दही वाली मंगम्मा (श्रीनिवास)
लेखक– परिचय– लेखक श्रीनिवास का जन्म कर्नाटक प्रांत के कोलार नामक स्थान में 1891 ई. में हुआ था इनका पूरा नाम मास्ती वेंकटेश अय्यंगार था। ये कन्नड़ साहित्य के प्रतिष्ठित रचनाकारों में अग्रगण्य माने जाते थे। इन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं कविता, नाटक, आलोचना, जीवन-चरित्र सभी में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। प्रस्तुत पाठ ‘दही वाली मंगम्मा’ कन्नड़ कहानियाँ (नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया) से साभार लिया गया है।
इस कहानी का हिन्दी अनुवाद बी. आर. नारायण ने कियाहै। इनकी साहित्यिक-सेवा के लिए साहित्य अकादमी ने इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से पुरस्कृत किया तो इनके कहानी-संकलन ‘सण्णा कथेगुलु’ को 1968 ई. में पुरस्कृत किया गया। इनका देहावसान हो चुका है।
1. मंगम्माको अपनी बहू के साथ किस बात को लेकर विवाद था?
उत्तर-मंगम्मा को अपनी बहू साथ स्वतंत्रता की होड़ के कारण विवाद था। वह चाहती थी कि बहू उसके अनुसार चले। उसके पति को जन्म देने वाली तथा लालन पालन करने वाली वही है, इसलिए बहू का उस पर कोई हक नहीं है, जबकि बहू का मानना था कि वह मेरा पति, रक्षक तथा सहारा है, इसलिए पति पर मेरा पूरा हक है । साथ ही, मंगम्मा पोता पर भी अपना ही हक मानती थी,
इसलिए जब कभी बहू पुत्र की शैतानी पर मार-पीट करती थी तो मंगम्मा उसका विरोध करती थी तात्पर्य यह कि मंगम्मा बेटा एवं पोता पर से अपना अधिकार छोड़ना नहीं चाहती है तो बहू पति पर अधिकार जमाना चाहती है। उसका कहना था कि मेरा बेटा ‘मेरा’ है और मेरा पति मेरा होना चाहिए । सास एवं बहू में इसी अधिकार की लड़ाई थी। अतः पानी में खड़े बच्चे का पाँव खींचने वाले मगरमच्छ की-सी दशा बहू की है तो ऊपर से बाँह पकड़कर बचाने की-सी दशा माँ की है। बीच में बच्चे की स्थिति साँप- छुछुन्दर की तरह होती है।
‘प्रश्न 2. रंगप्पा कौन था और वह मंगम्मा से क्या चाहता था?
उत्तर- रंगप्पा मंगम्मा गाँव का ही शौकीन मिजाज जुआड़ी था। वह मंगम्मा से कर्ज माँगता था साथ ही, वह मंगम्मा के साथ अवैध संबंध स्थापित करना चाहता था। इसीलिए जब मंगम्मा दही बेचने शहर जा रही थी, उसने अमराई में कुआँ के पास उसका हाथ उसके घर वाले से भी ज्यादा हक के साथ पकड़ लिया था, जिस कारण मंगम्मा को कहना पड़ा “क्या बात है, रंगप्पा ! आज बड़े रंग में हो। मेरा अच्छापन देखने को तुम मेरे घरवाले हो क्या ?” मंगम्मा के पास कुछ पैसे थे, जिसे रंगप्पा किसी प्रकार प्राप्त कर लेना चाहता था।
प्रश्र 3.बहू ने सास को मनाने के लिए कौन– –सा तरीका अपनाया?
उत्तर -बह को जब पता चला कि उसकी सास मंगम्मा गाँव के ही रंगप्पा नामक आदमी को पैसे देने को तैयार हो गई है तो उसने अपने पुत्र को दादी के पास यह कहकर भेज दिया कि मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगा। मैं कभी-भी अपने माँ-बाप के पास नहीं जाऊँगा। बहू जानती थी कि पोता के प्रति मंगम्मा की कमजोरी है। वह उसे चुराकर मिठाई आदि देती है। इसलिए बहू ने यह सिखाकर भेजा कि माता-पिता ने मुँह मोड़ लिया है। मैं तो हूँ। तुम चिंता मत करो।’ कुछ दिन गुजरने के बाद बच्चा ने उसके साथ बेंगलुरु जाने की जिद पकड़ ली। उसी क्षण बहू एवं बेटे ने अपनी गलती स्वीकार ली । बहू ने कहा- “इतनी धूप में इस उमर में तुम क्यों बाहर जाती हो? भला कितने दिन यह काम कर सकोगी। घर में ही खाना-पीना बनाकर मालकिन की तरह रहो। दही बेचने का काम मैं देख लेती हूँ।” इसी प्रकार बहू ने अपने पुत्र को उसके पास भेजकर उसे मनाने का तरीका अपनाया।
प्रश्न 4. इस कहानी का कथावाचक कौन है ? उसका परिचय दीजिए।
उत्तर– प्रस्तुत कहानी का कथावाचक श्रीनिवास जी हैं जिनका पूरा नाम मास्ती वेंकटेश अय्यंगार है इनका जन्म कर्नाटक प्रांत के कोलार नामक स्थान में 6 जून, 1891 ई. में हुआ था । श्रीनिवास कन्नड़ साहित्य के प्रतिष्ठित रचनाकारों में अन्यतम माने जाते हैं। इन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं कविता, नाटक, आलोचना, जीवन-चरित्र आदि में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। साहित्य आकदमी ने इनके कहानी- संकलन ‘सण्णा कथेगुलु’ को पुरस्कृत किया। ‘दही वाली मंगम्मा’ कहानी ‘कन्नड़ कहानियाँ’ (नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया) से साभार ली गई है। इस कहानी के अनुवादक बी. आर. नारायण हैं। कहानीकार का देहावसान हो चुका है।
प्रश्न 5. मंगम्मा का चरित्र–चित्रण कीजिए।
उत्तर- मंगम्मा इस कहानी की नायिका है जो पति द्वारा उपेक्षित रही है। वह विधवा है और दही बेचकर परिवार का भरण-पोषण करती है। वह खुले दिल की है। वह अपना हर अनुभव या सुख-दुःख लेखक की पत्नी को सुनाती रहती है। वह चरित्रनिष्ठ, कर्मनिष्ठ एवं व्यवहार कुशल नारी है। उसका पति दूसरी औरत के पीछे लगा रहता था, फिर भी उसकी परवाह किए बगैर वह पत्नी का दायित्व निभाती रही। वह स्वतंत्रता प्रिय थी। परिवार पर अपना वर्चस्व रखना चाहती थी, जिस कारण बहू के विरोध का सामना करना पड़ता था माँ बेटे पर से अपना हक छोड़ना नहीं चाहती थी तो बहू पति पर अधिकार जमाना चाहती थी। इसी होड़ में वह बह एवं बेटे से अलग हो जाती है, लेकिन रंगप्पा की धृष्टता के आगे झुकती नहीं है परन्तु भयभीत अवश्य होती है। फलतः पोते की ओर आकृष्ट होती है और परिवार के साथ रहने की इच्छा प्रकट करती है। माँ जी, जब कहती है कि बीती बातों पर मिट्टी डालकर बेटे के साथ रह जाओ, तो कहती है— “मैं तो रह जाऊँगी माँजी। पर वह रहने दे तब न।’ इन बातों से स्पष्ट होता है कि वह समझदार एवं परिवार प्रिय महिला थी।