फुटबॉल – मेरा प्रिय खेल
विषय-प्रवेश
फुटबॉल – मेरा प्रिय खेल निबंध :- सबकी अपनी-अपनी रुचि होती है। किसी को सिनेमा या नाटक का शौक होता है तो किसी को कुश्ती का। इसी प्रकार, कोई क्रिकेट खेलना चाहता है तो कोई हॉकी या टेनिस का दीवाना होता है। जहाँ तक मेरा सवाल है, मुझे तो खेल ही पसन्द है और वह भी फुटबॉल का खेल।
फुटबॉल खेल-संसार
श्रेष्ठ खेल की कसौटी है कम-से-कम खर्च और कम-से-कम समय में आनन्द और स्फूर्ति की प्राप्ति। इस दृष्टिकोण से मेरा खेल फूटबॉल श्रेष्ठ है। क्रिकेट के लिए पाँच दिन या कम-से-कम पूरा दिन, टेनिस के लिए तीन-चार घंटे, बैडमिंटन के लिए भी लगभग इतना ही समय चाहिए। लेकिन फुटबॉल के लिए सिर्फ नब्बे मिनट ही पर्याप्त हैं। और आनन्द ऐसा कि उधर मैदान में गेंद उछली और दिल उछलने लगे।
खेलने वालों को नहीं, देखने वालों को आखिरी सीटी बजाने के पहले और कुछ सोचने-समझने का समय नहीं। सच कहिए तो फुटबॉल की इसी विशेषता के कारण यह खेल आज दुनिया में सबसे ज्यादा अधिक लोकप्रिय है। ब्राजील, अर्जेंटिना, इटली, फ्रांस आदि में तो इसकी दीवानगी हद दर्जे की है। और कोई खेल आम आदमी को समझ आए न आए, फुटबॉल का खेल सबकी समझ में आता है।
फुटबॉल – श्रेष्ठ खेल की कसौटी
फुटबॉल की सबसे बड़ी विशेषता यह है किइसमें बहुत ज्यादा खतरा नहीं है। क्रिकेट की गेंद उछल कर नाक या सिर पर लग जाए तो समझ लीजिए कि गए काम से। यही बात हॉकी के साथ भी लागू है। स्टीक अगर गेंद पर न लगकर किसी अंग पर लग जाए तो चलिए अस्पताल। लेकिन फुटबॉल के साथ ऐसी कोई बात नहीं।
किसी ने लंगड़ी मार भी दी तो कोई बात नहीं, गिरे और उठकर फिर दौड़ लगा दी गेंद के पीछे। ज्यादा-से-ज्यादा हुआ तो मोच ही तो आयी। क्या हुआ, लम्हों में ठीक हो गए।
फुटबॉल उपसंहार
यही कारण है कि मुझे फुटबॉल का खेल सबसे ज्यादा प्रिय है। खर्च कम और आनन्द भरपूर।
ईद/ईद-उल-फितर
प्रस्तावना
हमारा देश धर्मों की विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ सभी धर्मों तथा सम्प्रदायों के लोग ‘भारतीय’ होकर रहते हैं और अपने-अपने ढंग तथा रीति-रिवाजों से भगवान का स्मरण करते हैं। इस तरह यह देश धर्म प्रधान है। यहाँ हिन्दुओं के अपने त्योहार हैं, मुसलमानों के अपने। सिक्खों के अपने अलग त्योहार है
तो ईसाइयों तथा पारसियों आदि के अपने किसी-न-किसी दिन किसी-न-किसी धर्म या सम्प्रदाय का कोई-न-कोई त्योहार होता ही है। इसीलिए यदि कहा जाए कि भारत में वर्ष भर त्योहारों का सिलसिला चलता रहता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। का त्योहार है।
मनाने की विधि
ईद के पवित्र त्योहार का संबंध मुसलमानों के पैगम्बर मोहम्मद साहब से है। मोहम्मद साहब ने संसार में इस्लाम धर्म चलाया था। उन्होंने बताया कि ईद में एक साथ नमाज पढ़नी चाहिए और एक-दूसरे से गले मिलना चाहिए। इस अवसर पर घर-घर मीठी सेवइयाँ पकती हैं। सब सेवइयाँ खाते हैं तथा अपने दोस्तों तथा रिश्तेदारों में बाँटते हैं।
इस ‘ईद-उल-फितर’ ईद को ‘मीठी ईद’ कहकर पुकारते हैं। ईद के अवसर पर हमारे देश के हिन्दू अपने मुसलमान भाइयों से गले मिलकर उन्हें ‘ईद मुबारक’ देते हैं और एक साथ बैठकर सेवइयाँ खाते हैं। यह त्योहार बन्धुत्व तथा प्रेम भावना में बढ़ावा लाने का त्योहार है।
ईद और चाँद-दर्शन
बहुत सारे मुसलमान भाई ईद के उपलक्ष्य में एक महीने के रोजे रखते हैं। इस तरह रमजान के पूरे तीस रोज के बाद यह त्योहार आता है। रोजे के दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त होने तक रोजा रखने वाले लोग न कुछ खाते हैं और न ही पानी ही पीते हैं। रोजा के तीस दिन की लम्बी अवधि के बाद जब चाँद के दर्शन के लिए लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
इसीलिए ‘ईद का चाँद होना’ मुहावरे को लोक जीवन में प्रचलन हो गया है।
एकता और समता का त्योहार
ईद हमारे देश का महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन राष्ट्रीय अवकाश रहता है। हम सब हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई तथा बौद्ध ईद के त्योहार को राष्ट्रीय एकता के त्योहार के रूप में मानते हैं। इस दिन न कोई छोटा माना जाता है और न ही बड़ा।
सब समान माने जाते हैं। इस तरह ईद का त्योहार समता तथा मानवता का प्रतीक है।
उपसंहार
ईद का त्योहार आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का संदेश देता है। हमें, इसे अत्यंत प्रेम भाव से मनाना चाहिए। इससे राष्ट्रीय एकता की भावना मजबूत होती है तथा हमारे देश का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप और भी दृढ़ है।