त था।
(iv) रूसीकरण की नीति-रूस में अनेक राष्ट्र के लोग निवास करते थे। ये विभिन्न भाषा बोलते थे और इनके रस्म-रिवाज भी अलग-अलग थे। लेकिन जार का
यह कानून कि सबको रूसी पढ़नी और बोलनी पड़ेगी, इससे विभिन्न लोगों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ा और हलचल मच गई। 1863 में इस नीति के विरोध में विद्रोह भी हुआ, लेकिन उसे निर्दयतापूर्वक दबा दिया गया। लोगों में इसका भारी आक्रोश था।
(v) विदेशी घटनाओं का प्रभाव-रूस की क्रांति में विदेशी घटनाओं का भी प्रभाव पड़ा। क्रीमिया-युद्ध में रूस पराजित तो हुआ ही, 1905 में जापान से भी हार गया । जापान से हार ने आग में घी का काम किया। जार की ताकत का पोल खुल गया। प्रथम विश्व युद्ध में रूस मित्र देशों की ओर से लड़ रहा था, लेकिन सेना हर मोर्चे पर हार रही थी। इन सबो ने रूसी क्रांति का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
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प्रश्न 2. नई आर्थिक नीति क्या है? समाजवाद और साम्यवाद
उत्तर- लेनिन ने देखा कि समाजवादी व्यवस्था देश के लोगों को पच नहीं रही है। एकाएक पूँजीवादी विश्व से टकराना भी उसके लिए कठिन था। अतः उसने 1921 ई. में अपनी नई आर्थिक नीति’ (New Economic Policy = NEP) की घोषणा करनी पड़ी। नई आर्थिक नीति की निम्नांकित आठ सूत्र थे :
1. किसानों का अनाज हड़प लेने के स्थान पर उनसे एक निश्चित कर लेने की व्यवस्था चालू की गई। अब किसान अपनी उपज का मनचाहा इस्तेमाल करने को स्वतंत्र हो गए।
2. यद्यपि यह सिद्धान्त की जमीन राज्य की है, को कायम रखते हुए यह व्यावहारिक रूप से मान लिया गया कि जमीन किसान की ही है
3. 20 से कम कर्मचारियों वाले उद्योगों को ‘व्यक्तिगत’ उद्योग मान लिया गया वे अब पुनः अपने कारखाने के मालिक बन गए।
4. उद्योगों का विकेन्द्रीकरण कर निर्णय और क्रियान्वयन के बारे में विभिन्न इकाइट को काफी छूट दी गई।
5. सीमित तौर पर विदेशी पूँजी भी लगाई जा सकती थी।
6. व्यक्तिगत सम्पत्ति और जीवन-बीमा राजकीय एजेंसियाँ चलाने लगी।
7. विभिन्न स्तरों पर बैंक खोले गए ताकि जनता को सुविधा हो ।
8. ट्रेड यूनियनों की अनिवार्य सदस्यता समाप्त कर दी गई।
प्रश्न 3. रूसी क्रांति के प्रभाव की विवेचना करें।
उत्तर – रूसी क्रांति के निम्नलिखित प्रभाव पड़े:- समाजवाद और साम्यवाद
(i) रूसी क्रांति के सफल होने के बाद वहाँ पूर्णतः सर्वहारा वर्ग, जिसे श्रमिक वर्ग भी कह सकते हैं, का शासन स्थापित हो गया । इस सफलता ने दुनिया के अन्य देशों को भी प्रभावित किया। वहाँ भी कम्युनिस्ट पार्टियों का गठन होने लगा
(ii) रूसी क्रांति का एक प्रभाव यह भी पड़ा कि विश्व स्पष्टतः दो खेमों में बँट गया : एक साम्यवादी विश्व और दूसरा पूँजीवादी विश्व । तब यूरोप भी दो. भागों में बँट गया एक पूर्वी यूरोप तथा दूसरा पश्चिमी यूरोप
(iii) द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात यह और भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित हुआ। साम्यवादी विश्व का अगुआ रूस था तथा पूँजीवादी विश्व का अग्आ संयुक्त राज्य अमेरिका था । दोनों खेमों में शस्त्रों की होड़ मच गई। शीत युद्ध स्पष्ट देखा जाने लगा।
(iv) अब पूँजीवादी देश भी स्वयं को समाजवादी देश कहलाने में गौरव का अनुभव करने लगे। इसके लिए उन्हें अपनी अर्थव्यवस्था में भी कुछ फेरबदल करनी पड़ी। इस प्रकार पूरे विश्व में पूँजीवाद के चरित्र में बदलाव आने लगा।
(v) रूसी क्रांति की सफलता ने एशियाई और अफ्रीको गुलाम देशों में स्वतंत्र होने की कसमसाहट होने लगी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आन्दोलन इतने तेज हुए कि अपने सभी उपनिवेशों से यूरोपियनों को भागना पड़ा।
प्रश्न 4. कार्ल मार्क्स की जीवनी एवं सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई, 1818 को एक जर्मन यहूदी परिवार में हुमा था। मार्स ने हाई स्कूल तक की शिक्षा ट्रियर में और बाद की उच्च शिक्षा बॉन विश्वविद्यालय में प्राप्त की। विधिशास्त्र में वह ग्रेजुएट था। बाद में उसने बर्लिन विश्वविद्यालय में दाखिला ली, जहाँ उसकी मुलाकात हीगल से हुई। उसके विचारों सेवह बहुत प्रभावित हुआ। 1843 में उसका विवाह जेनी नामक युवती से हुआ, जिसे वह पहले से ही जानता था।
अब उसकी रुचि राजनीति और समाज-सुधार की ओर अग्रसर होने लगी। उसने मांटेस्क्यू और रूसों के विचारों का गहन अध्ययन करना शुरू कर दिया । उसकी मुलाकात फ्रेडरिक एंगल्स से पेरिस में सन् 1844 के आसपास हुई। एंगल्स के विचारों से प्रभावित हो मार्क्स ने श्रमिकों के कष्टों और उनकी कार्य की दशाओं पर गहन विचार किया । उसने एंगल्स के साथ मिलकर 1848 में एक साम्यवादी घोषणा पत्र प्रकाशित किया। उस घोषणा पत्र को आधुनिक समाज का जनक कहा जाता है। 1848 के उस साम्यवादी घोषणा पत्र में मार्स ने अपने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विचारों को स्पष्ट रूस से व्यक्त किया।
अब मार्क्स विश्व के उन गिने-चुने चिंतकों मे एक माना जाने लगा, क्योंकि उसने इतिहास की धारा को व्यापक रूप से प्रभावित किया था। कार्ल माक्र्स ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक दास-कैपिटल की रचना 1867 में की, जिसे ‘समाजवादियो की बाइबिल’ कहा जाता है कार्ल मार्क्स ने अपने पाँच सिद्धान्तों का प्रतिपादित किया जो निम्नलिखित है
(i) द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धान्त
(ii) वर्ग संघर्ष का सिद्धान्त
(iii) इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या
(iv) मूल्य एवं अतिरिक्त मूल्य का सिद्धान्त तथा राज्यहीन एवं वाहीन समाज की स्थापना