अति सूधो सनेह को मारग है, मो अंसुवानिहिं लै बरसौ Hindi Subjective Question 2022 Class 10th Subjective Question 2022 |
अति सूधो सनेह को मारग है, मो अंसुवानिहिं लै बरसौ
कवि- परिचय-रीतिमुक्त काव्यधारा के सिरमौर कवि घनानंद का जन्म सन् 1689′ में हुआ था। ये तत्कालीन मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीले के यहाँ मीर मुंशी थे। ये अच्छे गायक तथा श्रेष्ठ कबि थे। कहा जाता है कि ये सुजान नामक नर्तकी को बहुत प्यार करते थे। विराग होने पर ये वृंदावन चले गए तथा वैष्णव संप्रदाय में दीक्षित होकर काव्य-रचना करने लगे। 1739 ई. में नादिरशाह ने जब दिल्ली पर आक्रमण किया तब उसके सिपाहियों ने मथुरा एवं वृंदावन पर भी धावा बोला। घनानंद को बादशाह का. मीरमुंशी जानकर उन्हें सैनिकों ने मार डाला।
प्रश्न 1. कवि प्रेममार्ग को ‘अति सुधो’ क्यों कहता है? इस मार्ग की विशेषता क्या है ?
उत्तर-कवि प्रेममार्ग को ‘अति सुधो’ इसलिए कहता है, क्योंकि यह मार्ग अति सहज, सरल तथा सुगम होता है। इसमें टेढ़ापन तथा धूर्तता लेश मात्र नहीं होते। हृदय की उपज होने के कारण यह भाव प्रधान होता है। सच्चा प्रेम अनन्त की ओर ले जाता है। तात्पर्य यह कि प्रेम का मार्ग छल-कपट, धोखा, दंभ आदि से रहित होने के कारण संदेहरहित होता है। यही विशेषता इस मार्ग पर चलने वालों को अलौकिक सुख का बोध कराती है। अतः इसमें पूर्ण समर्पण का भाव निहित होता है। इस कारण यह मार्ग अति सहज, निष्कंटक एवं निर्विकार प्रतीत होता है।
प्रश्न 2. ‘मन लेहु पै देह छटाँक नहीं’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर–मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं’ से कवि का अभिप्राय है कि प्रेमी सच्चे दिल से अपना तन-मन प्रेमिका का प्रेम पाने के लिए अर्पित कर देता है, किंतु प्रेमिका उस प्रेम के प्रति कोई प्रतिक्रिया व्यक्ति नहीं करती है। अतः वह अपनी मुस्कुराहट से प्रेमी के व्यथित हृदय को शांति भी प्रदान नहीं करती है। तात्पर्य यह कि प्रेमिका अति निष्ठुर या कठोर दिल है। वह प्रेमी की पीड़ा पर जरा भी ध्यान नहीं देती है। तात्पर्य यह कि भक्ति में सहज प्रेम की अभिव्यक्ति होती है, जबकि ज्ञान में दंभ का प्रभाव होता है जिस कारण जान प्रेम रस की मधुराई का रस लेता तो है किन्तु ज्ञानांधतावश प्रेम की पीड़ा आहत नहीं होती । निष्कर्षतः कवि ने वियोग में सच्चा प्रेमी जो वेदना सहता है, उसके चित्त में विभिन्न प्रकार की तरंगें उठती हैं, उसी का उसने मार्मिक चित्रण किया है
प्रश्न 3. द्वितीय छंद किसे संबोधित है और क्यों?
उत्तर- कवि घनानंद ने द्वितीय छंद में मेघ के माध्यम से विरह-वेदना से भरे अपने हृदय की पीड़ा को व्यक्त किया है। कवि सुजान नामक नर्तकी पर आसक्त है। वह उसका प्रेम पाने के लिए व्याकुल है। लेकिन प्रेमिका सुजान निष्ठुर बनी रहती है। तब कवि मेघ के माध्यम से अपनी हार्दिक व्यथा प्रकट करते हुए कहता है कि परोपकारी दूसरों के कल्याण करने के लिए शरीर धारण करते हैं। जैसे बादल जल धारण कर सम्पूर्ण संसार में बरस कर उसे जीवन प्रदान करता है अर्थात् अपने जल-दान से सुरखी प्रकृति में नवजीवन का संचार करता है, उसी प्रकार हे प्रिये! तुम भी प्रेम-वेदना की पीड़ा से व्याकुल कवि को अपने स्नेहिल प्रेम से शांति प्रदान करो। अतः हे बादल मेरी पीड़ाअनुभव करते हुए तुम अपने अमृत जल बरसा कर मेरी प्रेमिका के नीरस दिल को रसमय बना दो, ताकि वह मेरी प्रेम-व्यथा का अनुभव करे ।
प्रश्न 4. परहित के लिए ही देह कौन धारण करता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- परोपकारी दूसरों के उपकार के लिए देह धारण करते हैं और वे दूसरों के लिए ही जीते भी हैं। उनका कोई स्वार्थ नहीं होता कवि ने परोपकारी की तुलना बादल से करते हुए, यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि जैसे बादल जल धारण कर संसार का ताप मिटाता है। वह इस जल देने के बदले किसी से कुछ लेता नहीं है, बल्कि अपने आचरण से संसार को संदेश देता है कि यह मानव शरीर अति कठिनाई से मिलता है, इसलिए मानव को बादल के समान अपने करुण-रस से सूखे कंठ को रसमय बनाने का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि परोपकार से बढ़कर कोई धर्म नहीं होता। सज्जन इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए अवतरित होते हैं। वृक्ष अपना फल स्वयं नहीं खाते, नदी अपना जल स्वयं नहीं पीती, वैसे ही परोपकारी व्यक्ति दूसरों की भलाई के लिए शरीर धारण करते हैं और संदेश दे जाते हैं कि परोपकारी व्यक्ति का ही जन्म लेना सार्थक होता है। जो परोपकार नहीं करते, उनका जन्म लेना बेकार है।
प्रश्न 5. कवि कहाँ अपने आँसुओं को पहुँचाना चाहता है और क्यों ?
उत्तर- कवि अपने आँसुओं को प्रेमिका के आँगन में पहुँचाना चाहता है, क्योंकि इन आँसुओं के माध्यम से कवि अपनी पीड़ा को सुजान के समक्ष प्रस्तुत करना चाहता है ताकि प्रेमी की व्यथा जानकर वह द्रवित हो सके। अतः कवि अन्योक्ति के माध्यम से विरह- वेदना से भरे अपने हृदय की पीड़ा को अपनी प्रेमिका के समक्ष व्यक्त करना चाहता है। कवि को विश्वास है कि उसकी प्रेम-वेदना से जब उसकी प्रेमिका अवगत होगी तब उसे प्रेम की सच्चाई का बोध होगा। अतः कवि अपने-आपको बादल मानकर यह सिद्ध करना चाहता है कि जिस प्रका बादल अपना जल बरसाकर संसार में नव-जीवन का संचार करता है, उसी प्रकार कवि अपने आँसुओं का जल बरसाकर प्रेमिका के सुप्त प्रेम को उद्दीप्त करना चाहता है।
प्रश्न 6. व्याख्या करें:
(क) यहाँ एक तें दूसरौ आँक नहीं।
(ख) कछू मेरियौ पीर हिएँ परसौ।
उत्तर-(क) प्रस्तुत दोहा के माध्यम से कवि घनानंद ने प्रेम-मार्ग की सच्चाई पर प्रकाश डाला है कवि का कहना है कि प्रेम का मार्ग अति सहज, सरल तथा सुगम होता है। इसमें छल-छद्म, अविश्वास का कोई स्थान नहीं होता। इसमें एक-दूसरे को जानने-समझने के लिए लिखित कोई चिह्न या शर्त नहीं होती । यह तो दो दिलों के आपसी मेल के सबूत हैं। अतः कवि के कहने का भाव यह है कि प्रेम में त्याग एवं समर्पण के भाव निहित होते हैं। इसलिए हे प्रिये सजान ! इस प्रेममार्ग पर चलनेवालों को किसी चिह्न की आवश्यकता नहीं होती।
(ख) प्रस्तुत सवैया के माध्यम से कवि ने अपनी विरह-वेदना को प्रकट किया है। कवि बादल की अन्योक्ति के माध्यम से परोपकारी जनों की विशेषता पर प्रकाश डालते हुए यह कहना चाहता है कि जिस प्रकार परोपकारी संसार का कल्याण करते हैं, उसी प्रकार प्रेमिका सुजान उनकी विरह-वेदना से भरे हृदय की पीड़ा से व्यथित हो उठे । अर्थात् कवि की प्रेम-वेदना प्रेमिका के हृदय में प्रेम का संचार कर दे।