विष के दाँत (नलिन विलोचन शर्मा)
लेखक परिचय- हिन्दी कविता में प्रपद्यवाद के प्रवर्तक तथा नई शैली के आलोचक नलिन विलोचन शर्मा का जन्म पटना के बदरघाट (भद्रघाट) में 1916 ई. में हुआ था। वे प्रख्यात विद्वान पं. रामावतार शर्मा के ज्येष्ठ पुत्र थे। माता का नाम रत्नावती शर्मा था इनके व्यक्तित्व निर्माण में पिता की अहम भूमिका रही है। उन्होंने स्कूल की पढ़ाई पटना कॉलेजिएट से पूरी की तथा संस्कृत और हिन्दी में एम. ए. पटना विश्वविद्यालय से किया। अध्ययन समाप्ति के बाद उन्होंने अध्यापन कार्य राँची विश्वविद्यालय तथा पटना विश्वविद्यालय में किया। इनकी मृत्यु 1961 ई. में हुई।
प्रश्न 1. कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- कहानी कला की दृष्टि से प्रस्तुत कहानी ‘विष के दाँत’ का शीर्षक सार्थक है, क्योकि इस कहानी का उद्देश्य मध्यवर्गीय अन्तर्विरोधों को उजागर करना है जहाँ एक ओर सेन साहब जैसे महत्त्वाकांक्षी तथा सफेदपोश अपने भीतर लिंग भेद जैसे कुसंस्कार छिपाए हुए हैं, वहीं दूसरी ओर गिरधर जैसे नौकरी-पेशा अनेक तरह की थोपी गई बंदिशों के बीच भी अपने अस्तित्व को बहादुरी एवं साहस के साथ बचाए रखने के लिए संघर्षरत है। यह कहानी सामाजिक भेदभाव लिंग-भेद तथा आक्रामक स्वार्थ की छाया में पलते हुए प्यार-दुलार के कुपरिणामों को उभारती हुई सामाजिक समानता एवं मानवाधिकार की बानगी पेश करती है। कहानी का शीर्षक ‘विष के दाँत’ इसलिए भी उपयुक्त है, क्योंकि इसी विष के दाँत अर्थात् काशू के जन्म लेते ही सेन-पुत्रियाँ उपेक्षित हो जाती हैं, मदन मार खाता है तथा गिरधर को नौकरी से हटा दिया जाता है।
प्रश्न 2. सेन साहब के परिवार में बच्चों के पालन–पोषण में किए जा रहे लिंग आधारित भेद–१ –भाव का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर–सेन साहब के परिवार में लड़कियों तथा लड़के के पालन-पोषण के अलग- अलग नियम थे। पाँचों लड़कियों के लिए अलग नियम थे, दूसरी तरह की शिक्षा थी और खोखा (पुत्र) के लिए अलग, क्योंकि वह नाउम्मीद बुढ़ापे की आँखों का तारा था । लड़कियों को अलग ढंग की तालीम सिखाई गई थी। उनके खेलने-कूदने तथा बोलने पर पाबंदी थी। वे बिना आदेश के घर से बाहर नहीं निकल सकती थीं। वे घर में कठपुतलियों की तरह थीं, जबकि खोखा बुढ़ापे की संतान होने के कारण जीवन के नियम का अपवाद होने के साथ-साथ घर के नियमों का भी अपवाद था। उस पर किसी भी प्रकार की पाबंदी नहीं थी। उसकी हरकत पर सेनसाहब का कहना था कि ‘उसे तो इंजीनियर होना है, इसलिए वह अभी से कुछ-न-कुछ जानकारी लेना चाहता है। घर में लिंग-भेद ऐसा ही था कि शरारती खोखे की प्रशंसा की जाती थी किंतु तहजीब एवं तमीज की मूर्ति पुत्रियों की चर्चा तक नहीं होती थी।
प्रश्न 3. खोखा किन मामलों में अपवाद था?
उत्तर-सेन साहब को पाँच पुत्रियाँ थीं। पुत्र का आविर्भाव तब हुआ जब संतान की कोई उम्मीद बाकी नहीं रह गई थी। अर्थात् सेन साहब को पुत्र तब नसीब हुआ जब पति-पत्नी दोनों बुढ़ापे के अंतिम पड़ाव पर पहुँच चुके थे। इसलिए खोखा जीवन के नियमों के अपवाद के साथ-साथ घर के नियमों का भी अपवाद था।
प्रश्न 4. सेन दंपती खोखा में कैसी संभावनाएँ देखते थे और उन संभावनाओं के लिए उन्होंने उसकी कैसी शिक्षा की व्यवस्था की थी?
उत्तर– सेन दंपत्ति खोखा में इंजीनियर बनने की संभावनाएँ देखते थे, क्योंकि वह आखिर उनका बेटा जो था उसे इंजीनियर बनाने के लिए वैसी ही ट्रेनिंग दी जा रही थी। वे उसे अपने ढंग से ट्रेंड कर रहे थे। उसकी शिक्षा की व्यवस्था यह की गई थी कि कोई कारखाने का बढ़ई-मिस्त्री दो-एक घंटे आकर उसके साथ ठोक-पीठ किया करे, ताकि उसकी उँगलियाँ अभी से औजारों से वाकिफ हो जायँ।
प्रश्न 6. सेन साहब और उनके मित्रों के बीच क्या बातचीत हुई और पत्रकार मित्र ने उन्हें किस तरह उत्तर दिया।
– सेन साहब और ड्राइंग रूम में बैठे उनके मित्रों के बीच बातचीत हुई कि वह अपने पुत्र को अपने ढंग से ट्रेंड करेंगे, क्योंकि वह उसे अपनी तरह बिजनेस-मैन या इंजीनियर बनाना चाहते हैं। वहाँ बैठे पत्रकार महोदय से जब उनके बच्चे के विषय में उनका ख्याल पूछा गया, तब उन्होंने उत्तर दिया कि उनका पुत्र जेंटिलमेन जरूर बने और जो कुछ बने या न बने, उसका काम है, उसे पूरी आजादी रहेगी। पत्रकार महोदय ने उन्हें शिष्टतापूर्ण, किन्तु व्यंग्यात्मक ढंग से उत्तर दिया।
प्रश्न 7. मदन और ड्राइवर के बीच के विवाद के द्वारा कहानीकार क्या बताना चाहता है?
उत्तर- मदन और ड्राइवर के बीच के विवाद के द्वारा कहानीकार यह बताना चाहता है कि बड़े लोग सामाजिक भेदभाव के माध्यम से अपना वर्चस्व कायम रखना चाहते हैं। मदन, उन्हीं के यहाँ काम कर रहे एक किरानी का बेटा है, ड्राइवर भी उन्हीं का नौकर है। ड्राइवर अपने को कर्तव्यपरायण, इंसान तथा जवाबदेह साबित करना चाहता है, जबकि मदन किरानी का पुत्र होने के कारण ड्राइवर को निम्न दृष्टि से देखता है। ऊँच- नीच की भावना को व्यक्त करना चाहता है।
प्रश्न 8. काशू और मदन के बीच झगड़े का कारण क्या था? इस प्रसंग के द्वारा लेखक क्या दिखाना चाहता है?
उत्तर—काशू और मदन के बीच झगड़े का कारण गरीबी और अमीरी का भेद था मदन एक सामान्य किरानी का बेटा है और काशू सेन साहब की नाक का बाल है। काशू के कारण ही पिता ने मदन को मारा-पीटा था। इसी कारण मदन काशू को अपने दल में न तो शामिल करता है और न ही मांगने पर लटू ही देता है। फलतः अमीरी में उबाल आ जाती है। काशू मदन को जैसे ही घूसा मारता है कि द्वन्द्व युद्ध शुरू हो जाता है। यह लड़ाई हड्डी और मांस की, बँगले के पिल्ले और गली के कुत्ते की लड़ाई अहाते के बाहर होने के कारण महल की हार होती है। लेखक इस प्रसंग के द्वारा यह संदेश देना चाहता है कि सामाजिक फूट के कारण ही गरीबों पर अमीरों का वर्चस्व कायम है। यदि गरीब संगठित हो जायँ तो अमीरों द्वारा किया जाने वाला सारा शोषण स्वतः बन्द हो जाएगा।
प्रश्न 11. सेन साहब, मदन, कशू और गिरधर का चरित्र–चित्रण करें।
उत्तर– सेन साहब- कहानीकार ने मध्यवर्ग के भीतर उभर रही एक ऐसी श्रेणी के विषय में अपना विचार प्रकट किया है जो अपनी महत्त्वाकांक्षा और सफेदपोश के भीतर लिंग-भेद जैसे कुसंस्कार छिपाये हुए है सेन साहब आत्म प्रशंसक, दिखावटी शानप्रिय तथा भेदभावपूर्ण कुसंस्कार से ग्रसित व्यक्ति हैं। पुत्रियों के लिए इनका नियम अलग था किंतु पुत्र के लिए कुछ और नियम बन जाता है। सुशील पुत्रियों को अनुशासन की बेड़ी मे जकड़कर रखते हैं, जबकि शरारती पुत्र की हर गलतियों को नजरअंदाज कर देते हैं तथा अपने मित्रों के बीच उसकी प्रशंसा के पुल बाँधते रहते हैं। वे दोहरी प्रवृत्ति तथा निष्ठुर हृदय के व्यक्ति हैं। इसीलिए किरानी पुत्र की करूण चीत्कार पर प्रसन्न होते है तथा कहते है गिरधर ने ऐसी ही कड़ाई जारी रखी तो शायद ठीक जो जाए।’ इतना ही नहीं स्पेयर द रॉड एण्ड एस्वाइल द चाइल्ड’ कहकर यह साबित कर देते हैं कि वह सिद्धांतहीन व्यक्ति हैं। उनका पुत्र मोटरगाड़ी की बत्ती का शीशा तोड़ देता है तथा मिस्टर सिंह की गाड़ी के चक्के की हवा निकाल देता है तो चुप्पी साध लेते हैं । मुस्कुराहट के साथ डांटते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि सेन साहब हीन स्वभाव के व्यक्ति हैं।
मदन– मदन प्रस्तुत कहानी का मुख्य पात्र है। उसी के चारों ओर कहानी घूमती है तथा गति पाती ह यदि कहानी से मदन को निकाल दिया जाए तो कहानी उद्देश्यहीन हो जाएगी। मदन अपने वर्ग का नेता है। वह सामाजिक समानता का पोषक, निर्भीक तथा आत्म सम्मान प्रिय बालक है। इसी कारण वह ड्राइवर की बातों का प्रतिरोध करता है तथा सेन पुत्र काशू को अपने दल में न तो शामिल करता है और न ही उसे लटू देता है, बल्कि ‘अबे भाग जा यहाँ से !’ कहकर अपनी निर्भीकता तथा आत्मसम्मान का परिचय देता है। साथ ही, काशू को घूसा मारकर उसके दो दाँत तोड़ डालता है। इससे सिद्ध होता है कि मदन कुशल लीडर के साथ-साथ आत्मसम्मान प्रिय एवं साहसी है।
काशू– काशू सेन दंपत्ती की नाउम्मीद बुढ़ापे की संतान है। बुढ़ापे का पुत्र होने के कारण दुर्ललित अर्थात् अति लाड़-प्यार के कारण बिगड़ा हुआ है। वह उदंड एवं शरारती है। पाँचों बहन से छोटा है, फिर भी उन पर हाथ चला देता है। वह किसी की इज्जत करना नहीं जानता। वह अनुशासनहीन और असभ्य है। उसकी शरारत से मेहमान भी तंग हो जाते हैं। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता. है कि मदन इस कहानी का नायक है। उसी के कारण पाँचों बहनें उपेक्षित हैं। मदन दंडित होता है। गिरधर की नौकरी जाती है। सेन साहब को अपना नियम बदलना पड़ता है और दाँत टूटते ही कहानी चरम पर पहुँच जाती है।
गिरधर— प्रस्तुत कहानी में गिरधर नौकरी-पेशा निम्न मध्यवर्गीय समूह का प्रतिनिधित्व करता है। वह अनेक तरह की थोपी गई बंदिशों के बीच भी अपने अस्तित्व को बहादुरी एवं साहस के साथ बचाये रखने के लिए रित है। वह आर्थिक मजबूरी के कारण सेन साहब के अन्याय का विरोध नहीं करता, बल्कि अपनी मजबूरी की रक्षा के लिए अपमान का चूंट पीकर रह जाता है। वह सहनशील, कर्मठ तथा दब्बू स्वभाव का है। परन्तु जब मदन की हरकत के कारण नौकरी छूट जाती है तब वह अपना हार्दिक आक्रोश व्यक्त करते हुए कहता है— “शाबाश बेटा । एक तेरा बाप है और एक तू है ! तूने तो खोखा के दो-दो दाँत तोड़ डाले। हा हा हा !, इससे स्पष्ट होता है कि उसके हृदय में सेन साहब के विरुद्ध आक्रोश भरा था, लेकिन आजीविका जाने के भय से वह चुप रहता था।